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पौड़ी: लोकभाषा के संरक्षण की कवायद, गढ़वाली सिलेबस पढ़ रहे नौनिहाल

उत्तराखंड सरकार गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा के संरक्षण पर विशेष जोर दे रही है. पौड़ी में गढ़वाली भाषा को पाठ्यक्रम मे शामिल कर पढ़ाना शुरू किया जा चुका है. वहीं, अब कुमाऊंनी भाषा में भी पाठ्यक्रम शुरू करने की कवायद की जा रही है. गढ़वाली भाषा में पाठ्यक्रम शुरू किए जाने की पहल को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है.

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Published : Nov 13, 2019, 7:36 PM IST

Updated : Nov 13, 2019, 10:23 PM IST

पौड़ीः जिले के स्कूलों में गढ़वाली भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा चुका है. प्राथमिक स्तर पर गढ़वाली लोक भाषा को पाठ्यक्रम की मदद से नौनिहालों को पढ़ाया और सिखाया जा रहा है. जिसमें शिक्षक भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. जबकि, छात्र भी लोक भाषा में पढ़ने में काफी रुचि ले रहें हैं. पौड़ी में गढ़वाली भाषा की पाठ्यक्रम शुरू की जा चुकी है. वहीं, अब कुमाऊंनी भाषा में भी पाठ्यक्रम शुरू करने की कवायद की जा रही है. मामले पर साहित्यकारों का कहना है कि इससे लोक बोली-भाषाओं के संरक्षण में मदद मिलेगी.

उत्तराखंड सरकार गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा पर विशेष जोर दे रही है. गढ़वाली भाषा में पाठ्यक्रम शुरू किए जाने की पहल को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है. गढ़वाली साहित्यकार लेखक और संपादक गणेश कुकशाल का गढ़वाली पाठ्यक्रम को लिखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वे बीते 33 सालों से गढ़वाली लोक बोली-भाषा पर काम कर रहे हैं.

गढ़वाली पाठ्यक्रम पढ़ रहे नौनिहाल.

ये भी पढे़ंः इस सरकारी स्कूल की शिक्षकों और बच्चों ने बदल दी तस्वीर, दूसरे स्कूलों के लिए बना नजीर

उनका कहना है कि वे एक पत्रिका के लिए संपादक के रूप में काम भी कर रहे हैं और उनका प्रयास रहता है कि सभी सार्वजनिक मंचों, शिक्षण कार्यक्रमों में लोक बोली-भाषाओं को बोलें, जिससे हमारी लोक बोली-भाषाओं से जुड़े लोगों को कार्यक्रम पंसद आए. यह अपनी लोक बोली-भाषा को बचाने के लिए एक सरल माध्यम भी है.

कुकशाल ने बताया कि कुछ सालों से गढ़वाली भाषा का वातावरण बनने लगा है और उन्हें लगता है कि यह गढ़वाली भाषा का स्वर्णिमकाल है. साथ ही कहा कि पहले एक दौर ऐसा भी था जब व्यक्ति अपनी लोक बोली-भाषा में बात करने में कतराता था. इतना ही नहीं समाज में लोक भाषा बोलने में खुद को अलग महसूस करता था.

ये भी पढे़ंः उत्तराखंडः दीनदयाल उपाध्याय उत्कृष्टता पुरस्कारों से 50 विद्यालयों को किया जाएगा पुरस्कृत

बीते कुछ सालों में बदलते समय के साथ-साथ लोग अपनी बोली-भाषाओं को मजबूत करने और उसे बोलने में गौरव महसूस कर रहे हैं. इसके लिए सरकार भी लगातार प्रयास कर रही है. जिससे उत्तराखंड की लोक बोली-भाषा को लुप्त होने से बचाया जा सके और आने वाली पीढ़ी को इससे रूबरू कराया जा सके.

उन्होंने कहा कि लोक बोली-भाषा को ज्यादा से ज्यादा बोलनी चाहिए. साथ ही अलग-अलग भाषाओं को भी सीखना चाहिए, लेकिन हमें अपनी लोक बोली-भाषा का पूरा ज्ञान होना चाहिए और उसे बोलने में गर्व महसूस करना चाहिए.

पौड़ीः जिले के स्कूलों में गढ़वाली भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा चुका है. प्राथमिक स्तर पर गढ़वाली लोक भाषा को पाठ्यक्रम की मदद से नौनिहालों को पढ़ाया और सिखाया जा रहा है. जिसमें शिक्षक भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. जबकि, छात्र भी लोक भाषा में पढ़ने में काफी रुचि ले रहें हैं. पौड़ी में गढ़वाली भाषा की पाठ्यक्रम शुरू की जा चुकी है. वहीं, अब कुमाऊंनी भाषा में भी पाठ्यक्रम शुरू करने की कवायद की जा रही है. मामले पर साहित्यकारों का कहना है कि इससे लोक बोली-भाषाओं के संरक्षण में मदद मिलेगी.

उत्तराखंड सरकार गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा पर विशेष जोर दे रही है. गढ़वाली भाषा में पाठ्यक्रम शुरू किए जाने की पहल को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है. गढ़वाली साहित्यकार लेखक और संपादक गणेश कुकशाल का गढ़वाली पाठ्यक्रम को लिखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वे बीते 33 सालों से गढ़वाली लोक बोली-भाषा पर काम कर रहे हैं.

गढ़वाली पाठ्यक्रम पढ़ रहे नौनिहाल.

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उनका कहना है कि वे एक पत्रिका के लिए संपादक के रूप में काम भी कर रहे हैं और उनका प्रयास रहता है कि सभी सार्वजनिक मंचों, शिक्षण कार्यक्रमों में लोक बोली-भाषाओं को बोलें, जिससे हमारी लोक बोली-भाषाओं से जुड़े लोगों को कार्यक्रम पंसद आए. यह अपनी लोक बोली-भाषा को बचाने के लिए एक सरल माध्यम भी है.

कुकशाल ने बताया कि कुछ सालों से गढ़वाली भाषा का वातावरण बनने लगा है और उन्हें लगता है कि यह गढ़वाली भाषा का स्वर्णिमकाल है. साथ ही कहा कि पहले एक दौर ऐसा भी था जब व्यक्ति अपनी लोक बोली-भाषा में बात करने में कतराता था. इतना ही नहीं समाज में लोक भाषा बोलने में खुद को अलग महसूस करता था.

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बीते कुछ सालों में बदलते समय के साथ-साथ लोग अपनी बोली-भाषाओं को मजबूत करने और उसे बोलने में गौरव महसूस कर रहे हैं. इसके लिए सरकार भी लगातार प्रयास कर रही है. जिससे उत्तराखंड की लोक बोली-भाषा को लुप्त होने से बचाया जा सके और आने वाली पीढ़ी को इससे रूबरू कराया जा सके.

उन्होंने कहा कि लोक बोली-भाषा को ज्यादा से ज्यादा बोलनी चाहिए. साथ ही अलग-अलग भाषाओं को भी सीखना चाहिए, लेकिन हमें अपनी लोक बोली-भाषा का पूरा ज्ञान होना चाहिए और उसे बोलने में गर्व महसूस करना चाहिए.

Intro:जनपद पौड़ी में गढ़वाली लोक भाषा की शुरुआत पाठ्यक्रम के माध्यम से हो चुकी है प्राथमिक स्तर पर गढ़वाली लोक भाषा को पाठ्यक्रम की मदद से मासूम नौनिहालों को पढ़ाया और सिखाया जा रहा है जिसमें कि शिक्षक भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। और बच्चे भी लोक भाषा में पढ़ने में काफी रुचि ले रहे हैंम उत्तराखंड सरकार की ओर से अब गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं पर जोर दिया जा रहा है जनपद पौड़ी में गढ़वाली भाषा की पाठ्यक्रम पुस्तिकाएं शुरू की जा चुकी है और अब जल्द ही कुमाऊनी भाषा पर पाठ्यक्रम की शुरुआत भी की जाएगी जिससे लोक भाषाओ को संरक्षण करने में मदद मिल पाएगी।






Body:सरकार की ओर से गढ़वाली पाठ्यक्रम शुरू किए जाने की पहल को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा। सरकार का ध्यान भी अब अपनी  लोक भाषाओं की तरफ जाने लगा है। गढ़वाली  साहित्यकार लेखक व संपादक गणेश कुकशाल जिन्होंने गढ़वाली पाठ्यक्रम को लिखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है उन्होंने  बताया कि वह विगत 33 सालों से गढ़वाली लोक भाषा पर काम कर रहे हैं वह एक पत्रिका के लिए संपादक के रूप में काम कर रहे हैं और उनका प्रयास रहता है कि वह सभी सार्वजनिक मंचो शिक्षण कार्यक्रमों में लोक भाषाओं का अधिक से अधिक प्रयोग करें जो हमारी लोक भाषाओं से जुड़े लोग है उन्हें   इन कार्यक्रम में अधिक आनंद आये। यह कार्यक्रम अपनी लोक भाषा को बचाने के लिए एक सरल माध्यम भी है। बताया कि कुछ सालों से गढ़वाली भाषा का वातावरण बनने लगा है और उन्हें लगता है कि यह गढ़वाली भाषा का स्वर्णिमकाल है।


Conclusion:पहले एक दौर था जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी लोक भाषा में बात करने में कतरा था वह समाज में लोक भाषा का प्रयोग करने में अलग महसूस करता था लेकिन बीते कुछ सालों में बदलते समय के साथ-साथ अपनी लोग भाषाओं को मजबूत करने और उसे बोलने में गौरव महसूस करने लगे हैं इसके लिए सरकार भी निरंतर प्रयास कर रही है ताकि जो उत्तराखंड की लोक भाषा है उन्हें लुप्त होने से बचाया जा सके और हमारी जो आने वाली पीढ़ी है उसे बताया जा सके कि हमारी रोजमर्रा की वस्तुओं को हमारी लोक भाषा में क्या नाम दिया जाता है और उनका क्या महत्व है हमें अपने काम के अनुसार अलग-अलग भाषाओं को सीखना चाहिए लेकिन हमें अपनी लोग भाषा का पूरा ज्ञान होना चाहिए और उसे बोलने में गर्व महसूस करना चाहिए।

बाईट-गणेश कुकशाल(गढ़वाली साहित्यकार)
Last Updated : Nov 13, 2019, 10:23 PM IST
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