पिथौरागढ़: कोरोना महामारी के चलते इस साल भी इंडो-चाइना ट्रेड आयोजित नहीं हो पायेगा. आमतौर पर इंडो-चाइना ट्रेड जून में शुरू हो जाता था, लेकिन इस बार विदेश मंत्रालय से अभी तक इसके लिए कोई निर्देश नहीं मिले हैं.
गौरतलब है कि भारत-चीन युद्ध के बाद 1991 से 2019 तक इंडो-चाइना ट्रेड बदस्तूर जारी रहा. लिपुलेख दर्रे से होने वाले इस ट्रेड में उच्च हिमालयी इलाकों के सैकड़ों व्यापारी शिरकत करते थे. ये व्यापारी घोड़े-खच्चरों से चीन तक अपना सामान पहुंचाते थे. इन्हीं की मदद से चीन से सामान लाते थे.
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वस्तु विनिमय के आधार पर होने वाले इस इंटरनेशनल ट्रेड के जरिये बॉर्डर के हजारों परिवारों की आजीविका चलती थी, लेकिन कोरोना की मार इस साल भी इंटरनेशनल ट्रेड पर पड़ी है. भारत-चीन के बीच जारी सीमा विवाद को भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार रद्द होने की बड़ी वजह माना जा रहा है.
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पिथौरागढ़ के लिपुलेख दर्रे से आयोजित होने वाला भारत-चीन स्थलीय व्यापार बीते साल की तरह इस बार भी आयोजित नहीं होगा. लगातार दूसरे साल व्यापार रद्द होने से सीमांत के हजारों परिवारों की रोजी-रोटी बुरी तरह प्रभावित हो रही है. बता दें कि भारत और चीन दोनों मुल्कों के सहयोग से आयोजित होने वाले इस व्यापार में भारतीय व्यापारी हर साल जून माह में चीनी तकलाकोट मंडी जाते थे.
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सामान के बदले अपनी जरूरत का सामान लेकर भारत लौटते थे. चीन से लाए सामान के जरिए ही व्यास घाटी के गांवों की जरूरतें पूरी होती थीं. यही नहीं भारत की व्यापारिक मंडी गुंजी पूरी तरह चीनी सामान से पटी रहती थी. भारतीय सामान के मुकाबले यहां चीनी सामान सस्ता मिलता है. तीन महीने तक होने वाले ट्रेड के दौरान गुंजी मंडी पूरी तरह आबाद भी रहती थी.