रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड में होने वाले चुनाव के लिए 14 फरवरी को होने वाले मतदान के लिए चुनावी बिसात बिछ चुकी है. राज्य निर्माण के बाद बीते चार विधानसभा चुनाव में रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट पर तीन बार भाजपा और एक बार कांग्रेस ने विजय हासिल की है. लेकिन इस बार दोनों राष्ट्रीय दलों के सामने कई चुनौतियां दिख रही हैं. वहीं, कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरे पूर्व कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी और उक्रांद युवा प्रत्याशी मोहित डिमरी ने चुनावी मुकाबले को रोचक बना रखा है. विधानसभा में इस बार 103,251 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.
बता दें कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाली रुद्रप्रयाग विस में जखोली ब्लॉक की 108 ग्राम पंचायतें शामिल हैं. साथ ही अगस्त्यमुनि ब्लॉक का तल्लानागपुर, रानीगढ़, धनपुर और बच्छणस्यूं पट्टी शामिल है. इस विस में कुल 183 पोलिंग बूथों पर 103,251 मतदाता अपने मतााधिकार का प्रयोग करेंगे, जिसमें 2,443 युवा पहली बार वोट देंगे. उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद अस्तित्व में आई रुद्रप्रयाग विस में 2002 व 2007 में भारतीय जनता पार्टी से मातबर सिंह कंडारी विधायक चुने गए थे.
साल 2012 में कंडारी को उन्हीं के साडू भाई और कांग्रेस प्रत्याशी डाॅ. हरक सिंह रावत ने करीब डेढ़ हजार वोट से पराजित कर दिया था. लेकिन वर्ष 2017 में मोदी लहर में भाजपा के भरत सिंह चौधरी ने इस सीट पर कांग्रेस की लक्ष्मी राणा को हरा दिया था. तब भाजपा को यहां कुल मतदान का 51 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस सिर्फ 27 फीसदी वोट हासिल कर पाई थी. इसलिए भी कांग्रेस पूर्व जिलाध्यक्ष प्रदीप थपलियाल ने बागी रूप अपनाते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ा. ऐसे में कांग्रेस में बिखराव हो गया है और फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिला, लेकिन इस बार चुनावी समीकरण काफी बदले हुए हैं.
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कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरे पूर्व कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी और उत्तराखंड क्रांति दल के युवा प्रत्याशी मोहित डिमरी ने अपनी अच्छी मौजूदगी से मुकाबले को रोचक बना दिया है. इन हालातों में भाजपा के सामने जहां बड़े अंतर के साथ पुनः जीत दर्ज करने की सबसे बड़ी चुनौती है. वहीं, कांग्रेस के सामने बगावत से होने वाले नुकसान को कम से कम करते हुए बीते चुनाव में गंवाए वोट बैंक पर कब्जा कर साख बचाने की चुनौती है. बहरहाल, इस बार विधानसभा चुनाव में मोदी लहर भी नहीं है, जबकि कांग्रेस का भी कोई खास प्रचार-प्रसार नहीं है. ऐसे में राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशियों पर यूकेडी के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी भारी पड़ते नजर आ रहे हैं.