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गढ़वाल राइफल्स की वीरता के 135 गौरवशाली वर्ष, जो कहता है...बढ़े चलो गढ़वालियों बढ़े चलो

उत्तराखंड में स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट (Garhwal Rifles Regiment) का युद्ध नारा है 'बद्री विशाल लाल की जय'. गढ़वालियों की युद्ध क्षमता की असल परीक्षा प्रथम विश्व युद्ध में हुई जब गढ़वाली ब्रिगेड ने 'न्यू शैपल' पर बहुत विपरीत परिस्थितियों में हमला कर जर्मन सैनिकों को खदेड़ दिया था. 10 मार्च 1915 के इस घमासान युद्ध में सिपाही गब्बर सिंह नेगी ने अकेले एक महत्वपूर्ण निर्णायक एवं सफल भूमिका निभाई. कई जर्मन सैनिकों को सफाया कर खुद भी वह वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 45 के बीच में गढ़वाल राइफल्स ने अपनी अहम भूमिका निभाई.

135th Raising Day of Garhwal Rifles
गढ़वाल राइफल्स का 135वां स्थापना दिवस
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Published : May 5, 2022, 4:00 PM IST

कोटद्वार: आज का दिन उत्तराखंड के लिए वीर और गौरवशाली इतिहास से भरा है. देवभूमि जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक पर्यटन स्थलों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. वहीं, यह देवभूमि की माटी कई वीर गाथाओं और शहादत के लिए भी जानी जाती है. उत्तराखंड के लिए आज का दिन पराक्रम और वीरता को याद करने का गौरवशाली दिन भी है. ‌आज गढ़वाल राइफल्स का 135वां स्थापना दिवस (135th Raising Day of Garhwal Rifles) धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, धन सिंह रावत, मदन कौशिक समेत कई नेताओं ने ट्वीट करते हुए शुभकामनाएं दी हैं.

बता दें कि गढ़वाल राइफल्स की स्थापना 5 मई 1887 अल्मोड़ा में हुई थी. बाद में इसी साल 4 नवंबर 1887 को लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स की छावनी स्थापित की गई है. वर्तमान में यह गढ़वाल राइफलस रेजिमेंट का ट्रेनिंग सेंटर है. साल 1890 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हेनरी लैंसडाउन के नाम पर तत्कालीन उत्तराखंड के क्षेत्र कालुडांडा को लैंसडाउन नाम दिया गया था. वर्तमान में यह स्थान उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है.

पढ़ें- क्या है परिसंपत्ति विवाद ? योगी-धामी की बैठक सफल रही तो उत्तराखंड को होगा ये फायदा

गढ़वाल राइफल्स को मिली पहचान: गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है. 1891 में 2-3 गोरखा रेजिमेंट की दो कंपनियों से एक गोरखा पलटन 2-3 क्वीन अलेक्टजेन्टास आन (बटालियन का नाम) खड़ी की गई और शेष बटालियन को दोबारा नए बंगाल इन्फेंट्री की 39वीं गढ़वाल रेजिमेंट के नाम से जाना गया.

बैज से गोरखाओं की खुखरी हटाकर उसका स्थान फीनिक्स बाज को दिया गया. इसने गढ़वाल राइफल्स को अलग रेजिमेंट की पहचान दी. 1891 में फीनिक्स का स्थान माल्टीज क्रॉस ने लिया. इस पर 'द गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट' अंकित था. बैज के ऊपर पंख फैलाए बाज थे, यह पक्षी शुभ माना जाता था. इससे गढ़वालियों की सेना में अपनी पहचान का शुभारंभ हुआ.

गढ़वाल राइफल्स का एक स्वर्णिम इतिहास है. आज गढ़वाल राइफल्स की 2 गढ़वाल से 22 गढ़वाल तक यूनिट है. वहीं, जोशीमठ में स्थाई रूप से गढ़वाल स्काउट्स है. वहीं 121 इको व 127 इको बटालियन भी है. साथ ही गढ़वाल राइफल्स के 14 आरआर, 36 आरआर व 48 आरआर में अपनी सेवाएं देते हैं.

पढ़ें- केदारनाथ में बर्फबारी से यात्रा तैयारियों में व्यवधान, कल खुल रहे हैं धाम के कपाट

वहीं, दो प्रादेशिक सेना भी गढ़वाल राइफल्स के तहत हैं. लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स का ट्रेनिंग सेंटर है. जिसमें अल्फा, ब्रावो, चार्ली, डेल्टा कम्पनी में रिक्रूटमेंट होती है. वहीं, एक कंपनी के रिक्रूट कोटद्वार में भी रहते हैं. हालांकि, सभी टेस्ट लैंसडाउन में ही सम्पन होते है, जिसके बाद यहीं कसम परेड होती है. तब जाकर एक रंगरूट जवान के रूप में तैयार होता है.

वीर गब्बर सिंह नेगी, दरबान सिंह, जसवंत सिंह रावत, लाट सूबेदार बलभद्र सिंह, चन्द्र सिंह गढ़वाली, अशोक चक्र विजेता भवानी दत्त जोशी आदि अनेकों वीरों ने गढ़वाल राइफल्स के मान सम्मान को अपनी वीरता शूरता से पूरी दुनिया में बढ़ाया है. नूरानांग हो या टीथवाल हो, द्रास हो या बटालिक आदि युद्ध क्षेत्रों में गढ़वाली वीरों की वीरता दशकों से जीवंत रूप में मौजूद है.

गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट युद्ध का नारा है,'ब्रदी विशाल लाल की जय': उत्तराखंड में स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट का युद्ध नारा है 'बद्री विशाल लाल की जय'. गढ़वालियों की युद्ध क्षमता की असल परीक्षा प्रथम विश्व युद्ध में हुई जब गढ़वाली ब्रिगेड ने 'न्यू शैपल' पर बहुत विपरीत परिस्थितियों में हमला कर जर्मन सैनिकों को खदेड़ दिया था.

10 मार्च 1915 के इस घमासान युद्ध में सिपाही गब्बर सिंह नेगी ने अकेले एक महत्वपूर्ण निर्णायक व सफल भूमिका निभाई. कई जर्मन सैनिकों को सफाया कर खुद भी वह वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 45 के बीच में गढ़वाल राइफल्स ने अपनी अहम भूमिका निभाई. ऐसे ही 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 का भारत-पाक युद्ध, शांति सेना द्वारा ऑपरेशन पवन (1987-88) उसके बाद 1999 में पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने अपनी वीरता से दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए.

पढ़ें- Kedarnath Yatra: केदारनाथ की उत्सव डोली गौरीकुंड से रवाना, शुक्रवार को खुलेंगे कपाट

'तलवार चाहिए न कोई ढाल चाहिए, गढ़वालियों के खून में उबाल चाहिए': 'बढ़े चलो गढ़वालियों बढ़े चलो' गीत के साथ देश दुनिया को अपना पराक्रम दिखाने वाले दुनिया की सबसे बड़े सैनिक परिवार की नींव आज ही रखी गई थी. जंग में जोशीले नारे 'ब्रदी विशाल लाल की जय' उद्घोष के साथ वीर सैनिकों में एक जोश भर जाता है. आज स्थापना दिवस पर गढ़वाल राइफल्स सेंटर के रेजिमेंटल मंदिर में पूजा अर्चना के साथ विधिवत सैनिकों द्वारा रेजिमेंट की खुशहाली के लिए पूजा की जाती है. उसके बाद सेंटर के सभी सैनिक वॉर मेमोरियल/ युद्ध स्मारक में जाकर मेमोरियल में पुष्प चक्र भेंट कर शहीद सैनिक को याद किया जाता है. सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा गढ़वाल राइफल्स के वीर सैनिकों द्वारा शौर्य गाथा का उद्घोष किया जाता है.

अब तक गढ़वाल राइफल्स की इन बटालियनों की हुई स्थापना: पहली गढ़वाल राइफल्स-5 मई 1887 को अल्मोड़ा में गाठित हुई और 4 नवंबर 1887 को लैंसडाउन में छावनी बनाई गई. उसके बाद द्वितीय गढ़वाल राइफल्स 1 मार्च 1901 को लैंसडाउन में गठित हुई. जबकि तृतीय गढ़वाल राइफल्स का गठन 20 अगस्त 1916 को लैंसडाउन में हई. चौथी गढ़वाल राइफल्स का स्थापना 28 अगस्त 1918 और 5वीं गढ़वाल राइफल्स का स्थापना 1 फरवरी 1941 का लैंसडाउन में हई.

पढ़ें- हरिद्वार में यूपी के होटल भागीरथी का लोकार्पण, योगी ने धामी को सौंपी अलकनंदा गेस्ट हाउस की चाभी

वहीं, 6वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 15 सितंबर 1941 और 7वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 जुलाई 1942 को लैंसडाउन में हुआ. 8वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जुलाई 1948 और 9वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जनवरी 1965 को कोटद्वार में हुआ. जबकि, 10वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 15 अक्टूबर 1965 को कोटद्वार में ही हुआ. 11वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जनवरी 1967 को बंगलुरु में हुआ.

उधर, 12वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 जून 1971 को और 13वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जनवरी 1976 को लैंसडाउन में हुआ. 14वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक सितंबर 1980 को और 16वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 मार्च 1981 को कोटद्वार में हुआ. जबकि, 17वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक मई 1982, 18वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक फरवरी 1985 और 19वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 मई 1985 को कोटद्वार में ही हुआ.

कोटद्वार: आज का दिन उत्तराखंड के लिए वीर और गौरवशाली इतिहास से भरा है. देवभूमि जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक पर्यटन स्थलों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. वहीं, यह देवभूमि की माटी कई वीर गाथाओं और शहादत के लिए भी जानी जाती है. उत्तराखंड के लिए आज का दिन पराक्रम और वीरता को याद करने का गौरवशाली दिन भी है. ‌आज गढ़वाल राइफल्स का 135वां स्थापना दिवस (135th Raising Day of Garhwal Rifles) धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, धन सिंह रावत, मदन कौशिक समेत कई नेताओं ने ट्वीट करते हुए शुभकामनाएं दी हैं.

बता दें कि गढ़वाल राइफल्स की स्थापना 5 मई 1887 अल्मोड़ा में हुई थी. बाद में इसी साल 4 नवंबर 1887 को लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स की छावनी स्थापित की गई है. वर्तमान में यह गढ़वाल राइफलस रेजिमेंट का ट्रेनिंग सेंटर है. साल 1890 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हेनरी लैंसडाउन के नाम पर तत्कालीन उत्तराखंड के क्षेत्र कालुडांडा को लैंसडाउन नाम दिया गया था. वर्तमान में यह स्थान उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है.

पढ़ें- क्या है परिसंपत्ति विवाद ? योगी-धामी की बैठक सफल रही तो उत्तराखंड को होगा ये फायदा

गढ़वाल राइफल्स को मिली पहचान: गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना का एक सैन्य-दल है. 1891 में 2-3 गोरखा रेजिमेंट की दो कंपनियों से एक गोरखा पलटन 2-3 क्वीन अलेक्टजेन्टास आन (बटालियन का नाम) खड़ी की गई और शेष बटालियन को दोबारा नए बंगाल इन्फेंट्री की 39वीं गढ़वाल रेजिमेंट के नाम से जाना गया.

बैज से गोरखाओं की खुखरी हटाकर उसका स्थान फीनिक्स बाज को दिया गया. इसने गढ़वाल राइफल्स को अलग रेजिमेंट की पहचान दी. 1891 में फीनिक्स का स्थान माल्टीज क्रॉस ने लिया. इस पर 'द गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट' अंकित था. बैज के ऊपर पंख फैलाए बाज थे, यह पक्षी शुभ माना जाता था. इससे गढ़वालियों की सेना में अपनी पहचान का शुभारंभ हुआ.

गढ़वाल राइफल्स का एक स्वर्णिम इतिहास है. आज गढ़वाल राइफल्स की 2 गढ़वाल से 22 गढ़वाल तक यूनिट है. वहीं, जोशीमठ में स्थाई रूप से गढ़वाल स्काउट्स है. वहीं 121 इको व 127 इको बटालियन भी है. साथ ही गढ़वाल राइफल्स के 14 आरआर, 36 आरआर व 48 आरआर में अपनी सेवाएं देते हैं.

पढ़ें- केदारनाथ में बर्फबारी से यात्रा तैयारियों में व्यवधान, कल खुल रहे हैं धाम के कपाट

वहीं, दो प्रादेशिक सेना भी गढ़वाल राइफल्स के तहत हैं. लैंसडाउन में गढ़वाल राइफल्स का ट्रेनिंग सेंटर है. जिसमें अल्फा, ब्रावो, चार्ली, डेल्टा कम्पनी में रिक्रूटमेंट होती है. वहीं, एक कंपनी के रिक्रूट कोटद्वार में भी रहते हैं. हालांकि, सभी टेस्ट लैंसडाउन में ही सम्पन होते है, जिसके बाद यहीं कसम परेड होती है. तब जाकर एक रंगरूट जवान के रूप में तैयार होता है.

वीर गब्बर सिंह नेगी, दरबान सिंह, जसवंत सिंह रावत, लाट सूबेदार बलभद्र सिंह, चन्द्र सिंह गढ़वाली, अशोक चक्र विजेता भवानी दत्त जोशी आदि अनेकों वीरों ने गढ़वाल राइफल्स के मान सम्मान को अपनी वीरता शूरता से पूरी दुनिया में बढ़ाया है. नूरानांग हो या टीथवाल हो, द्रास हो या बटालिक आदि युद्ध क्षेत्रों में गढ़वाली वीरों की वीरता दशकों से जीवंत रूप में मौजूद है.

गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट युद्ध का नारा है,'ब्रदी विशाल लाल की जय': उत्तराखंड में स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट का युद्ध नारा है 'बद्री विशाल लाल की जय'. गढ़वालियों की युद्ध क्षमता की असल परीक्षा प्रथम विश्व युद्ध में हुई जब गढ़वाली ब्रिगेड ने 'न्यू शैपल' पर बहुत विपरीत परिस्थितियों में हमला कर जर्मन सैनिकों को खदेड़ दिया था.

10 मार्च 1915 के इस घमासान युद्ध में सिपाही गब्बर सिंह नेगी ने अकेले एक महत्वपूर्ण निर्णायक व सफल भूमिका निभाई. कई जर्मन सैनिकों को सफाया कर खुद भी वह वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 45 के बीच में गढ़वाल राइफल्स ने अपनी अहम भूमिका निभाई. ऐसे ही 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 का भारत-पाक युद्ध, शांति सेना द्वारा ऑपरेशन पवन (1987-88) उसके बाद 1999 में पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने अपनी वीरता से दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए.

पढ़ें- Kedarnath Yatra: केदारनाथ की उत्सव डोली गौरीकुंड से रवाना, शुक्रवार को खुलेंगे कपाट

'तलवार चाहिए न कोई ढाल चाहिए, गढ़वालियों के खून में उबाल चाहिए': 'बढ़े चलो गढ़वालियों बढ़े चलो' गीत के साथ देश दुनिया को अपना पराक्रम दिखाने वाले दुनिया की सबसे बड़े सैनिक परिवार की नींव आज ही रखी गई थी. जंग में जोशीले नारे 'ब्रदी विशाल लाल की जय' उद्घोष के साथ वीर सैनिकों में एक जोश भर जाता है. आज स्थापना दिवस पर गढ़वाल राइफल्स सेंटर के रेजिमेंटल मंदिर में पूजा अर्चना के साथ विधिवत सैनिकों द्वारा रेजिमेंट की खुशहाली के लिए पूजा की जाती है. उसके बाद सेंटर के सभी सैनिक वॉर मेमोरियल/ युद्ध स्मारक में जाकर मेमोरियल में पुष्प चक्र भेंट कर शहीद सैनिक को याद किया जाता है. सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा गढ़वाल राइफल्स के वीर सैनिकों द्वारा शौर्य गाथा का उद्घोष किया जाता है.

अब तक गढ़वाल राइफल्स की इन बटालियनों की हुई स्थापना: पहली गढ़वाल राइफल्स-5 मई 1887 को अल्मोड़ा में गाठित हुई और 4 नवंबर 1887 को लैंसडाउन में छावनी बनाई गई. उसके बाद द्वितीय गढ़वाल राइफल्स 1 मार्च 1901 को लैंसडाउन में गठित हुई. जबकि तृतीय गढ़वाल राइफल्स का गठन 20 अगस्त 1916 को लैंसडाउन में हई. चौथी गढ़वाल राइफल्स का स्थापना 28 अगस्त 1918 और 5वीं गढ़वाल राइफल्स का स्थापना 1 फरवरी 1941 का लैंसडाउन में हई.

पढ़ें- हरिद्वार में यूपी के होटल भागीरथी का लोकार्पण, योगी ने धामी को सौंपी अलकनंदा गेस्ट हाउस की चाभी

वहीं, 6वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 15 सितंबर 1941 और 7वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 जुलाई 1942 को लैंसडाउन में हुआ. 8वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जुलाई 1948 और 9वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जनवरी 1965 को कोटद्वार में हुआ. जबकि, 10वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 15 अक्टूबर 1965 को कोटद्वार में ही हुआ. 11वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जनवरी 1967 को बंगलुरु में हुआ.

उधर, 12वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 जून 1971 को और 13वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक जनवरी 1976 को लैंसडाउन में हुआ. 14वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक सितंबर 1980 को और 16वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 मार्च 1981 को कोटद्वार में हुआ. जबकि, 17वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक मई 1982, 18वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन एक फरवरी 1985 और 19वीं गढ़वाल राइफल्स का गठन 1 मई 1985 को कोटद्वार में ही हुआ.

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