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पिथौरागढ़: पूर्व नौकरशाहों ने की सीमावर्ती गांवों को आबाद करने की लिए पहल

उत्तराखंड के सीमावर्ती जिले पिथौरागढ़ के बॉर्डर एरिया पर बसे गांवों को फिर से आबाद करने के लिए कुछ लोग आगे आए हैं. पूर्व नौकरशाहों ने भी इस दिशा में कुछ कदम बढ़ाया है, ताकि सीमांत गांवों पर फिर से बसाया जा सके.

Pithoragarh
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Published : Jun 9, 2022, 5:17 PM IST

पिथौरागढ़: उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है. खास कर सीमावर्ती जिलों और गांवों से बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है. हालांकि अब कुछ लोगों इस दिशा में काम करना शुरू किया है, ताकि पलायन के कारण खाली हो चुके गांवों को फिर से बसाया जाए. उत्तराखंड के कुछ पूर्व नौकरशाहों और अर्धसैनिक बलों के जवानों ने निर्णय लिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद वो अपना जीवन पिथौरागढ़ जिले की जौहर घाटी के सीमावर्ती गांवों को फिर से आबाद करने में लगाएंगे.

उन्हें लगता है कि पारंपरिक व्यवसायों के पुनरुद्धार और साहसिक खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के माध्यम से सीमावर्ती गांवों का पुनरोद्धार संभव है. उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों ने पिछले कुछ वर्षों में आजीविका की तलाश में बड़े पैमाने पर पलायन देखा है.
पढ़ें- उत्तराखंड संस्कृत बोर्ड: घोषित हुए 10वीं और 12वीं के रिजल्ट, लड़कियों ने मारी बाजी

पूर्व आईएएस अधिकारी सुरेंद्र सिंह पांगती की अध्यक्षता में मुनस्यारी में एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें वक्ताओं ने कहा कि वे केंद्र और राज्य सरकार पर उन नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए दबाव डालेंगे जिनके परिणामस्वरूप पारंपरिक व्यवसायों का पुनरुद्धार हो सकता है. वक्ताओं ने कहा कि तिब्बत के साथ पारंपरिक ऊनी व्यापार 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हो गया और इन पारंपरिक व्यवसायों की अनुपस्थिति में स्थानीय लोग जौहर घाटी के गांवों से नए व्यवसायों की तलाश में चले गए.

पूर्व आईटीबीपी अधिकारी श्रीराम सिंह धर्मसक्तू ने कहा कि वुडक्राफ्ट के पुराने व्यवसायों को स्थापित करने और सरकारों की मदद से औषधीय पौधों की खेती की भी जरूरत है. व्यास घाटी में हाल ही में आयोजित साइकिल रैली जैसे साहसिक खेल का आयोजन जौहर घाटी में भी किया जाना चाहिए.
पढ़ें- सीमा पर तारबाड़ तोड़ने का मामला: नेपाल नहीं दे पाया नागरिकों के बेकसूर होने के सुबूत

पांगती ने कहा कि इसके लिए पुराने ट्रेक मार्गों की मरम्मत, घाटी के गांवों में संचार प्रणाली का आधुनिकीकरण और सर्दियों के प्रवास के दौरान शेष निवासियों के घरों की सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की जरूरत है. वक्ताओं ने उन पर्यटकों के लिए इनर लाइन परमिट कानूनों में ढील देने की भी मांग की, जो एशिया के सबसे बड़े ग्लेशियर, मिलम की यात्रा करना चाहते हैं और घाटी के गांवों में पीने के पानी, बिजली, सड़कों और संचार की बुनियादी सुविधाओं को फिर से जीवंत करने के लिए उन्हें मजबूत करना चाहते हैं.

पिथौरागढ़: उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है. खास कर सीमावर्ती जिलों और गांवों से बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है. हालांकि अब कुछ लोगों इस दिशा में काम करना शुरू किया है, ताकि पलायन के कारण खाली हो चुके गांवों को फिर से बसाया जाए. उत्तराखंड के कुछ पूर्व नौकरशाहों और अर्धसैनिक बलों के जवानों ने निर्णय लिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद वो अपना जीवन पिथौरागढ़ जिले की जौहर घाटी के सीमावर्ती गांवों को फिर से आबाद करने में लगाएंगे.

उन्हें लगता है कि पारंपरिक व्यवसायों के पुनरुद्धार और साहसिक खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के माध्यम से सीमावर्ती गांवों का पुनरोद्धार संभव है. उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों ने पिछले कुछ वर्षों में आजीविका की तलाश में बड़े पैमाने पर पलायन देखा है.
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पूर्व आईएएस अधिकारी सुरेंद्र सिंह पांगती की अध्यक्षता में मुनस्यारी में एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें वक्ताओं ने कहा कि वे केंद्र और राज्य सरकार पर उन नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए दबाव डालेंगे जिनके परिणामस्वरूप पारंपरिक व्यवसायों का पुनरुद्धार हो सकता है. वक्ताओं ने कहा कि तिब्बत के साथ पारंपरिक ऊनी व्यापार 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हो गया और इन पारंपरिक व्यवसायों की अनुपस्थिति में स्थानीय लोग जौहर घाटी के गांवों से नए व्यवसायों की तलाश में चले गए.

पूर्व आईटीबीपी अधिकारी श्रीराम सिंह धर्मसक्तू ने कहा कि वुडक्राफ्ट के पुराने व्यवसायों को स्थापित करने और सरकारों की मदद से औषधीय पौधों की खेती की भी जरूरत है. व्यास घाटी में हाल ही में आयोजित साइकिल रैली जैसे साहसिक खेल का आयोजन जौहर घाटी में भी किया जाना चाहिए.
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पांगती ने कहा कि इसके लिए पुराने ट्रेक मार्गों की मरम्मत, घाटी के गांवों में संचार प्रणाली का आधुनिकीकरण और सर्दियों के प्रवास के दौरान शेष निवासियों के घरों की सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की जरूरत है. वक्ताओं ने उन पर्यटकों के लिए इनर लाइन परमिट कानूनों में ढील देने की भी मांग की, जो एशिया के सबसे बड़े ग्लेशियर, मिलम की यात्रा करना चाहते हैं और घाटी के गांवों में पीने के पानी, बिजली, सड़कों और संचार की बुनियादी सुविधाओं को फिर से जीवंत करने के लिए उन्हें मजबूत करना चाहते हैं.

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