रुद्रप्रयागः मदमहेश्वर घाटी के राकेश्वरी मंदिर रांसी से शुरू हुई 6 दिवसीय मनणामाई लोकजात यात्रा संपन्न हो गई है. मनणामाई लोकजात यात्रा के राकेश्वरी मंदिर रांसी पहुंचने पर ग्रामीणों ने पुष्प और अक्षत्रों से भव्य स्वागत किया गया. इस दौरान विद्वान आचार्यों ने वेद ऋचा पढ़ी तो महिलाओं ने मांगल गीत गाए.
राकेश्वरी मंदिर समिति के अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि भगवती मनणामाई भेड़ पालकों की आराध्य देवी मानी जाती है. दशकों पूर्व जब भेड़ पालक अप्रैल महीने में 6 महीने बुग्यालों के प्रवास के लिए रवाना होते थे तो भगवती मनणामाई की डोली को साथ ले जाते थे. भगवती मनणामाई की डोली 6 महीने मनणा धाम में प्रवास करती थीं. भेड़ पालकों की गांव वापसी के साथ ही मनणामाई की डोली भी गांवों को पहुंचती थी.
उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे भेड़ पालन व्यवसाय में कमी आने लगी. ऐसे में भेड़ पालकों ने भगवती मनणामाई की डोली को राकेश्वरी रांसी में तपस्यारत करवाया. जगत पंवार ने ये भी बताया कि भेड़ पालन व्यवसाय समाप्त होने पर रांसी के ग्रामीणों की ओर से हर साल सावन महीने में मनणामाई लोकजात यात्रा का आयोजन किया जाता है.
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शिक्षाविद रविंद्र भट्ट ने बताया कि मनणामाई तीर्थ मदमहेश्वर घाटी के रांसी गांव से करीब 32 किमी दूर चौखंबा की तलहटी और मदानी नदी के किनारे बसा है. उन्होंने बताया कि मनणा का शाब्दिक अर्थ मन की कामना को पूर्ण करना होता है. इसलिए जो मनुष्य मनणामाई तीर्थ में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
महिषासुर का वध होने पर यह स्थान कहलाया 'मनणा तीर्थ': उन्होंने बताया कि स्कंद पुराण के केदारखंड में मनणा तीर्थ का विस्तृत वर्णन किया गया है. शिक्षाविद भगवती प्रसाद भट्ट ने बताया कि भगवती मनणा ने जिस स्थान पर महिषासुर असुर का वध किया था. वो स्थान मनणा तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ.
शिला के रूप में विराजमान है महिषासुरः शिक्षाविद रविंद्र भट्ट ने बताया कि मनणामाई तीर्थ में आज भी महिषासुर असुर विशाल शिला के रूप में विराजमान है. भगवती मनणामाई की पूजा के बाद महिषासुर असुर की शिला पूजने का विधान है. मनणामाई लोकजात यात्रा समिति अध्यक्ष जगत सिंह बिष्ट ने बताया कि इस बार मनणामाई लोकजात यात्रा की पूजा-अर्चना व अगुवाई पंडित ईश्वरी प्रसाद भट्ट ने की.