पौड़ी: उत्तराखंड में दबंग नेता के रूप में अपनी पहचान रखने वाले हरक सिंह रावत इस बार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. बावजूद इसके उत्तराखंड की राजनीति में हरक सिंह रावत का नाम चर्चाओं में है. उत्तराखंड की राजनीति में पहली बार है कि जब हरक सिंह रावत चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. हालांकि वे अपनी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं को टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं.
पौड़ी जिले की श्रीनगर, कोटद्वार, लैंसडाउन और चौबट्टाखाल सीट हॉट सीट मानी जा रही हैं. इन सीटों पर भाजपा ने अपने दिग्गजों को मैदान में उतारा है. चौबट्टाखाल में भाजपा से कद्दावर नेता सतपाल महाराज मैदान में हैं. ऐसे में बीजेपी प्रत्याशियों को इन सीटों पर जीतने के लिए अपनी बिसात बिछानी होगी. हरक सिंह रावत ने श्रीनगर सीट से कांग्रेस के गणेश गोदियाल के लिए सोशल मीडिया पर प्रचार शुरू कर दिया है, जिसमें वे श्रीनगर की जनता से गोदियाल के पक्ष में वोट की अपील करते नजर आ रहे हैं.
वहीं, हरक सिंह रावत ने लैंसडाउन सीट से बहू अनुकृति गुसाईं रावत के लिए चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. अनुकृति गुसाईं रावत का भले ही यह पहला चुनाव है, लेकिन उनको अपने ससुर के राजनीतिक अनुभव का लाभ जरूर मिल सकता है. क्योंकि हरक सिंह रावत आज तक कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं. ऐसे में हरक सिंह रावत अपनी बहू को जिताने की पूरी कोशिश करेंगे.
जब हरक बने यूपी के सबसे कम उम्र के विधायक: हरक सिंह रावत ने अविभाजित उत्तर प्रदेश में साल 1991 में अपना पहला चुनाव पौड़ी सीट से बीजेपी के टिकट पर जीता था. इस चुनाव को जीतकर हरक तब यूपी के सबसे कम उम्र के विधायक बने थे. तब यह सीट पौड़ी दक्षिण कम चमोली पूर्व के नाम से जानी जाती थी. इस सीट पर नौजवान हरक ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पुष्कर सिंह रौथाण को लगातार दो बार हराया. वो भी करीब 10 हजार अधिक वोटों के अंतर से. तब हरक को 31 हजार 977 वोट मिले थे, जबकि पुष्कर सिंह रौथाण को 21 हजार 185 वोट ही पड़े.
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हरक सिंह रावत ने 1993 में हुए उप चुनाव में फिर से पुष्कर सिंह रौथाण को पराजित किया. तब हरक को 28 हजार 585 तो पुष्कर को 23 हजार 259 वोट मिले थे. साल 1997 में उन्हें यूपी सरकार ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया. हरक सिंह को साल 2002 में लैंसडाउन सीट से जीतने के बाद बतौर कैबिनेट मंत्री राजस्व, खाद्य व नागरिक आपूर्ति, आपदा प्रबंधन और पुनर्वास विभागों की जिम्मेदारी दी गयी. इसके बाद ऐसी कोई सरकार नहीं आई, जिसमें उनकी पार्टी द्वारा हरक सिंह रावत को कैबिनेट मंत्री का दायित्व नहीं मिला हो.