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देवउठनी एकादशी पर देव निशानों को रुद्रप्रयाग संगम में कराया गया स्नान, पांडव नृत्य भी शुरू

Devuthani Ekadashi festival 2023 केदारघाटी के दरमोला भरदार में देवउठनी एकादशी पर्व पर देव निशानों को अलकनंदा मंदाकिनी के पावन तट रुद्रप्रयाग संगम में स्नान कराया गया. जिसके बाद आज से पांडव नृत्य का शुभारंभ भी हो गया है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 23, 2023, 3:50 PM IST

Updated : Nov 23, 2023, 4:29 PM IST

देव निशानों को रुद्रप्रयाग संगम में कराया गया स्नान

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी के दरमोला भरदार में पांडव नृत्य की एक अनूठी परंपरा है. यहां प्रतिवर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य का आयोजन सदियों से चला आ रहा है. इसी क्रम में आज देवउठनी एकादशी पर्व पर देव निशानों को अलकनंदा मंदाकिनी के पावन तट रुद्रप्रयाग संगम में स्नान कराया गया. एकादशी का पर्व इसलिए शुभ माना गया है कि इस दिन भगवान नारायण और तुलसी का विवाह संपन्न हुआ था. पौराणिक परंपराओं के अनुसार पांडवों ने मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वर्गारोहणी जाते समय अपने अस्त्र-शस्त्र केदारघाटी में छोड़ दिए थे, तब से लेकर आज तक यहां इनकी पूजा होती है.

देवउठनी एकादशी पर पांडव नृत्य शुरू करने की परंपरा: गढ़वाल क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी तक पांडव नृत्य का आयोजन होता है. प्रत्येक गांवों में पांडव नृत्य के आयोजन की अलग-अलग परंपराएं हैं. कहीं पांच तो कहीं दस वर्षों बाद पांडव नृत्य का आयोजन होता है, लेकिन भरदार क्षेत्र के ग्राम पंचायत दरमोला एकमात्र ऐसा गांव है, जहां प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के साथ मंदाकिनी व अलकनंदा के तट पर गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य शुरू करने की परंपरा है.

चार पहर की होती है पूजा- अर्चना: एकादशी की पूर्व संध्या पर दरमोला, तरवाडी, स्वीली और सेम के ग्रामीण भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, नागराजा, देवी, हित, ब्रहमडुंगी, भैरवनाथ समेत कई नेजा-निशान गाजे बाजों के साथ गंगा स्नान के लिए संगम तट पर पहुंचते हैं. यहां पर जागरण और देव निशानों की चार पहर की पूजा अर्चना की जाती है.

केदारघाटी में पांडवों ने छोड़े थे अस्त्र-शस्त्र: इसके बाद देव निशानों को गांव में ले जाकर एकादशी के दिन यहां पांडव नृत्य का आयोजन शुरू किया जाता है. इस आयोजन में मुख्य रुप से पांडवों के बाणों और अस्त्र-शस्त्रों की पूजा-अर्चना की भी अनूठी परंपरा है,जो लोगों की अटूट आस्था के कारण आज भी बनी हुई है. केदारघाटी में पांडवों के अस्त्र-शस्त्र छोड़े जाने का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में भी मिलता है.

देव निशानों को गंगा स्नान ना कराने पर होती है अनहोनी: मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान नारायण ने पांच महीनों की नींद से जागकर तुलसी से साथ विवाह किया था.इस दिन देव निशान को गंगा स्नान व पांडव नृत्य के लिए शुभ माना गया है,इसलिए ग्रामीण देव निशानों को गंगा स्नान के लिए अवश्य लाते हैं. बताया जाता है कि यदि इस दिन देव निशानों को गंगा स्नान के लिए नहीं लाया गया, तो गांव में अवश्य कुछ न कुछ अनहोनी होती है, इसलिए ग्रामीण इस दिन को कभी नहीं भूलते हैं.

ये भी पढ़ें: बुंदेलखंड में विराजे हैं विट्ठल भगवान, हुबहू महाराष्ट्र के पंढरपुर जैसा है मंदिर, देवउठनी एकादशी पर विशेष आयोजन

प्रतिवर्ष गंगा स्नान के लिए आते हैं देव निशान: पांडव नृत्य समिति ग्राम पंचायत दरमोला के पुजारी गिरीश डिमरी, ग्रामीण वंदना डिमरी, किशन रावत और जसपाल पंवार ने बताया कि केदारघाटी के ग्राम पंचायत दरमोला में पांडव नृत्य का आयोजन सदियों से होता आ रहा है. यह एक ऐसा गांव है, जहां प्रतिवर्ष देव निशानों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य की परंपरा है. उन्होंने कहा कि पौराणिक संस्कृति को बचाना हम सभी का धर्म होना चाहिए.

ये भी पढ़ें: Dev Uthani Ekadashi: हरिप्रबोधिनी एकादशी पर निद्रा से जागेंगे भगवान विष्णु , इस बार बन रहा खास योग, जानिए तिथि और महत्व

देव निशानों को रुद्रप्रयाग संगम में कराया गया स्नान

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी के दरमोला भरदार में पांडव नृत्य की एक अनूठी परंपरा है. यहां प्रतिवर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य का आयोजन सदियों से चला आ रहा है. इसी क्रम में आज देवउठनी एकादशी पर्व पर देव निशानों को अलकनंदा मंदाकिनी के पावन तट रुद्रप्रयाग संगम में स्नान कराया गया. एकादशी का पर्व इसलिए शुभ माना गया है कि इस दिन भगवान नारायण और तुलसी का विवाह संपन्न हुआ था. पौराणिक परंपराओं के अनुसार पांडवों ने मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वर्गारोहणी जाते समय अपने अस्त्र-शस्त्र केदारघाटी में छोड़ दिए थे, तब से लेकर आज तक यहां इनकी पूजा होती है.

देवउठनी एकादशी पर पांडव नृत्य शुरू करने की परंपरा: गढ़वाल क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष नवंबर से लेकर फरवरी तक पांडव नृत्य का आयोजन होता है. प्रत्येक गांवों में पांडव नृत्य के आयोजन की अलग-अलग परंपराएं हैं. कहीं पांच तो कहीं दस वर्षों बाद पांडव नृत्य का आयोजन होता है, लेकिन भरदार क्षेत्र के ग्राम पंचायत दरमोला एकमात्र ऐसा गांव है, जहां प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के साथ मंदाकिनी व अलकनंदा के तट पर गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य शुरू करने की परंपरा है.

चार पहर की होती है पूजा- अर्चना: एकादशी की पूर्व संध्या पर दरमोला, तरवाडी, स्वीली और सेम के ग्रामीण भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, नागराजा, देवी, हित, ब्रहमडुंगी, भैरवनाथ समेत कई नेजा-निशान गाजे बाजों के साथ गंगा स्नान के लिए संगम तट पर पहुंचते हैं. यहां पर जागरण और देव निशानों की चार पहर की पूजा अर्चना की जाती है.

केदारघाटी में पांडवों ने छोड़े थे अस्त्र-शस्त्र: इसके बाद देव निशानों को गांव में ले जाकर एकादशी के दिन यहां पांडव नृत्य का आयोजन शुरू किया जाता है. इस आयोजन में मुख्य रुप से पांडवों के बाणों और अस्त्र-शस्त्रों की पूजा-अर्चना की भी अनूठी परंपरा है,जो लोगों की अटूट आस्था के कारण आज भी बनी हुई है. केदारघाटी में पांडवों के अस्त्र-शस्त्र छोड़े जाने का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में भी मिलता है.

देव निशानों को गंगा स्नान ना कराने पर होती है अनहोनी: मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान नारायण ने पांच महीनों की नींद से जागकर तुलसी से साथ विवाह किया था.इस दिन देव निशान को गंगा स्नान व पांडव नृत्य के लिए शुभ माना गया है,इसलिए ग्रामीण देव निशानों को गंगा स्नान के लिए अवश्य लाते हैं. बताया जाता है कि यदि इस दिन देव निशानों को गंगा स्नान के लिए नहीं लाया गया, तो गांव में अवश्य कुछ न कुछ अनहोनी होती है, इसलिए ग्रामीण इस दिन को कभी नहीं भूलते हैं.

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प्रतिवर्ष गंगा स्नान के लिए आते हैं देव निशान: पांडव नृत्य समिति ग्राम पंचायत दरमोला के पुजारी गिरीश डिमरी, ग्रामीण वंदना डिमरी, किशन रावत और जसपाल पंवार ने बताया कि केदारघाटी के ग्राम पंचायत दरमोला में पांडव नृत्य का आयोजन सदियों से होता आ रहा है. यह एक ऐसा गांव है, जहां प्रतिवर्ष देव निशानों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य की परंपरा है. उन्होंने कहा कि पौराणिक संस्कृति को बचाना हम सभी का धर्म होना चाहिए.

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Last Updated : Nov 23, 2023, 4:29 PM IST
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