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रुद्रप्रयाग: पारंपरिक खेती से नई इबारत लिख रहा ये किसान, पलायन रोकने की जगा रहा अलख - Traditional farming on the mountains

'मिट्टी के आशियानों में है सुकून, पारंपरिक है खान-पान, सीढ़ीनुमा खेत-खलियानों की मिट्टी में है जान, हर ऋतुओं में पकने वाली फसलों की सौंदी खुशबू, शुद्ध हवा पानी, यही तो है मेरे पहाड़ की पहचान' ये पंक्तियां किसी कवि ने नहीं, बल्कि गंभीर सिंह चौधरी की हैं जो कि साफ तौर पर उनके पहाड़ के प्रति प्रेम को दिखाता है.

पारंपरिक खेती नई पहचान बना रहे गंभीर सिंह.
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Published : Oct 17, 2019, 1:04 PM IST

Updated : Oct 18, 2019, 9:14 AM IST

रुद्रप्रयाग: लगातार खाली होते गांव, वीरान पड़े घर और युवाओं के चेहरे पर छायी मायूसी उत्तराखंड के हालातों को बयां करने के लिए काफी है. प्रदेश के लगभग हर जिले से इस तरह की खबरें आम बात है. हर कोई सुविधाओं और सहूलियतों की चाह में अपने पुश्तैनी काम और घर-बार को छोड़कर मैदानी इलाकों की ओर रुख कर रहा है. वहीं, इसके ठीक उलट 51साल के एक बुजुर्ग असुविधाओं को धता बताकर अपने गांव में पारंपरिक खेती और बागवानी कर युवाओं के लिए नजीर बने हुए हैं. 51 वर्षीय गंभीर सिंह चौधरी न सिर्फ खेती कर यहां के युवाओं को रोजगार दे रहे हैं बल्कि, वे बागवानी को लेकर भी एक बड़ी मुहिम छेड़े हुए हैं. जिसके कारण वे लगातार नये आयाम स्थापित कर रहे हैं.

पारंपरिक खेती नई पहचान बना रहे गंभीर सिंह.

'मिट्टी के आशियानों में है सुकून, पारंपरिक है खान-पान, सीढ़ीनुमा खेत-खलिहानों की मिट्टी में है जान, हर ऋतुओं में पकने वाली फसलों की सौंदी खुशबू, शुद्ध हवा पानी, यही तो है मेरे पहाड़ की पहचान' ये पंक्तियां किसी कवि ने नहीं, बल्कि गंभीर सिंह चौधरी की हैं जो कि साफ तौर पर उनके पहाड़ के प्रति प्रेम को दिखाता है. रुद्रप्रयाग जिले के घोड़साल निवासी गंभीर सिंह खाली होते पहाड़ों पर एक बार फिर से हरियाली और खुशहाली लाने के प्रयास में जुटे हैं. गंभीर सिंह चौधरी पारंपरिक खेती कर अपनी मिट्टी में 'सोना' उगा रहे हैं. पच्चीस सालों से पारम्परिक बागवानी करते आ रहे गंभीर सिंह अपने पिता की सीख और मिलते अनुभवों से लगातार इस क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयां छू रहे हैं.

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पारंपरिक विधि से बागवानी करते हैं गंभीर सिंह चैधरी

गंभीर सिंह चौधरी अपने खेतों में दिन रात कमरतोड़ मेहनत करते हैं. जिसका नतीजा है कि आज पूरे इलाके में वे किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वे अपने खेतों में पारंपरिक विधि से बागवानी करते हुए पहाड़ी आलू, प्याज, लौकी, कद्दू, सफेद-ब्राउन राजमा, सुनहरी हरी ककड़ी, शिमला मीर्च, भिंडी सहित अन्य पौष्टिक तरकारियां उगा रहे हैं. जो कि उनके परिवार की आमदानी का स्त्रोत है. इतना ही नहीं गंभीर सिंह चौधरी जहां इस उम्र में अपनी मिट्टी से जुड़े हैं. वहीं, उनके दो बेटें भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देते हुए मां भारती की रक्षा में तैनात हैं.

पढ़ें-वायरल वीडियो: युवती ने मित्र पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप, DG ने दिए जांच के आदेश

मसाले वाली इलायची बन रही गंभीर सिंह की पहचान

कृषक गंभीर सिंह साल में आलू की दो फसलें उगाते हैं. जिससे उनको 50 से 60 कुंतल आलू मिलता है. वे इस आलू को स्थानीय मार्केट तथा अन्य ग्रामीण इलाकों में बेचते हैं. इसके अलावा वे मौसम के हिसाब से उगने वाली पहाड़ी तरकारियां भी अपने खेतों में उगाते हैं. जिसे लेने के लिए दूर-दूर से दुकानकार यहां पहुंचते हैं. गंभीर से चौधरी ने मसाले वाली इलायची भी अपने खेतों में उगायी है, पहाड़ों में इस इलायची की डिमांड काफी ज्यादा है. साल में वे बीस किलो प्राप्त कर लेते हैं. बता दें कि इलायची का बाजार मूल्य बारह सौ रुपये किलो है. इस फसल को जंगली जानवर भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ऐसे में काश्तकारों के लिए यह आय का अच्छा जरिया बनता जा रहा है.

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पारम्परिक मधुमक्खी पालन से भी कर रहे कमाई

गंभीर सिंह फसलों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखने के लिए पौराणिक मकान में लकड़ी तथा मिट्टी के कमरों में परंपरागत भण्डारण विधि (कोल्ड विधि) अपनाते हैं. जिससे सब्जियां काफी लम्बे समय तक सुरक्षित सुरक्षित रहती हैं. बागवानी के साथ-साथ वे मधुमक्खी पालन का कार्य भी करते हैं. जिसके लिए उन्होंने अपने घर में हनी बाॅक्स लगाये हुए हैं. उनकी मानें तो मधुमक्खियों से तीन अलग-अलग किस्म का हिमालयन मल्टी फ्लोरा शहद प्राप्त होता है. इन दिनों वे तकरीबन 50 से 60 किलो शहद बाजार में उपलब्ध करवा रहे हैं.

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'जंगली' ने भी की सराहना

अपने बागवानी के तरीकों और युवाओं को रोजगार देने के चलते गंभीर सिंह चौधरी पूरे इलाके का एक जाना माना नाम है. सभी लोग उनके द्वारा किये जाने वाले प्रयासों की सराहना कर रहे हैं. पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली भी मानते हैं कि पारम्परिक उद्यानिकी आने वाले समय के लिए वरदान है. वे कहते हैं कि बढ़ते रसायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता कम होती जा रही है. जंगली का कहना है कि ये मेरे लिए खुशी की बात है कि मेरे क्षेत्र में ऐसे उद्यमी भी हैं, जो पारम्परिक उद्यानिकी कर मिसाल बने हुए हैं.

जहां एक ओर सरकारें खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास करते हुए लोगों को जागरूक कर रही हैं. वहीं, गंभीर सिंह जैसे किसान सरकार की उम्मीदों को पंख देने का काम कर रहे हैं. गंभीर सिंह खाली होते पहाड़ों में खेती के नये और पुराने तरीकों का इस्तेमाल कर खत्म होती खेती को बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं. इसके साथ ही वे पलायन कर चुके लोगों और युवाओं के लिए भी एक बड़ी सीख भी हैं. गंभीर सिंह ने पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए धरातलीय प्रयास शुरू किये हैं.

रुद्रप्रयाग: लगातार खाली होते गांव, वीरान पड़े घर और युवाओं के चेहरे पर छायी मायूसी उत्तराखंड के हालातों को बयां करने के लिए काफी है. प्रदेश के लगभग हर जिले से इस तरह की खबरें आम बात है. हर कोई सुविधाओं और सहूलियतों की चाह में अपने पुश्तैनी काम और घर-बार को छोड़कर मैदानी इलाकों की ओर रुख कर रहा है. वहीं, इसके ठीक उलट 51साल के एक बुजुर्ग असुविधाओं को धता बताकर अपने गांव में पारंपरिक खेती और बागवानी कर युवाओं के लिए नजीर बने हुए हैं. 51 वर्षीय गंभीर सिंह चौधरी न सिर्फ खेती कर यहां के युवाओं को रोजगार दे रहे हैं बल्कि, वे बागवानी को लेकर भी एक बड़ी मुहिम छेड़े हुए हैं. जिसके कारण वे लगातार नये आयाम स्थापित कर रहे हैं.

पारंपरिक खेती नई पहचान बना रहे गंभीर सिंह.

'मिट्टी के आशियानों में है सुकून, पारंपरिक है खान-पान, सीढ़ीनुमा खेत-खलिहानों की मिट्टी में है जान, हर ऋतुओं में पकने वाली फसलों की सौंदी खुशबू, शुद्ध हवा पानी, यही तो है मेरे पहाड़ की पहचान' ये पंक्तियां किसी कवि ने नहीं, बल्कि गंभीर सिंह चौधरी की हैं जो कि साफ तौर पर उनके पहाड़ के प्रति प्रेम को दिखाता है. रुद्रप्रयाग जिले के घोड़साल निवासी गंभीर सिंह खाली होते पहाड़ों पर एक बार फिर से हरियाली और खुशहाली लाने के प्रयास में जुटे हैं. गंभीर सिंह चौधरी पारंपरिक खेती कर अपनी मिट्टी में 'सोना' उगा रहे हैं. पच्चीस सालों से पारम्परिक बागवानी करते आ रहे गंभीर सिंह अपने पिता की सीख और मिलते अनुभवों से लगातार इस क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयां छू रहे हैं.

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पारंपरिक विधि से बागवानी करते हैं गंभीर सिंह चैधरी

गंभीर सिंह चौधरी अपने खेतों में दिन रात कमरतोड़ मेहनत करते हैं. जिसका नतीजा है कि आज पूरे इलाके में वे किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वे अपने खेतों में पारंपरिक विधि से बागवानी करते हुए पहाड़ी आलू, प्याज, लौकी, कद्दू, सफेद-ब्राउन राजमा, सुनहरी हरी ककड़ी, शिमला मीर्च, भिंडी सहित अन्य पौष्टिक तरकारियां उगा रहे हैं. जो कि उनके परिवार की आमदानी का स्त्रोत है. इतना ही नहीं गंभीर सिंह चौधरी जहां इस उम्र में अपनी मिट्टी से जुड़े हैं. वहीं, उनके दो बेटें भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देते हुए मां भारती की रक्षा में तैनात हैं.

पढ़ें-वायरल वीडियो: युवती ने मित्र पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप, DG ने दिए जांच के आदेश

मसाले वाली इलायची बन रही गंभीर सिंह की पहचान

कृषक गंभीर सिंह साल में आलू की दो फसलें उगाते हैं. जिससे उनको 50 से 60 कुंतल आलू मिलता है. वे इस आलू को स्थानीय मार्केट तथा अन्य ग्रामीण इलाकों में बेचते हैं. इसके अलावा वे मौसम के हिसाब से उगने वाली पहाड़ी तरकारियां भी अपने खेतों में उगाते हैं. जिसे लेने के लिए दूर-दूर से दुकानकार यहां पहुंचते हैं. गंभीर से चौधरी ने मसाले वाली इलायची भी अपने खेतों में उगायी है, पहाड़ों में इस इलायची की डिमांड काफी ज्यादा है. साल में वे बीस किलो प्राप्त कर लेते हैं. बता दें कि इलायची का बाजार मूल्य बारह सौ रुपये किलो है. इस फसल को जंगली जानवर भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ऐसे में काश्तकारों के लिए यह आय का अच्छा जरिया बनता जा रहा है.

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पारम्परिक मधुमक्खी पालन से भी कर रहे कमाई

गंभीर सिंह फसलों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखने के लिए पौराणिक मकान में लकड़ी तथा मिट्टी के कमरों में परंपरागत भण्डारण विधि (कोल्ड विधि) अपनाते हैं. जिससे सब्जियां काफी लम्बे समय तक सुरक्षित सुरक्षित रहती हैं. बागवानी के साथ-साथ वे मधुमक्खी पालन का कार्य भी करते हैं. जिसके लिए उन्होंने अपने घर में हनी बाॅक्स लगाये हुए हैं. उनकी मानें तो मधुमक्खियों से तीन अलग-अलग किस्म का हिमालयन मल्टी फ्लोरा शहद प्राप्त होता है. इन दिनों वे तकरीबन 50 से 60 किलो शहद बाजार में उपलब्ध करवा रहे हैं.

पढ़ें-राज्य कर्मचारियों को अटल आयुष्मान योजना का इंतजार, 11 महीने बाद भी नहीं मिला लाभ

'जंगली' ने भी की सराहना

अपने बागवानी के तरीकों और युवाओं को रोजगार देने के चलते गंभीर सिंह चौधरी पूरे इलाके का एक जाना माना नाम है. सभी लोग उनके द्वारा किये जाने वाले प्रयासों की सराहना कर रहे हैं. पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली भी मानते हैं कि पारम्परिक उद्यानिकी आने वाले समय के लिए वरदान है. वे कहते हैं कि बढ़ते रसायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता कम होती जा रही है. जंगली का कहना है कि ये मेरे लिए खुशी की बात है कि मेरे क्षेत्र में ऐसे उद्यमी भी हैं, जो पारम्परिक उद्यानिकी कर मिसाल बने हुए हैं.

जहां एक ओर सरकारें खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास करते हुए लोगों को जागरूक कर रही हैं. वहीं, गंभीर सिंह जैसे किसान सरकार की उम्मीदों को पंख देने का काम कर रहे हैं. गंभीर सिंह खाली होते पहाड़ों में खेती के नये और पुराने तरीकों का इस्तेमाल कर खत्म होती खेती को बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं. इसके साथ ही वे पलायन कर चुके लोगों और युवाओं के लिए भी एक बड़ी सीख भी हैं. गंभीर सिंह ने पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए धरातलीय प्रयास शुरू किये हैं.

Intro:एक किसान जो बन गया मिसाल
51 वर्षीय कृषक गंभीर सिंह खेती के जरिये अपनी जमीन में उगल रहे सोना
सालभर में करते हैं लाखों की आमदनी
अपने पिता से सीखी पारम्परिक बागवानी की विद्या
दो पुत्रों को अच्छी शिक्षा देकर भारतीय सेना में जाने के बनाया काबिल
सब्जी, पशुपालन, मधु मक्खी का करते हैं पालन
अन्य ग्रामीणों के लिए बने हैं मिसाल
रुद्रप्रयाग। पहाड़ों से रोजगार को लेकर पलायन कर रहे युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर बहुत हैं, बावजूद इसके रुद्रप्रयाग जनपद के युवाओं का पलायन जारी है। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने गांव में ही रोजगार कर खेती को बढ़ावा दे रहे हैं और लाखों का मुनाफा कर रहे हैं। इन लोगों से उन्हें सीख लेने की जरूरत है जो पहाड़ों में रोजगार न होने की बात कर रहे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जो 25 वर्षों से पारंपरिक बागवानी को बढ़ावा देकर अपनी माटी को सींच रहे हैं। पेश है एक रिपोर्ट - Body:वीओ -1- ””मिट्टी के आशियानों में है सकून, पारंपरिक है खान-पान, सीढ़ीनुमा खेत-खलियानों की मिट्टी में है जान, हर ऋतुओं में पकने वाली फसलों की सौंदी खूशबू, शुद्ध हवा पानी, यही तो है मेरे पहाड़ की पहचान।
ये पंक्तियां किसी कवि ने नहीं, बल्कि उस व्यक्ति ने लिखी हैं जो वर्षों से खेती करके अपनी पहाड़ की पहचान को समाज के सामने रखते आ रहे हैं। उनका मानना है कि कृषि ही हमारी पहचान है। आज के दौर में जहां खेती से लोग विमुख होते जा रहे हैं और पलायन भी तेजी से बढ़ रहा है, वहीं रुद्रप्रयाग जिले के दूरस्थ घोड़साल गांव निवासी 51 वर्षीय कर्मठ उद्यमी गंभीर सिंह चैधरी पारंपरिक बागवानी कर अपनी मिट्टी में सोना उगल रहे हैं। कृषक गंभीर सिंह पच्चीस वर्षों से पारम्परिक बागवानी करते आ रहे हैं, जिसकी विद्या उन्होंने अपने पिता से सीखी और बखूबी इस कार्य को सफलता की ऊंचाइयों तक भी पहुंचाया। वे अपने खेतों में पारंपरिक विधि से बागवानी कर रहे हैं, जिसमें पहाड़ी आलू, प्याज, लौकी, कद्दू, सफेद-ब्राउन राजमा, सुनहरी हरी ककड़ी, शिमला मीर्च, भिंडी सहित अन्य पौष्टिक तरकारियां शामिल हैं। कृषक गंभीर सिंह के परिवार की आमदानी की आय का स्त्रोत बागवानी से होने वाली आय है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने दो पुत्रों को अच्छी शिक्षा देकर भारतीय सेना में जाने के काबिल भी बनाया। उनके दोनों पुत्र भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
बाइट - 1- गंभीर सिंह चैधरी, कृषक
वीओ -2- कृषक गंभीर सिंह साल में आलू की दो फसले पैदा करते हैं, जिससे उनको 50 से 60 कुंतल प्राप्त हो जाता है और इससे अच्छी आय भी प्राप्त होती है। वे आलू को स्थानीय मार्केट तथा अन्यत्र ग्रामीणों को बेचते हैं। इसके अलावा मौसम के हिसाब से उगने वाली पहाड़ी तरकारियां जैसे प्याज, लौंकी, कद्दू, भिंडी, शिमला मिर्च से भी उनकी अच्छी आय होती है। स्थानीय दुकानदार और ग्रामीण लोग दूर-दूर से सब्जी लेने उनके पास पहुंचते हैं। उन्होंने मसाले वाली इलायंची भी उगायी है, जिसमें वो सफल हो रहे हैं। इस इलायंची की डिमांड काफी है। साल में इसकी एक ही फसल होती है, जिससे उन्हें बीस किलो से अधिक प्राप्त हो जाता है। इलायंची का बाजार मूल्य बारह सौ रूपये किलो है और इस फसल को जंगली जानवर भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। ऐसे में काश्तकारों के लिए यह आय का अच्छा जरिया बन जाता है।
काश्तकार गंभीर सिंह फसलों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखने के लिए पौराणिक मकान में लकड़ी तथा मिट्टी के कमरों में परंपरागत भण्डारण विधि (कोल्ड विधि) भी बनाये हैं, जिसमें सब्जियां काफी लम्बे समय तक सुरक्षित तथा आगामी फसल के लिए महफूज रहती है। बागवानी के साथ-साथ कृषक गंभीर सिंह पारम्परिक मधुमक्खी पालन का कार्य भी सफलता पूर्वक कर रहे हैं। अपने ही घर पर हनी बाॅक्स लगाये हुए हैं। उनकी माने तो मधुमक्खियों से तीन अलग-अलग किस्म का हिमालयन मल्टी फ्लोरा प्रकार का शहद प्राप्त होता है। तकरीबन 50 से 60 किलो शहद का उत्पादन हो रहा है, जिसकी डिमांड भी काफी है और छः सौ से एक हजार प्रति किलो भी बिक रहा है। वे पारम्परिक मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण भी ग्रामीणों को दे रहे हैं।
बाइट -2- गंभीर सिंह चैधरी, कृषक
Conclusion:वीओ -3- कहते हैं यदि जीवन संगनी का साथ मिल जाय तो कार्य करने की क्षमता और अधिक बढ़ जाती है। गंभीर सिंह भी इसी कड़ी के पहलू हैं। उनकी पत्नी छोटी देवी खेती में उनका पूरा साथ देती हैं। हर काम उनके साथ हाथ बंटाती हैं। खुशमिजाज छोटी देवी कहती हैं कि उन्हें अपने पति के इस काम से खुशी मिलती है। ग्रामीण भी उनके द्वारा किये जा रहे कार्य से काफी खुश नजर आते हैं और उन्हें प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं।
बाइट - अजय सेमवाल, ग्रामीण
वीओ -4- पर्यावरण विद जगत सिंह जंगली भी मानते हैं कि पारम्परिक उद्यानिकी आने वाले समय के लिए वरदान है। उनकी माने तो बढ़ते रसायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी लगातार प्रदूषित होती जा रही है। वहीं पहाड़ की मिट्टी अभी इन चीजों से अछूती है, जो सबसे अच्छी बात है। मुझे खुशी है मेरे क्षेत्र में ऐसे उद्यमी भी हैं, जो पारम्परिक उद्यानकी कर मिसाल बने हुए हैं। निःसंदेह कृषक चैधरी आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्त्रोत साबित होंगे।
बाइट - जगत सिंह ”जंगली“, पर्यावरण विद, ग्रीन एम्बेंसडर उत्तराखण्ड
वीओ -5- खेती के प्रति ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए जिलाधिकारी भी मुहिम छेड़े हुए हैं। उनकी माने तो जो ग्रामीण खेती के प्रति जागरूक है, उनसे अन्य लोगों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए और खेती की ओर बढ़ना चाहिए।
बाइट - मंगेश घिल्डियाल, जिलाधिकारी
वीओ फाइनल - सरकार की ओर से खेती को बढ़ावा देने के लिए जागरूक तो किया जा रहा है, मगर जंगली जानवरों के आतंक से निजात दिलाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। ग्रामीण लोग खेती करने के लिए तो तैयार हैं, लेकिन जंगली जानव उनकी फसलों को नुकसान पहुंचा देते हैं, जिससे उनका खेती की ओर मोहभंग हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि पहले ग्रामीण जनता को जंगली जानवरों के आतंक से निजात दिलाई जाय। इसके बाद ही ग्रामीण भी खेती की ओर जागरूक होंगे।
Last Updated : Oct 18, 2019, 9:14 AM IST
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