श्रीनगर: चमचमाती बिल्डिंग, एसी ऑफिस, लाखों का सैलरी पैकेज और हर तरफ चकाचौंध होने के बाद भी शरद तिवाड़ी का मन उनकी नौकरी में नहीं लगा. कुछ नया करने की चाह में शरद तिवाड़ी ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी को बाय-बाय कह दिया. जिसके बाद सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग शरद तिवाड़ी ने गांव की ओर रुख किया. यहां उन्होंने रोजगार के नये आयाम ढूंढें. आज आलम ये है कि शरद खुद के साथ कई लोगों को रोजगार दे रहे हैं. इसके साथ ही वे अपनी मेहनत से प्रदेश की प्रदेश की कला, संस्कृति को संरक्षित करने का काम भी कर रहे हैं.
बता दें कीर्तिनगर के जाखड़ी के रहने वाले शरद तिवाड़ी क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा के रूप में उभरे हैं. कुछ महीने पहले शरद दिल्ली की नामचीन कंपनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम करते थे. जहां उन्हें 10 लाख का सालाना पैकेज भी मिला करता था, लेकिन कुछ नया करने की चाह में शरद ने नौकरी को छोड़कर अपने गांव की ओर रुख किया.
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गांव लौटने के बाद उन्होंने स्वरोजगार के क्षेत्र में काम किया. उन्होंने अपने घर पर ही बुक मैन्युफैक्चरिंग का काम शुरू किया. इसमें भी वे अपनी संस्कृति को नहीं भूले. उन्होंने अपने द्वारा बनाई गई बुक्स में पहाड़ी लोक कला, संस्कृति को इसके डिजाइनों में जगह दी. जिसे लोगों ने खूब पसंद किया. शरद के इस काम को लोगों ने भी खूब प्रोत्साहित किया. आज शरद अपने साथ कई लोगों को रोजगार दे रहे हैं. वे क्षेत्र के युवाओं के लिए एक आर्दश बनकर उभर रहे हैं.
जब शरद से उनके काम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा परदेश में अच्छा पैसा होने के बाद भी मन को शांति नहीं मिलती है. परदेश में हमेशा ही अपनों की याद सताती रहती है. जिसके कारण उन्होंने गांव की ओर लौटने और स्वरोजगार करने का मन बनाया. उन्होंने कहा स्वरोजगार से वे अन्य युवाओं को भी रोजगार देना चाहते हैं, जिसमें वे कई हद तक सफल भी हुए हैं.
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वहीं, बेटे शरद की इस कामयाबी से उनके पिता भी काफी खुश हैं. वे कहते हैं अब बेटा आखों के सामने हैं, बस वो ईमानदारी से काम करें, जिससे उसे उसके सपनों की मंजिल मिल सके. दूसरी तरफ अन्य युवा भी शरद को को अपना रोल मॉडल भी मानने लगे हैं. वे लगातार शरद से उनके काम की बारीकियां सिख रहे हैं.