रुद्रप्रयाग: लगातार खाली होते गांव, वीरान पड़े घर और युवाओं के चेहरे पर छायी मायूसी उत्तराखंड के हालातों को बयां करने के लिए काफी है. प्रदेश के लगभग हर जिले से इस तरह की खबरें आम बात है. हर कोई सुविधाओं और सहूलियतों की चाह में अपने पुश्तैनी काम और घर-बार को छोड़कर मैदानी इलाकों की ओर रुख कर रहा है. वहीं, इसके ठीक उलट 51साल के एक बुजुर्ग असुविधाओं को धता बताकर अपने गांव में पारंपरिक खेती और बागवानी कर युवाओं के लिए नजीर बने हुए हैं. 51 वर्षीय गंभीर सिंह चौधरी न सिर्फ खेती कर यहां के युवाओं को रोजगार दे रहे हैं बल्कि, वे बागवानी को लेकर भी एक बड़ी मुहिम छेड़े हुए हैं. जिसके कारण वे लगातार नये आयाम स्थापित कर रहे हैं.
'मिट्टी के आशियानों में है सुकून, पारंपरिक है खान-पान, सीढ़ीनुमा खेत-खलिहानों की मिट्टी में है जान, हर ऋतुओं में पकने वाली फसलों की सौंदी खुशबू, शुद्ध हवा पानी, यही तो है मेरे पहाड़ की पहचान' ये पंक्तियां किसी कवि ने नहीं, बल्कि गंभीर सिंह चौधरी की हैं जो कि साफ तौर पर उनके पहाड़ के प्रति प्रेम को दिखाता है. रुद्रप्रयाग जिले के घोड़साल निवासी गंभीर सिंह खाली होते पहाड़ों पर एक बार फिर से हरियाली और खुशहाली लाने के प्रयास में जुटे हैं. गंभीर सिंह चौधरी पारंपरिक खेती कर अपनी मिट्टी में 'सोना' उगा रहे हैं. पच्चीस सालों से पारम्परिक बागवानी करते आ रहे गंभीर सिंह अपने पिता की सीख और मिलते अनुभवों से लगातार इस क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयां छू रहे हैं.
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पारंपरिक विधि से बागवानी करते हैं गंभीर सिंह चैधरी
गंभीर सिंह चौधरी अपने खेतों में दिन रात कमरतोड़ मेहनत करते हैं. जिसका नतीजा है कि आज पूरे इलाके में वे किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वे अपने खेतों में पारंपरिक विधि से बागवानी करते हुए पहाड़ी आलू, प्याज, लौकी, कद्दू, सफेद-ब्राउन राजमा, सुनहरी हरी ककड़ी, शिमला मीर्च, भिंडी सहित अन्य पौष्टिक तरकारियां उगा रहे हैं. जो कि उनके परिवार की आमदानी का स्त्रोत है. इतना ही नहीं गंभीर सिंह चौधरी जहां इस उम्र में अपनी मिट्टी से जुड़े हैं. वहीं, उनके दो बेटें भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देते हुए मां भारती की रक्षा में तैनात हैं.
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मसाले वाली इलायची बन रही गंभीर सिंह की पहचान
कृषक गंभीर सिंह साल में आलू की दो फसलें उगाते हैं. जिससे उनको 50 से 60 कुंतल आलू मिलता है. वे इस आलू को स्थानीय मार्केट तथा अन्य ग्रामीण इलाकों में बेचते हैं. इसके अलावा वे मौसम के हिसाब से उगने वाली पहाड़ी तरकारियां भी अपने खेतों में उगाते हैं. जिसे लेने के लिए दूर-दूर से दुकानकार यहां पहुंचते हैं. गंभीर से चौधरी ने मसाले वाली इलायची भी अपने खेतों में उगायी है, पहाड़ों में इस इलायची की डिमांड काफी ज्यादा है. साल में वे बीस किलो प्राप्त कर लेते हैं. बता दें कि इलायची का बाजार मूल्य बारह सौ रुपये किलो है. इस फसल को जंगली जानवर भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ऐसे में काश्तकारों के लिए यह आय का अच्छा जरिया बनता जा रहा है.
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पारम्परिक मधुमक्खी पालन से भी कर रहे कमाई
गंभीर सिंह फसलों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखने के लिए पौराणिक मकान में लकड़ी तथा मिट्टी के कमरों में परंपरागत भण्डारण विधि (कोल्ड विधि) अपनाते हैं. जिससे सब्जियां काफी लम्बे समय तक सुरक्षित सुरक्षित रहती हैं. बागवानी के साथ-साथ वे मधुमक्खी पालन का कार्य भी करते हैं. जिसके लिए उन्होंने अपने घर में हनी बाॅक्स लगाये हुए हैं. उनकी मानें तो मधुमक्खियों से तीन अलग-अलग किस्म का हिमालयन मल्टी फ्लोरा शहद प्राप्त होता है. इन दिनों वे तकरीबन 50 से 60 किलो शहद बाजार में उपलब्ध करवा रहे हैं.
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'जंगली' ने भी की सराहना
अपने बागवानी के तरीकों और युवाओं को रोजगार देने के चलते गंभीर सिंह चौधरी पूरे इलाके का एक जाना माना नाम है. सभी लोग उनके द्वारा किये जाने वाले प्रयासों की सराहना कर रहे हैं. पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली भी मानते हैं कि पारम्परिक उद्यानिकी आने वाले समय के लिए वरदान है. वे कहते हैं कि बढ़ते रसायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता कम होती जा रही है. जंगली का कहना है कि ये मेरे लिए खुशी की बात है कि मेरे क्षेत्र में ऐसे उद्यमी भी हैं, जो पारम्परिक उद्यानिकी कर मिसाल बने हुए हैं.
जहां एक ओर सरकारें खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास करते हुए लोगों को जागरूक कर रही हैं. वहीं, गंभीर सिंह जैसे किसान सरकार की उम्मीदों को पंख देने का काम कर रहे हैं. गंभीर सिंह खाली होते पहाड़ों में खेती के नये और पुराने तरीकों का इस्तेमाल कर खत्म होती खेती को बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं. इसके साथ ही वे पलायन कर चुके लोगों और युवाओं के लिए भी एक बड़ी सीख भी हैं. गंभीर सिंह ने पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए धरातलीय प्रयास शुरू किये हैं.