श्रीनगर: प्रसिद्ध कमलेश्वर मंदिर में घृत कमल का अनुष्ठान विधि-विधान के साथ पूरा हो गया है. मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने दिगम्बर अवस्था में जहां मंदिर की लोट परिक्रमा की. वहीं, भगवान शिव को 56 प्रकार का भोग लगाया गया. पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्व काल में भगवान शिव को वैराग्य से सांसारिक दुनिया में लाने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर भगवान शिव की इसी प्रकार पूजा-अर्चना की थी. उसी रीति-रिवाज के ये पूजा अभी तक की जा रही है.
मान्यता के अनुसार, भगवान शिव में कामसक्त भावना को जागृत करने के लिए घी का लेपन किया जाता है. इस परंपरा को आज तक प्रसिद्ध कमलेश्वर मंदिर में अचला सप्तमी के दिन इस तरह का अनुष्ठान आयोजित किया जाता है. वैसे तो कमलेश्वर मंदिर में कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नि:स्तान दंपति मंदिर में खड़े दीपक का अनुष्ठान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण खुद खड़े दीपक का अनुष्ठान कर चुके हैं, जिसके फल स्वरूप उन्हें स्वाम नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी.
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पुराणों के अनुसार जब भगवान शिव माता सती की मृत्यु के बाद विरक्त को गए थे, तो धरती पर तारकासुर नामक राक्षस के आतंक बढ़ने के बाद भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि इस असुर का वध भगवान शिव के पुत्र द्वारा किया जाएगा. जिसके बाद मां पार्वती को शिव विवाह के लिए मनाया गया. भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया. विवाह के पश्चात कार्तिकेय का जन्म हुआ और तारकासुर नामक असुर का वध कार्तिकेय द्वारा किया गया. देवताओं द्वारा भगवान शिव को विरक्त भावना से जागृत करने के लिए घृत कमल की पूजा की गई. ये पूजा देवताओं ने भगवान शिव की कामसक्त भावना को जागृत करने के लिए की थी.
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ये पूजा कमलेश्वर मंदिर में उसी रीति-रिवाज से की जाती है. श्रीनगर में 74 साल के बुजुर्ग मनोहर लाल कालड़ा बताते हैं कि वे इस अनुष्ठान को 20 साल से देखते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि कमलेश्वर मंदिर में अगर कोई भक्त भगवान कमलेश्वर के सामने मनौती मांगता है, उनकी हर मनोकामना भगवान पूरी करते हैं. हरि सिंह बिष्ट और कुशला नन्द भट्ट का कहना है कि वो हर दिन पूजा-अर्चना के लिए कमलेश्वर मंदिर आते हैं. उनकी भगवान कमलेश्वर में अटूट आस्था है. वहीं, मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने घृत कमल पूजा के बारे में बताया कि यह पूजा भगवान शिव की कामसक्त भावना को जागृत करने के लिए देवताओं द्वारा की गई थी, जिसे आज तक कमलेश्वर मंदिर में उसी विधि-विधान से किया जाता है.