श्रीनगर: कौन कहता है आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो. ये कहावत श्रीनगर की रहने वाली अंजना रावत पर सटीक बैठती है. हालातों को हराकर कठिन परिस्थितियों में स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाने वाली अंजना रावत को प्रदेश के प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. ये पुरस्कार अंजना की जिंदादिली और उसकी कभी न हार मानने वाले जज्बे का हासिल होगा.
इस गौरवान्वित करने वाले पल पर आज के दिन भी अंजना की आंखें बीती दर्द भरी यादों से भर आती हैं. वो आज भी उन पलों को याद कर एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाती हैं. ये वो ही पल थे जब अंजना ने अकेले से ही दुनिया से लड़ने का मन बनाया. ये ही वो पल थे जब आज की नींव रखी गई थी. अंजना के लिए तब से अब तक सफर आसान नहीं रहा. अंजना ने इसके लिए बहुत मेहनत की है. अंजना की कठिनाई भरी जिंदगी का आगाज 2011 से तब शुरू हुआ, जब उनके सर से पिता का साया उठ गया. जिसके बाद घर की सारी जिम्मेदारी 18 साल की अंजना के कंधों पर आ गई.
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चाय की दुकान चलाती हैं अंजना: अंजना श्रीनगर में पंजाब नेशनल बैंक के पास एक चाय की दुकान चलाती हैं. पिता की मौत के बाद से अंजना इसी चाय की दुकान से अपने परिवार का भरण-पोषण करती आ रही हैं. अंजना इसी चाय की दुकान से अपनी मां, अपने भाई और अपनी एक बहन का भरण-पोषण करती आ रही हैं. ऐसा नहीं की अंजना पढ़ी-लिखी नहीं हैं. अंजना ने पिता की मौत के बाद चाय की दुकान के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी.
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सरकार ने भी संघर्ष को सराहा: अंजना ने पहले बीए किया. उसके बाद एमए सोशियोलॉजी से किया. इस दौरान अंजना को समाज के कई प्रकार के ताने तक सुनने पड़े. फिर भी अंजना ने कभी हार नहीं मानी. जिसका नतीजा है कि राज्य सरकार ने भी अंजना के संघर्ष को सराहते हुए उसे तीलू रौतेली के पुरस्कार के लिए चुना है.
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फब्तियां कसता, हीन भावना से देखता था समाज: ईटीवी भारत से बात करते हुए अंजना रावत ने बताया उनका जीवन हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रहा है, मगर उन्होंने इससे कभी हार नहीं मानी. उन्होंने बताया चाय की दुकान चलाना आसान नहीं था. समाज का एक बड़ा हिस्सा उन्हें हीन भावना से देखता था. कई बार उन पर फब्तियां भी कसी जाती थीं. लेकिन उन्होंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. उन्होंने बस अपने कर्म और मंजिल पर निगाहें टिकाए रखीं.
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वहीं, अजंना की इस गौरवपूर्ण उपलब्धि पर अंजना का परिवार आज बेहद खुश है. वे इसे अंजना की लगन, मेहनत और कठोर परिश्रम का नतीजा बता रहे हैं. श्रीनगर की इस 'वीरागंना' को तीलू रौतेली पुरस्कार मिलने पर शहरवासी भी फूले नहीं समा रहे हैं. सभी का कहना है कि आज हर किसी को अंजना से सीख लेने की जरूरत है.