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पिथौरागढ़: 188 सालों से हिंदू-मुस्लिम मिलकर मनाते आ रहे हैं पर्व, साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल

देश में एक ओर संप्रदाय को लेकर हिंसा सामने आ रही है. वहीं. दूसरी ओर पिथौरागढ़ में होली के माध्यम से कौमी एकता की मिसाल देखने को मिलती है. यहां के लोग सदियों से इस अनूठी परंपरा को संजोए हुए है.

होली में साम्प्रदायिक एकता की मिसाल
होली में साम्प्रदायिक एकता की मिसाल
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Published : Mar 5, 2020, 2:51 PM IST

पिथौरागढ़: कुमांऊ के विभिन्न हिस्सों में होली को अलग-अलग अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. अगर बात पिथौरागढ़ जिले की करें तो यहां होलिका अष्टमी के दिन चीर बंधन के बाद पारम्परिक खड़ी होली का आगाज होता है. चीर बंधन के इस आयोजन में जहां सदियों पुरानी संस्कृति की झलक आज भी साफ दिखाई देती है. वहीं इस मौके पर आपसी भाईचारे और साम्प्रदायिक एकता की अनूठी मिशाल भी देखने को मिलती है.

एकता की मिसाल.

पिथौरागढ़ में होलिकाष्टमी के दिन चीर बांधने के साथ ही होली का विधिवत रूप से शुभारंभ होता है. जिला मुख्यालय स्थित पुरानी बाजार में पिछले 188 सालों से ये परम्परा चली आ रही है. इस मौके पर लोग पेड़ पर लाल, पीले और सफेद निशान के कपड़े बांधते है, जिसके बाद इस पेड़ को सार्वजनिक स्थल या मंदिर के प्रांगण में स्थापित किया जाता है.

इस आयोजन में चीर बंधन के साथ ही चीर हरण की भी अद्भुत परंपरा जुड़ी हुई है, जिस गांव में चीर बांधने की परंपरा नहीं रही है वहां के लोग चीर चुराने के लिए दूसरे गांव में जाते है. चीर हरण के समय कई बार दोनों गांव वालों के बीच संघर्ष तक की नौबत आ जाती है. जिस गांव से चीर का हरण हो जाता है उसे अमंगल माना जाता है. सदियों से पिथौरागढ़ वासी अपनी इस अनूठी परंपरा को संजोए हुए है.

यह भी पढ़ेंः कोरोना के खौफ ने होली के रंग को किया फीका, बिक्री ना होने से व्यापारी मायूस

सोर घाटी पिथौरागढ़ के होली चौक के साथ ही महाकाली मंदिर गंगोलीहाट में सदियों से लगातार चीर बंधन की ये परंपरा चली आ रही है. इस दिन मां काली की पूजा का भी खास महत्व है. यहां सभी धर्मों को मानने वाले लोग एक साथ मिलकर चीर के वृक्ष को लाते हैं और अपनी-अपनी चीर पेड़ पर बांधते है. माना जाता है कि ये चीर कृष्ण की बाल लीला से जुड़ी हुई है.

जिस तरह भगवान कृष्ण गोपियों के वस्त्रों का हरण करके उन्हें पेड़ पर टांग देते हैं, उसी तरह होली के मौके पर पेड़ में चीर यानि चुनरी बांधने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. एक तरफ जहां समाज में विभिन्न जाति और धर्मों के बीच भेदभाव पूर्ण रवैया बना हुआ है. वहीं, रंगों का त्योहार होली आज भी आपसी मेलजोल और भाईचारे का प्रतीक है. इस त्योहार के दिन लोग जातीय और मजहबी भेदभाव को भुलाकर आपस में गले मिलते हैं और होली के रंगों में सराबोर नजर आते हैं.

पिथौरागढ़: कुमांऊ के विभिन्न हिस्सों में होली को अलग-अलग अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. अगर बात पिथौरागढ़ जिले की करें तो यहां होलिका अष्टमी के दिन चीर बंधन के बाद पारम्परिक खड़ी होली का आगाज होता है. चीर बंधन के इस आयोजन में जहां सदियों पुरानी संस्कृति की झलक आज भी साफ दिखाई देती है. वहीं इस मौके पर आपसी भाईचारे और साम्प्रदायिक एकता की अनूठी मिशाल भी देखने को मिलती है.

एकता की मिसाल.

पिथौरागढ़ में होलिकाष्टमी के दिन चीर बांधने के साथ ही होली का विधिवत रूप से शुभारंभ होता है. जिला मुख्यालय स्थित पुरानी बाजार में पिछले 188 सालों से ये परम्परा चली आ रही है. इस मौके पर लोग पेड़ पर लाल, पीले और सफेद निशान के कपड़े बांधते है, जिसके बाद इस पेड़ को सार्वजनिक स्थल या मंदिर के प्रांगण में स्थापित किया जाता है.

इस आयोजन में चीर बंधन के साथ ही चीर हरण की भी अद्भुत परंपरा जुड़ी हुई है, जिस गांव में चीर बांधने की परंपरा नहीं रही है वहां के लोग चीर चुराने के लिए दूसरे गांव में जाते है. चीर हरण के समय कई बार दोनों गांव वालों के बीच संघर्ष तक की नौबत आ जाती है. जिस गांव से चीर का हरण हो जाता है उसे अमंगल माना जाता है. सदियों से पिथौरागढ़ वासी अपनी इस अनूठी परंपरा को संजोए हुए है.

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सोर घाटी पिथौरागढ़ के होली चौक के साथ ही महाकाली मंदिर गंगोलीहाट में सदियों से लगातार चीर बंधन की ये परंपरा चली आ रही है. इस दिन मां काली की पूजा का भी खास महत्व है. यहां सभी धर्मों को मानने वाले लोग एक साथ मिलकर चीर के वृक्ष को लाते हैं और अपनी-अपनी चीर पेड़ पर बांधते है. माना जाता है कि ये चीर कृष्ण की बाल लीला से जुड़ी हुई है.

जिस तरह भगवान कृष्ण गोपियों के वस्त्रों का हरण करके उन्हें पेड़ पर टांग देते हैं, उसी तरह होली के मौके पर पेड़ में चीर यानि चुनरी बांधने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. एक तरफ जहां समाज में विभिन्न जाति और धर्मों के बीच भेदभाव पूर्ण रवैया बना हुआ है. वहीं, रंगों का त्योहार होली आज भी आपसी मेलजोल और भाईचारे का प्रतीक है. इस त्योहार के दिन लोग जातीय और मजहबी भेदभाव को भुलाकर आपस में गले मिलते हैं और होली के रंगों में सराबोर नजर आते हैं.

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