देहरादून/पिथौरागढ़: उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों (Uttarakhand Local Products) की मांग बाजार में काफी ज्यादा है. ये उत्पाद जैविक होने के साथ ही लोगों की सेहत के लिए काफी फायदेमंद माने जाते हैं. सरकार भी किसानों द्वारा उत्पादित उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने में लगी है. वहीं 'बेड़ू पाको बारामासा' गीत स्वभाविक है आपने कई बार सुना होगा लेकिन उत्तराखंड के एक आईएएस ने इस गीत से आइडिया लेकर एक ऐसे उत्पाद के रूप में सार्थक किया जो कि आज मार्केट में छाया हुआ है.
पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी आशीष चौहान (District Magistrate Ashish Chauhan) ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि उनके द्वारा बेड़ू जिसे पहाड़ी अंजीर भी कहा जाता है, उसके प्रोडक्ट को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में तैयार किया जा रहा है. जिसका गजब रिस्पांस देखने को मिल रहा है. उत्तराखंड में खासतौर से पाए जाने वाले बेड़ू यानी पहाड़ी अंजीर से अचार, जैम, चटनी इत्यादि फूड प्रोडक्ट तैयार किए जा रहे हैं. दरअसल, हमने शुरू में एक पहाड़ी गीत 'बेड़ू पाको बारामासा' का जिक्र किया था. हालांकि इस लोकगीत को उत्तराखंड में लंबे समय से सुना और गाया जा रहा है.
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लेकिन इस गीत का अगर शाब्दिक मतलब निकाला जाए तो 'बेड़ू पाको बारामासा' से आप समझ सकते हैं कि उत्तराखंड में पाए जाने वाला बेड़ू फल जिसे कि पहाड़ी अंजीर भी कहा जा रहा है, उसकी उत्पादकता 12 महीने अच्छी खासी रहती है. वहीं इस गाने में आगे कहा जाता है कि 'काफल पाको चैता' यानी कि काफल चैत के महीने में ज्यादातर पकते हैं और काफल एक सीजनल फल है. लेकिन बेड़ू साल भर होने वाला फ्रूट है. ऐसे में उत्तराखंडी फल बेड़ू से तैयार होने वाले प्रोडक्ट बड़ी संख्या में बनाए जा रहे हैं, जिनकी डिमांड भी अच्छी खासी है. साथ ही प्रोडक्शन बड़ी मात्रा में किया जा रहा है.
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पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी आशीष चौहान की इस पहल को पूरे प्रदेश में सराहा जा रहा है. वहीं जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि बेड़ू को पहाड़ी अंजीर के रूप में विकसित किया जा रहा है. जिसकी उत्पादकता काफी अच्छी है और मार्केट में जिसकी मांग बढ़ रही है.