पिथौरागढ़ः पूरे देश में आगामी 21 मार्च को रंगों का त्योहार होली मनाई जाएगी. हर जगह होली की धूम मची हुई है. इसी के तहत पिथौरागढ़ की पारंपरिक कुमाऊंनी होली में इनदिनों राग और रंगों का तालमेल देखने को मिल रहा है. कुमाऊंनी होली को लेकर होल्यार राग और रंगों में पूरी तरह सराबोर हैं. बसंत पंचमी के दिन से शुरू हुई बैठकी होली के साथ खड़ी होली की धूम मची हुई है. ढोल-दमाऊ और हुड़के की धुन पर नाचते गाते हुए होल्यार घर-घर जाकर लोगों की सुख समृद्धि की कामना कर रहे हैं.
बता दें कि उत्तराखंड की कुमाऊंनी होली का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है. इस ऐतिहासिक कुमाऊंनी होली को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. माना जाता है कि 15वीं शताब्दी में चंद शासनकाल में चंपावत के चंद राजाओं के महल और इसके आस-पास स्थित काली-कुमाऊं, सुई और गुमदेश से कुमाऊंनी होली की परम्परा का उद्भव हुआ था. कुमाऊं क्षेत्र में इसके प्रचार-प्रसार में चंद राजवंश का योगदान माना जाता है.
स्थानीय मामलों के जानकार पदमादत्त पंत का कहना है कि कुमाऊंनी होली में अबीर और गुलाल के साथ बैठकी और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा चंद शासनकाल से चली आ रही है. राग और रंगों के साथ होली का तालमेल कुमाऊंनी होली के अलावा और कहीं भी देखने को नहीं मिलता है.
स्थानीय संस्कृति के जानकार रमेश चंद्र शर्मा ने बताया कि कृषि जीवन पर आधारित पहाड़ी समाज में ये त्योहार बुआई के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है. सदियों से चली आ रही कुमाऊंनी होली की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी लगातार समृद्ध होती जा रही है.
कुमाऊंनी होली के तहत बैठकी और खड़ी होली पारंपरिक रूप से अब पूरे कुमाऊं भर में मनाई जाने लगी है. बसंत पंचमी के दिन से शुरू होने वाली बैठकी होली घर की बैठकों में राग-रागनियों के साथ हारमोनियम और तबले पर गाये जाते है. इन गीतों में मीराबाई से लेकर नजीर और बहादुर शाह जफर की रचनाएं भी सुनने को मिलती हैं.
वहीं, खड़ी होली में ढोल-दमाऊं और हुड़के की धुन पर नाचते गाते होल्यार घर-घर जाकर लोगों की सुख समृद्धि की कामना करते हैं. खड़ी होली बैठकी होली के मुकाबले शास्त्रीय गीतों पर आधारित होती है. महिला होली में हर शाम बैठकी होली होती है, जिसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं. इसमें महिलाएं स्वांग रचने के साथ ही महिलाओं पर आधारित गीत विशेष रूप से गाते हैं.