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गढ़वाल विवि में राजनीति विज्ञान पर गोष्ठी का आयोजन

इस अवसर पर राजनीति विज्ञान के शिक्षकों, शोधार्थियों एवं अन्य विद्यार्थियों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए. परिचर्चा का संचालन शोध छात्रा कनिका बड़वाल और रिपोर्टिंग शोध छात्रा नीलम द्वारा किया गया.

Garhwal University news
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Published : Jan 10, 2021, 10:04 PM IST

श्रीनगर: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से 'लोकतंत्र और सोशल मीडिया' विषय पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस अवसर पर राजनीति विज्ञान के शिक्षकों, शोधार्थियों व अन्य विद्यार्थियों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए. परिचर्चा का संचालन शोध छात्रा कनिका बड़वाल और रिपोर्टिंग शोध छात्रा नीलम द्वारा किया गया.

चर्चा के आरंभ में शोध छात्र लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि आधुनिक युग में सोशल मीडिया जनमानस की वैचारिक अभिव्यक्ति के सशक्त उपकरण के रूप में उभर कर सामने आया है और सोशल मीडिया लोकतंत्र को मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.

पढ़ें- अरविंद पांडे को किसानों ने दिखाए काले झंडे, लगाये वापस जाओ के नारे

शोध छात्र सौरभ गुप्ता ने कहा कि बिना मीडिया के डेमोक्रेसी अधूरी सी लगती है. डेमोक्रेसी और मीडिया एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. बिना मीडिया के डेमोक्रेसी को परिभाषित करना उचित नहीं होगा. विभागाध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने अंत मे सारगर्भित रूप से अपने विचार व्यक्त किए.

उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौर में सोशल मीडिया एक तरह से लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ बन गया है. डेमोक्रेसी शब्द का आशय जनता के शासन से है, लेकिन कोई भी समाज अपने आप को तब तक पूर्ण रूप से लोकतंत्र नहीं कह सकता जब तक कि वह सिर्फ कुछ ही क्षेत्रों में लोकतंत्र की पद्धति का उपयोग करता है. सोशल मीडिया में जब फेक न्यूज़ की बात होती है तो हमें यह समझना चाहिए कि कोई भी न्यूज़ फेक नहीं होती. उसके कंटेंट्स फेंक होते हैं और यही सोशल मीडिया भी में एक चिंता का विषय है.

आज के दौर में हर एक राजनीतिक दल का अपना एक सोशल सेल बना हुआ है जो 'पॉलीटिकल टेंपरेचर' मापने का एक सशक्त साधन है. पारम्परिक मीडिया जिस तरह से व्यवहार कर रहा है उससे कहीं ना कहीं हमारा लोकतंत्र कमजोर होता जा रहा है.

श्रीनगर: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से 'लोकतंत्र और सोशल मीडिया' विषय पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस अवसर पर राजनीति विज्ञान के शिक्षकों, शोधार्थियों व अन्य विद्यार्थियों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए. परिचर्चा का संचालन शोध छात्रा कनिका बड़वाल और रिपोर्टिंग शोध छात्रा नीलम द्वारा किया गया.

चर्चा के आरंभ में शोध छात्र लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि आधुनिक युग में सोशल मीडिया जनमानस की वैचारिक अभिव्यक्ति के सशक्त उपकरण के रूप में उभर कर सामने आया है और सोशल मीडिया लोकतंत्र को मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.

पढ़ें- अरविंद पांडे को किसानों ने दिखाए काले झंडे, लगाये वापस जाओ के नारे

शोध छात्र सौरभ गुप्ता ने कहा कि बिना मीडिया के डेमोक्रेसी अधूरी सी लगती है. डेमोक्रेसी और मीडिया एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. बिना मीडिया के डेमोक्रेसी को परिभाषित करना उचित नहीं होगा. विभागाध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने अंत मे सारगर्भित रूप से अपने विचार व्यक्त किए.

उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौर में सोशल मीडिया एक तरह से लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ बन गया है. डेमोक्रेसी शब्द का आशय जनता के शासन से है, लेकिन कोई भी समाज अपने आप को तब तक पूर्ण रूप से लोकतंत्र नहीं कह सकता जब तक कि वह सिर्फ कुछ ही क्षेत्रों में लोकतंत्र की पद्धति का उपयोग करता है. सोशल मीडिया में जब फेक न्यूज़ की बात होती है तो हमें यह समझना चाहिए कि कोई भी न्यूज़ फेक नहीं होती. उसके कंटेंट्स फेंक होते हैं और यही सोशल मीडिया भी में एक चिंता का विषय है.

आज के दौर में हर एक राजनीतिक दल का अपना एक सोशल सेल बना हुआ है जो 'पॉलीटिकल टेंपरेचर' मापने का एक सशक्त साधन है. पारम्परिक मीडिया जिस तरह से व्यवहार कर रहा है उससे कहीं ना कहीं हमारा लोकतंत्र कमजोर होता जा रहा है.

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