श्रीनगर: कुमाऊं मंडल में आई भयावह आपदा का कारण वैज्ञानिक इस क्षेत्र के नजदीक चीन और तिब्बत के पठारों को बता रहे हैं. वैज्ञानिकों कि मानें तो कुमाऊं रीजन में चीन सीमा और तिब्बत के पठार में हॉट और कोल्ड वेब का वेब फ्रंट हमेशा बनता है. इस समय इस रीजन में इसके साथ साथ वेस्टन डिस्टरबेंस, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में कम वायु का दबाव बनना इस आपदा का मुख्य कारण रहा.
वैज्ञनिकों ने इसके अलावा ये भी माना है कि सरकार ने कुमाऊं रीजन में अलर्ट को देरी से सर्कुलेट किया. जिसके कारण इस क्षेत्र में नुकसान अधिक हुआ. साथ ही वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि अब प्रदेश के 14 जनपदों में छोटे मौसम केंद्रों की स्थापना करके ऐसी भयावह दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है.
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गढ़वाल विवि के भौतिक वैज्ञानिक और भारतीय मौसम पर लंबे अरसे से शोध कार्य कर रहे वरिष्ठ वैज्ञानिक आलोक सागर गौतम ऐसी घटनाओं पर हमेशा अपनी नजर बनाये रखते हैं. उन्होंने इस घटना को राज्य सरकार के लिए सबक बताया है. उन्होंने कहा गढ़वाल क्षेत्र में देखा गया है कि चारधाम यात्रा के मद्देनजर मौसम विभाग की इस घटना को आम जनता तक जल्द से जल्द पहुंचाने की कोशिश की गई, लेकिन कुमाऊं रीजन में इस तरह की तेजी नहीं देखी गई. जिसके कारण आम जन के साथ प्रशासनिक अमला ढीला रहा. जिसके कारण कुमाऊं मंडल में जनधन की अधिक हानि हुई.
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इसके साथ ही उन्होंने विस्तार से इस पूरे घटनाक्रम पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुए बताया कि साउथ वेस्ट मॉनसून के हिसाब से 15 सितम्बर तक मॉनसून को खत्म हो जाना चाहिए था जो हमेशा होता आया है. लेकिन इस वर्ष ये मॉनसून गया नहीं. ये वायु मंडल में ठहरा रहा. बादलों की मोटाई भी बढ़ती चली गयी. इसके साथ-साथ उत्तर भारत में बर्फबारी और बारिश के लिए सबसे बड़ा कारण दक्षिण पश्चिमी विक्षोभ रहता है. जिसको इस समय अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठने वाले मॉनसून का साथ मिला. जिसके कारण केरल के साथ-साथ उतराखंड में इतनी तेज बारिश देखने को मिली.
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डॉ. आलोक ने बताया कि यूरोप की ठंडी हवाओं के साथ भूमध्य सागर की गर्म हवाओं के कॉकटेल ने भी मॉनसून को बनाये रखा. बादलों की मोटाई इन जगहों पर फट पड़ी, जिसके कारण इतनी तेज वर्षा देखने को मिली.