पौड़ीः 10 मार्च को होने वाली मतगणना में अब चंद ही घंटे बचे हैं. सरकार चाहे किसी भी दल की बने, पर इतना तय है कि उत्तराखंड में अभी तक कोई भी सीटिंग सीएम चुनाव में उतरकर प्रदेश का सिरमौर नहीं बन पाया. इसे अपवाद कहें या नियति. मगर, उत्तराखंड की जनता ने ऐसे भी कारनामे भी किए हैं कि कोई भी सीटिंग मुख्यमंत्री दोबारा विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाया है. बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियां मुख्यमंत्री पद को लेकर उत्तराखंड में सियासी प्रयोग करती रही हैं, लेकिन उनके प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं.
जी हां! चुनाव के आंकड़े तो यही स्थिति बयां करते नजर आ रहे हैं. राज्यगठन के बाद 21 साल के इस युवा उत्तराखंड की राजनीति में एक अध्याय ऐसा भी है. जिसे उत्तराखंड के इतिहास में आज तक बदला नहीं जा सका. या यूं कहें कि उत्तराखंड का कोई भी मुख्यमंत्री ऐसा नहीं हुआ, जो सीटिंग मुख्यमंत्री होते हुए दोबारा अपनी पार्टी को चुनाव जीता पाया हो. धामी से पहले तीन मुख्यमंत्री फिलहाल इस कोशिश में नाकाम साबित हुए. अभी तक तीन दिग्गज नेता बतौर सीएम रहते विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए इस अपवाद को तोड़ नहीं पाए.
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सीएम रहते चुनाव में उतरे पर नहीं बनी सरकार: उत्तराखंड में अभी तक तीन सीएम हुए जिन्होंने टीम लीडर रहते हुए अपनी टीम को जीत दिलाने में कोई खास कारनामा नहीं किया. ऐसे पहले दिग्गज नेता भगत सिंह कोश्यारी. जो उत्तराखंड की पहली अंतरिम सरकार में 30 अक्टूबर 2021 से 1 मार्च 2002 तक 123 दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे. भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में उत्तराखंड का पहला विधानसभा चुनाव लड़ा गया. तत्कालीन सीएम कोश्यारी अपने गृह जनपद बागेश्वर की कपकोट विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. लेकिन बतौर कैप्टन वह बीजेपी को चुनाव जिताने में नाकाम साबित हुए और फिर कांग्रेस सरकार में उन्होंने बतौर नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई.
वहीं, इन दिग्गजों में दूसरा नाम आता है बीसी खंडूड़ी का. उत्तराखंड की दूसरी विधानसभा के चौथे मुख्यमंत्री बने बीसी खंडूड़ी 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009 तक तथा फिर 11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012 तक सीएम रहे. बतौर सीएम उन्होंने कोटद्वार विधानसभा से चुनाव लड़ा और उन्हें मुंह की खानी पड़ी. इस चुनाव के बाद बीजेपी उत्तराखंड की सत्ता से बाहर हो गई.
इसके बाद तीसरे दिग्गज कांग्रेस के लोकप्रिय नेता हरीश रावत का कार्यकाल भी काफी उथल पुथल भरा रहा. विजय बहुगुणा के करीब दो साल के कार्यकाल के बाद हरीश रावत 1 फरवरी 2014 से 18 मार्च 2017 तक सीएम रहे. हालांकि, इनके कार्यकाल में पहली बार उत्तराखंड की जनता ने राष्ट्रपति शासन भी दिखा.
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बावजूद इसके बतौर सीएम इनको भी हार का मुंह देखना पड़ा. 2017 के चुनाव में सीएम रहते हुए हरीश रावत ने दो विधानसभाओं हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा और किच्छा से चुनाव लड़ा और इन दोनों ही विधानसभा सीटों से हरीश रावत को करारी शिकस्त मिली. जिसके बाद उत्तराखंड से कांग्रेस की सरकार रुखस्त हो गई.
ऐसे में अब इस विधानसभा चुनाव में बतौर सीएम रहते हुए पुष्कर धामी चुनावी रण में उतरे हैं और खटीमा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं. लिहाजा, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस अपवाद को मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तोड़ पाते हैं या नहीं? क्योंकि सीएम धामी को प्रदेश की कमान काफी कम समय के लिए सौंपी गई और उन्हें टी-20 की तर्ज पर लास्ट ओवर ही खेलने को मिले. हालांकि, सीएम धामी की यह पारी कितनी सफल रही यह तो जनादेश ही बताएगा.