श्रीनगरः देहलचौरी स्थित मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में कांडा मेला शुरू हो गया है. इस मौके पर मजीन कांडा मेला समिति और पुजारियों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विशेष पूजन किया. पूजा अर्चना के बाद मंदिर के कपाट सुबह करीब 8 बजे खोल दिए गए. वहीं, धर्मपुर विधायक विनोद चमोली ने मंदिर में पूजा अर्चना कर मेला का विधिवत शुभारंभ किया. जबकि, काफी संख्या में भक्तों ने मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन किए.
मजीन कांडा मेला समिति के अध्यक्ष द्वारिका प्रसाद भट्ट ने बताया कि निशाण चढ़ाने का सिलसिला छोटे कांडा से शुरू हुआ. कांडा गांव से ठीक दोपहर 12ः43 मिनट पर कफोना चंद्रबदनी का पहला निशाण पहुंचा. जिसके बाद बैंज्वाड़ी के निशाण के बाद ढाई बजे भगवती मंजूघोष देवी की डोली मंदिर में पहुंंचने के बाद निशाणों को चढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ.
उन्होंने बताया कि मंदिर में निशाणों के साथ विभिन्न गांवों से छत्र भी लाए गए. जो माता मंजूघोष से अपने-अपने गांवों और परिवारों के सुख समृद्धि की कामना के लिए पहुंचे. रावतस्यू पट्टी के कांडा गांव में लगने वाले मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में विभिन्न गांवों के लोग ढोल दमाऊ के थाप पर नृत्य करते हुए देव निशाण मंदिर तक लाते हैं.
एक महीने तक मंदिर में रहेगी मां भगवती की डोली: कांडा मेले के पहले दिन कांडा गांव के मंदिर से परंपरानुसार मां भगवती की डोली ढोल नगाड़ों के साथ सिद्धपीठ मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर पहुंची. अब एक महीने तक मां भगवती की डोली मंदिर में ही रहेगी. कांडा मेले के बाद एक महीने तक सिद्धपीठ मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद रहेंगे.
यहां स्वर्ग की अप्सरा मंजू ने कमाया था पुण्यः कांडा मेला के नाम से विख्यात मंजूघोषेश्वर महादेव मजीन में एक साथ शिव, महाकाली और भगवती के आशीर्वाद का पुण्य मिलता है. किंवदंती है कि स्वर्ग की अप्सरा मंजू ने अपने क्षीण हुए पुण्यों को हासिल करने के लिए यहीं पर शिव की अराधना की थी.
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तपस्या में लीन अप्सरा मंजू को आघात पहुंचाने के लिए प्रकट हुए कोलासुर राक्षस का वध भी महाकाली ने इसी स्थान पर किया था. इसके अलावा जब भगवान शिव सती के भस्म हुए शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, उस समय यहां पर मां सती के हाथ की छोटी उंगली गिरी थी. उसके बाद से ही इसके नाम के साथ मजीन पड़ा और यह सिद्धपीठ कहलाया.
मान्यताओं है कि स्वर्ग की अप्सरा मंजू के पुण्य किसी कारणवश क्षीण हो गए थे. दोबारा पुण्य हासिल करने के लिए वो इस स्थान पर शिव की अराधना में लीन हो गई. तत्कालीन समय में इसी क्षेत्र में कोलासुर राक्षस का साम्राज्य भी था. तपस्या में लीन अप्सरा के सौंदर्य पर मोहित होकर कोलासुर के मन में उसे पाने की इच्छा हुई.
एक दिन जब अप्सरा तपस्या स्थल के आस पास भ्रमण कर रही थी तो कोलासुर और अन्य राक्षसों ने भैंस व बकरियों का रूप धारण कर लिया. कोलासुर नर भैंसे के रूप में अप्सरा के पास जाकर उस पर झपट पड़ा. भगवान शिव इस घटना को अपनी माया से देख रहे थे.
अप्सरा पर संकट देख शिव ने महाकाली को कोलासुर राक्षस का वध करने का आदेश दिए. जिस पर महाकाली भैंस और बकरी रूप लिए राक्षसों का वध कर देती है. तब से यह स्थान प्रसिद्ध सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है.
कहां है मंदिर? मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु मंजुघोष यात्रा कर इस स्थान पर आता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. यह मंदिर श्रीनगर के रावतस्यूं पट्टी के देहलचौरी से करीब दो किमी की दूरी पर पहाड़ी पर स्थित है. जबकि, श्रीनगर से इसकी दूरी 14 किलोमीटर है.