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द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त कुमाऊं रेजिमेंट का जहाज डूबने से बचाया था पिथौरागढ़ की महाकाली ने, खुद तैरने लगा था जहाज - Shaktipeeth

कहा जाता है कि दैत्यों का वध करने के बाद काली ने रौद्र रूप लिया था. महाकाली मंदिर के कुछ दूरी पर बसा मौत गांव जिसे आज समलकोट के नाम से भी जाना जाता है, वहां के परिवारों से नर बलि ली जाती थी. ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य को एक रात जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने मां काली को शांत किया.

महाकाली मंदिर
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Published : Apr 6, 2019, 7:14 PM IST

पिथौरागढ़: नवरात्र के पहले दिन उत्तर भारत के सबसे बड़े शक्तिपीठ महाकाली मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी. बड़ी संख्या में भक्त माता रानी के दर्शन करने के लिए मंदिर में पहुंचे. सुबह 4 बजे से ही भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया. भगवती महाकाली आज के दौर में हॉट काली के नाम से भी प्रसिद्ध हैं.

कहा जाता है कि दैत्यों का वध करने के बाद काली ने रौद्र रूप लिया था. महाकाली मंदिर के कुछ दूरी पर बसा मौत गांव जिसे आज समलकोट के नाम से भी जाना जाता है, वहां के परिवारों से नर बलि ली जाती थी. ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य को एक रात जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने मां काली को शांत किया. महाकाली का तिलक कर श्रद्धालुओं के लिए मां का द्वार पूजा पाठ के लिए खोल दिया गया. जिसके बाद से शक्ति स्थापित की गई और महाकाली के दरबार में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

शक्तिपीठ महाकाली मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी

हिंदू धर्म ग्रंथ स्कंद पुराण के मानस खंड में महाकाली की महिमा का वर्णन किया गया है. मानस कांड के अनुसार जगत जननी महाकाली को शैल पर्वत का निवासी बताया गया है. ग्रंथानुसार शुभ नामक दैत्य से पराजित होकर देवताओं ने शैल पर्वत पारकर महाकाली की तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती महाकाली के रूप में प्रकट हुईं. स्कंद पुराण के अनुसार दक्षिण में कोलकाता और उत्तर में महाकाली की महत्व अधिक है.

यह भी पढ़ें- सुरकुट पर्वत पर स्थित है मां सुरकंडा का मंदिर, नवरात्रि में लगता है भक्तों का तांता

ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त जब कुमाऊं रेजिमेंट का जहाज डूबने लगा था. तब जहाज में सवार सैनिकों ने महाकाली की जय कार की तो उनका जहाज जहाज खुद-ब-खुद तैरने लगा था.

पिथौरागढ़: नवरात्र के पहले दिन उत्तर भारत के सबसे बड़े शक्तिपीठ महाकाली मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी. बड़ी संख्या में भक्त माता रानी के दर्शन करने के लिए मंदिर में पहुंचे. सुबह 4 बजे से ही भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया. भगवती महाकाली आज के दौर में हॉट काली के नाम से भी प्रसिद्ध हैं.

कहा जाता है कि दैत्यों का वध करने के बाद काली ने रौद्र रूप लिया था. महाकाली मंदिर के कुछ दूरी पर बसा मौत गांव जिसे आज समलकोट के नाम से भी जाना जाता है, वहां के परिवारों से नर बलि ली जाती थी. ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य को एक रात जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने मां काली को शांत किया. महाकाली का तिलक कर श्रद्धालुओं के लिए मां का द्वार पूजा पाठ के लिए खोल दिया गया. जिसके बाद से शक्ति स्थापित की गई और महाकाली के दरबार में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

शक्तिपीठ महाकाली मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी

हिंदू धर्म ग्रंथ स्कंद पुराण के मानस खंड में महाकाली की महिमा का वर्णन किया गया है. मानस कांड के अनुसार जगत जननी महाकाली को शैल पर्वत का निवासी बताया गया है. ग्रंथानुसार शुभ नामक दैत्य से पराजित होकर देवताओं ने शैल पर्वत पारकर महाकाली की तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती महाकाली के रूप में प्रकट हुईं. स्कंद पुराण के अनुसार दक्षिण में कोलकाता और उत्तर में महाकाली की महत्व अधिक है.

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ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त जब कुमाऊं रेजिमेंट का जहाज डूबने लगा था. तब जहाज में सवार सैनिकों ने महाकाली की जय कार की तो उनका जहाज जहाज खुद-ब-खुद तैरने लगा था.

Intro: गंगोलीहाट। नवरात्रि के पहले दिन उत्तर भारत के सबसे बड़े शक्तिपीठ महाकाली मंदिर में सुबह 4:00 बजे से ही भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया। नवरात्रि के लिए मंदिर को पूरी तरह सजाया गया है कहा जाता है कि चंड मुंड को मारने वाली रखतबीज का खून पीने वाली तत्वों का नाश करने वाली भगवती महाकाली आज के दौर में हॉट काली के नाम से प्रसिद्ध है। हिंदू धर्म ग्रंथ स्कंद पुराण के मानस खंड में महाकाली की महिमा का वर्णन किया गया है मानस कांड के अनुसार जगत जननी महाकाली को शैल पर्वत का निवासी बताया गया है ग्रंथा अनुसार शुभ नामक दैत्य से पराजित होकर देवताओं ने शैल पर्वत ना कर महाकाली की तपस्या की थी तपस्या से प्रसन्न हो भगवती ने महाकाली के रूप में प्रकट हुई स्कंद पुराण के अनुसार दक्षिण मैं कोलकाता और उत्तर महाकाली के मंदिर की महत्ता अत्यधिक है यहां पर जो भी श्रद्धालु अपने मनोयोग से पूजा करते हैं उन्हें मन वांछित फल मिलता है कहा जाता है कि दैत्यों का वध करने के बाद महाकाली का रौद्र रूप हो गया था महाकाली मंदिर के कुछ दूरी में वसा मौत गांव जिसे आज समलकोट के नाम से जाना जाता है वहां के परिवारों से नर बलि ली जाती थी कुमाऊं ग्रहण में आए हैं शंकराचार्य वह रात को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने मां काली के रूप को शांत किया महाकाली का तिलक कर श्रद्धालुओं के लिए मां का द्वार पूजा पाठ के लिए खोल दिया गया शक्ति स्थापित की गई महाकाली के दरबार में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है फिर भी प्रत्येक वर्ष चैत्र और आश्विन मास की नवरात्रि में काली के मंदिर में भक्तों की अत्यधिक भीड़ होती है दोनों नवरात्रि की अष्टमी को मंदिर में मेला आयोजित होता है काली के मंदिर में गोदान सभी प्रकार के पाठ के अलावा पशु बलि दी जाती है अस्तबली या बलि देने की परंपरा भी सालों से चली आ रही है कुमाऊँ रेजीमेंट के आराध्य देवी के मंदिर में रेजीमेंट के सिपाही हमेशा ही आराधना वह सुंदरीकरण करते रहते हैंBody: द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त जॉब कुमाऊं रेजिमेंट का जहाज डूबने लगा था तब जहाज में सवार सैनिकों ने महाकाली की जय कार की तो उनका जहाज जहाज खुद-ब-खुद तैरने लगाConclusion: पूरी नवरात्रि भर महाकाली मंदिर में सुबह 4:00 बजे से लेकर देर रात तक भक्तों का ताता लगा रहेगा सुबह रोज महाकाली को फोन लगाया जाता है जिसमें तरह तरह के पकवान शामिल किए जाते हैं
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