श्रीनगर: नीदरलैंड के मशहूर हास्य कलाकार रुव ववीर को ड्राइविंग करते वक्त गाड़ी में गायत्री मंत्र सुनते देखा गया. इस दौरान वो खुद भी गायत्री मंत्र का उच्चारण करते दिखाई दिए.
आपको बता दें कि हास्य कलाकार ववीर ने नीदरलैंड की बहुत सी फिल्मों, नाटकों में काम किया है. रुव ववीर द्वारा सुने जा रहे गायत्री मंत्र का सीधा ताल्लुक आध्यात्म से है. भारत में गायत्री मंत्र आध्यात्म से जुड़ा हुआ है. गायत्री मंत्र के उच्चारण से मन को शांति मिलती है. जब मन अशांत होता है तो गायत्री मंत्र के उच्चारण से शांति मिलती है.
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जब रुव ववीर गायत्री मंत्र सुन रहे थे तो उस समय उनकी गाड़ी में कोई नहीं था. वह अकेले गाड़ी में म्यूजिक सिस्टम पर गायत्री मंत्र सुन और उच्चारण कर रहे थे. रुव ववीर ने दो हफ्ते पहले ही अपने इस वीडियो को सोशल साइट पर डाला था. भारत से उनके वीडियो पर जोरदार रेस्पोंस को देखते हुए ववीर बहुत खुश हुए. उन्होंने अपनी पोस्ट में कहा कि वो सालों से गायत्री मंत्र सुन रहे हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कार चलाते समय वो विशेष रूप से गायत्री मंत्र सुनते और मंत्रोच्चार करते हैं.
महामंत्र है गायत्री मंत्र
भारत के धर्म-आध्यात्म में गायत्री मंत्र को महामंत्र माना जाता है. सुबह-शाम इसका जाप करने से मन को शांति मिलती है.
ॐ भूर्भव: स्व:।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
इसका अर्थ है...
उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें. वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे.
गायत्री मंत्र जपने के लाभ
- गायत्री मंत्र का नियमित रूप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आतीं.
- जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं. व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है.
- बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है.
- गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं.
- इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है.
सबसे पहले ऋग्वेद में मिला गायत्री मंत्र
यह मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है. इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं. वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मंत्रों में केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों ने कर लिया था और संपूर्ण ऋग्वेद के 10 सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई. इस मंत्र में 24 अक्षर हैं. उनमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण हैं. किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ:
(1) ॐ
(2) भूर्भव: स्व:
(3) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है.