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'दारमा' के लोगों का बढ़ता जा रहा 'दर्द', मौत को मात देकर इस तरह कर रहे सफर

धारचूला तहसील से 70 किलोमीटर दूर दारमा घाटी का पहला माइग्रेशन गांव सेला है. इस गांव में पुल टूट जाने के कारण लोग रस्सी के सहारे आवाजाही करने को मजबूर हैं.

'दारमा' के लोगों का बढ़ता जा रहा 'दर्द.
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Published : May 9, 2019, 11:49 PM IST

पिथौरागढ़: मानसून सीजन आने से पहले ही धारचूला की दारमा घाटी में आपदा जैसे हालात पैदा हो गए है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इन दिनों माइग्रेशन शुरू हो गया है, लेकिन लोगों को निचले इलाकों से अपने मूल गांव पहुंचने के लिए जान हथेली पर रखकर सफर करना पड़ रहा है. सेला क्षेत्र में पुल न होने के कारण लोग रस्सियों के सहारे सफर करने को मजबूर हैं. वहीं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियर टूटने के कारण रास्ता बंद पड़ा हुआ है.

'दारमा' के लोगों का बढ़ता जा रहा 'दर्द.
धारचूला तहसील मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर दारमा घाटी का पहला माइग्रेशन गांव सेला है, जहां 2016 में आई आपदा के बाद क्षेत्र की लाइफलाइन कहे जाने वाला फेलिंग पुल ध्वस्त हो गया था. इस पुल के ध्वस्त होने के बाद ग्रामीण आपसी सहयोग से अस्थायी पुल का निर्माण किया था. इस पुल से निकलने पर जान का जोखिम रहता है. स्थानीय लोग स्थायी पुल के निर्माण को लेकर कई बार शासन-प्रशासन के चक्कर काट चुके है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

बता दें कि इस पुल के टूट जाने के बाद स्थायी पुल में लोग जान को दांव पर लगाकर रस्सी के सहारे आवाजाही कर रहे हैं. वहीं, सेला से नागलिंग के बीच ग्लेशियर टूटने से रास्ता बंद पड़ा हुआ है. रास्ते में 3 से 4 फीट तक बर्फ जमी होने के कारण रास्ते से आवाजाही में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. CPWD ने 30 अप्रैल तक मार्ग खोलने का दावा किया था, लेकिन हालात अभी भी जस के तस बने हुए हैं.

पिथौरागढ़: मानसून सीजन आने से पहले ही धारचूला की दारमा घाटी में आपदा जैसे हालात पैदा हो गए है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इन दिनों माइग्रेशन शुरू हो गया है, लेकिन लोगों को निचले इलाकों से अपने मूल गांव पहुंचने के लिए जान हथेली पर रखकर सफर करना पड़ रहा है. सेला क्षेत्र में पुल न होने के कारण लोग रस्सियों के सहारे सफर करने को मजबूर हैं. वहीं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियर टूटने के कारण रास्ता बंद पड़ा हुआ है.

'दारमा' के लोगों का बढ़ता जा रहा 'दर्द.
धारचूला तहसील मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर दारमा घाटी का पहला माइग्रेशन गांव सेला है, जहां 2016 में आई आपदा के बाद क्षेत्र की लाइफलाइन कहे जाने वाला फेलिंग पुल ध्वस्त हो गया था. इस पुल के ध्वस्त होने के बाद ग्रामीण आपसी सहयोग से अस्थायी पुल का निर्माण किया था. इस पुल से निकलने पर जान का जोखिम रहता है. स्थानीय लोग स्थायी पुल के निर्माण को लेकर कई बार शासन-प्रशासन के चक्कर काट चुके है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

बता दें कि इस पुल के टूट जाने के बाद स्थायी पुल में लोग जान को दांव पर लगाकर रस्सी के सहारे आवाजाही कर रहे हैं. वहीं, सेला से नागलिंग के बीच ग्लेशियर टूटने से रास्ता बंद पड़ा हुआ है. रास्ते में 3 से 4 फीट तक बर्फ जमी होने के कारण रास्ते से आवाजाही में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. CPWD ने 30 अप्रैल तक मार्ग खोलने का दावा किया था, लेकिन हालात अभी भी जस के तस बने हुए हैं.

Intro:नोट- सर इस स्टोरी के विसुअल्स मेल पर है।

पिथौरागढ़: धारचूला की दारमा घाटी में मानसून सीजन आने से पहले ही आपदा जैसे हालात पैदा हो गए है। उच्च हिमालयी इलाकों में इन दिनों माइग्रेशन शुरू हो गया है। मगर लोगों को निचले इलाकों से अपने मूल गाँव पहुंचने के लिए जान हथेली पर रखकर सफर करना पड़ रहा है। सेला क्षेत्र में पुल ना होने के कारण लोग रस्सियों के सहारे आर-पार जाने को मजबूर है। वहीं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियर टूटने के कारण रास्ता बंद है।

धारचूला तहसील मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर दारमा घाटी का पहला माइग्रेशन गाँव सेला है। जहां 2016 में आई आपदा में क्षेत्र की लाइफलाइन कहा जाने वाला फेलिंग पुल ध्वस्त हो गया था। जिसके बाद से ग्रामीण आपसी सहयोग से अस्थायी पुल का निर्माण करते है आ रहे है। इस पुल पर सफर करना जोखिम भरा है। स्थानीय लोग स्थायी पुल के निर्माण को लेकर कई बार शासन-प्रशासन के चक्कर काट चुके है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नही हुईं। आलम ये है कि स्थायी पुल में लोग जान को दाव पर लगाकर रस्सी के सहारे आवाजाही कर रहे है। वहीं सेला से नागलिंग के बीच ग्लेशियर टूटने से रास्ता बंद है। रास्ते मे तीन से चार फीट तक बर्फ जमी है। सीपीडब्ल्यूडी ने 30 अप्रैल तक मार्ग खोलने का दावा किया था लेकिन अभी भी हालात नही सुधरे है।




Body:नोट- सर इस स्टोरी के विसुअल्स मेल पर है।

पिथौरागढ़: धारचूला की दारमा घाटी में मानसून सीजन आने से पहले ही आपदा जैसे हालात पैदा हो गए है। उच्च हिमालयी इलाकों में इन दिनों माइग्रेशन शुरू हो गया है। मगर लोगों को निचले इलाकों से अपने मूल गाँव पहुंचने के लिए जान हथेली पर रखकर सफर करना पड़ रहा है। सेला क्षेत्र में पुल ना होने के कारण लोग रस्सियों के सहारे आर-पार जाने को मजबूर है। वहीं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियर टूटने के कारण रास्ता बंद है।

धारचूला तहसील मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर दारमा घाटी का पहला माइग्रेशन गाँव सेला है। जहां 2016 में आई आपदा में क्षेत्र की लाइफलाइन कहा जाने वाला फेलिंग पुल ध्वस्त हो गया था। जिसके बाद से ग्रामीण आपसी सहयोग से अस्थायी पुल का निर्माण करते है आ रहे है। इस पुल पर सफर करना जोखिम भरा है। स्थानीय लोग स्थायी पुल के निर्माण को लेकर कई बार शासन-प्रशासन के चक्कर काट चुके है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नही हुईं। आलम ये है कि स्थायी पुल में लोग जान को दाव पर लगाकर रस्सी के सहारे आवाजाही कर रहे है। वहीं सेला से नागलिंग के बीच ग्लेशियर टूटने से रास्ता बंद है। रास्ते मे तीन से चार फीट तक बर्फ जमी है। सीपीडब्ल्यूडी ने 30 अप्रैल तक मार्ग खोलने का दावा किया था लेकिन अभी भी हालात नही सुधरे है।




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