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पौड़ी जनपद के 5 CM जिनका कार्यकाल रहा अधूरा, जानिए क्यों

पौड़ी जनपद ने अब तक प्रदेश को 5 मुख्यमंत्री दिये हैं. लेकिन इनमें से कोई भी सीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. आइए हम आपको बताते हैं इन मुख्यमंत्रियों की समय से पहले विदाई के किस्से.

CM of Pauri District
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Published : Jul 6, 2021, 5:07 PM IST

Updated : Jul 6, 2021, 5:18 PM IST

पौड़ी: उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन के बाद प्रदेश की बागडोर पुष्कर सिंह धामी को सौंपी गई है. तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही पौड़ी जनपद के नाम एक रिकॉर्ड भी बन गया. वह रिकॉर्ड ये कि पौड़ी जनपद ने अभी तक प्रदेश को 5 मुख्यमंत्री दिये लेकिन कोई भी सीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

जनपद ने उत्तराखंड को भले ही 5 मुख्यमंत्री क्यों न दिए हो, लेकिन इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पांचों पूर्व मुख्यमंत्रियों में सबसे अधिक समय तक पदभार संभाला. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सबसे कम समय का कार्यकाल संभाला, लेकिन कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया.

बीसी खंडूड़ी दो बार बने सीएम

पौड़ी जनपद ने उत्तराखंड को 5 मुख्यमंत्री दिए हैं लेकिन इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. पौड़ी ब्लॉक के राधा बल्लभपुरम निवासी मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दो बार मुख्यमंत्री का पदभार संभाला. बीसी खंडूड़ी 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009 तक और दूसरी बार 11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012 तक मुख्यमंत्री रहे.

इसलिए हटाए गए थे खंडूड़ी

खंडूड़ी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनाए गए थे तब वो केंद्र से सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मामलों के स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री के रूप में सफलताओं की पोटली लेकर आए थे. उनके खाते में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना जैसी सफलता की ट्रॉफी थी. लेकिन करीब 28 महीने के कार्यकाल के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था. इसके पीछे जो कारण बताए जाते हैं उनमें एक तो उनका कड़क मिजाज बताया जाता है. उन्होंने भ्रष्टाचार पर जैसे लगाम कस दी थी. इससे उनके मंत्री, विधायक छटपटा रहे थे. कहा जाता है कि एक बड़े मंत्री इस आग को हवा दे रहे थे.

दूसरा बड़ा कारण ये बताया जाता है कि खंडूड़ी के प्रमुख सचिव प्रभात सारंगी की हिटलरशाही. उन दिनों कहा जाता था कि सारंगी किसी मंत्री विधायक को सीएम से मिलने नहीं देते हैं. इससे मंत्रियों, विधायकों में असंतोष बढ़ता गया. ऐसा कहा जाता है कि खंडूड़ी के ज्यादातर निर्णयों में प्रभात सारंगी की छाप थी.

इस सब कारणों और एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री द्वारा असंतुष्ट मंत्रियों, विधायकों की सुलग रही आग को माचिस दिखा दी गई. खंडूड़ी के खिलाफ 17 विधायकों के दिल्ली जाकर इस्तीफा देने की खबरों ने उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया. आखिरकार बीजेपी हाईकमान ने खंडूड़ी को हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बना दिया.

पढ़ें- उत्तराखंड से इन नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में मिल सकती है नई जिम्मेदारी, जानिए गुणा-भाग

करप्शन के आरोपों ने छीनी 'निशंक' की कुर्सी

केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' पाबौ ब्लॉक के पिनानी निवासी हैं. वह 24 जून 2009 से 10 सितंबर 2011 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद पर रहे. निशंक भी करीब 27 महीने मुख्यमंत्री रहे. उनको हटाने के पीछे करप्शन के आरोप थे. निशंक पर कुंभ मेले के दौरान घोटाले के आरोप लगे थे. ऋषिकेश के स्टेडिया जमीन घोटाले ने भी निशंक सरकार की बदनामी करा दी. उधर बीसी खंडूड़ी ने भी निशंक के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था.

उधर भगत सिंह कोश्यारी ने भी निशंक सरकार के खिलाफ बगावती तेवर खोल रखे थे. पार्टी के दो शीर्ष नेताओं खंडूड़ी और कोश्यारी के बगावती तेवरों ने पार्टी हाईकमान को असमंजस में डाल दिया था.

उसी समय एक बड़ी चीज हो गई. बीजेपी के दो आंतरिक सर्वेक्षणों में ये बात सामने आई थी कि निशंक के मुख्यमंत्री रहते बीजेपी 10 सीटें भी नहीं जीत पाएगी. जिसके बाद पार्टी में निशंक के खिलाफ पहले से सक्रिय खंडूड़ी और भगत सिंह कोश्यारी के बगावती तेवर काफी बुलंद हो गए. उन्होंने निशंक को हटाए जाने के लिये दिल्ली में डेरा डाल दिया. आखिरकार निशंक को इस्तीफा देना पड़ा. 'खंडूड़ी है जरूरी' के नारे के साथ रिटायर्ड मेजर जनरल की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी हो गई.

केदारनाथ आपदा बहुगुणा पर पड़ी भारी

खिर्सू ब्लॉक के ग्राम पंचायत देवलगढ़ के बुघाणी गांव के मूल निवासी विजय बहुगुणा 14 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे. बहुगुणा का कार्यकाल दो साल से कम रहा. उनके समय में ही केदारनाथ की भयानक आपदा आई थी. उन पर केदारनाथ आपदा में मृतकों के आंकड़े छिपाने के आरोप लगे. राहत और बचाव कार्यों में उनकी सरकार की असफलता ने बहुत बदनामी कराई थी.

रही-सही कसर उनके विरोधी हरीश रावत ने पूरी कर दी. उन्होंने कोई ऐसा मोर्चा नहीं छोड़ा जिसने विजय बहुगुणा को कमजोर नहीं किया हो. दरअसल जब उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव में हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस जीती थी तो हरदा को उम्मीद थी कि वो ही मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने वेटरन नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया था. इससे हरीश रावत बहुत ज्यादा आहत हुए थे. लेकिन नारायण दत्त तिवारी के कद के सामने हरीश रावत तो क्या कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी भी छोटी थीं. ऐसे में वो पूरे पांच साल अपना कार्यकाल पूरा कर गए थे.

हरीश रावत 2012 के चुनाव की जीत के बाद फिर मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए थे. लेकिन इस बार हाईकमान ने पैराशूट मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को गद्दी पर बिठा दिया था. हरीश रावत इस अपमान को भूल नहीं सके. उन्होंने विजय बहुगुणा की जड़ें खोदने का कोई मौका नहीं छोड़ा. आखिरकार कांग्रेस हाईकमान ने विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया.

पढ़ें- धामी सरकार ने पोर्टफोलियो से पहले कैबिनेट मंत्रियों को सौंपा जिलों का प्रभार

त्रिवेंद्र सिंह रावत को एकला चलो पड़ा भारी

पौड़ी जनपद के खैरासैंण गांव के रहने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत 18 मार्च 2017 से 09 मार्च 2021 तक मुख्यमंत्री रहे. वह जनपद पौड़ी के पांचों मुख्यमंत्री में एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री मंत्री हैं, जिन्होंने सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद संभाला. त्रिवेंद्र अपनी सरकार के चार साल भी पूरे नहीं कर पाए. दरअसल त्रिवेंद्र रिजर्व नेचर के राजनेता रहे. उन्होंने सत्ता के पावर सेंटर का रिमोट अपने हाथों में ही रखा. इससे अनेक मंत्री और विधायक उनसे नाराज थे. कहा तो यहां तक जाता है कि वो संघ के बड़े नेताओं को भी घास नहीं डालते थे.

अपने मंत्रिमंडल को विश्वास में लिए बिना ही वो कई बड़े फैसले ले लेते थे. गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने का फैसला ऐसा ही था जिसने उनकी पार्टी में ही असंतोष फैला दिया. चारधाम देवस्थानम बोर्ड की स्थापना ने भी उनकी छवि बिगाड़ दी. कुंभ में कोरोना की सख्त गाइड लाइन लागू करने से साधु-संत उनसे नाराज थे. कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के खिलाफ बिठाई गई जांच और उनके अधिकार एक-एक कर कम किए जाने से हरक ने उनके खिलाफ बड़ा माहौल बनाया.

उनकी एकला चलो की छवि ने अनेक मंत्रियों और विधायकों को उनका विरोधी बना दिया. उनके कार्यकाल के दौरान कई बार खबरें आई कि असंतुष्ट मंत्री, विधायक दिल्ली दरबार पहुंच गए हैं. गैरसैंण में जब बजट सत्र चल रहा था, तभी हाईकमान ने त्रिवेंद्र को आनन-फानन में दिल्ली बुलाया और इसके बाद उनका इस्तीफा हो गया.

तीरथ को खुद नहीं पता वो क्यों हटाए गए

त्रिवेंद्र रावत को हटाने के बाद बीजेपी हाईकमान ने अप्रत्याशित रूप से कल्जीखाल ब्लॉक के सीरों गांव के रहने वाले तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया. प्रदेश में सबसे कम समय के लिए सीएम पद की जिम्मेदारी संभालने वाले तीरथ 10 मार्च 2021 से 4 जुलाई 2021 तक मुख्यमंत्री रहे.

दरअसल तीरथ ने खुद भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें अचानक मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा. मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके ऐसे-ऐसे बयान आए की जनता के साथ बीजेपी हाईकमान ने भी सिर पीट लिया होगा. सबसे पहले महिलाओं की जींस पर उन्होंने बयान दिया. फिर गंगा और कोरोना पर उनके बयान ने उनकी जग हंसाई की. फिर कोरोना और जनसंख्या को लेकर उनके बयान ने खूब खिल्ली उड़वाई. आखिर में वो उपचुनाव का गणित लगाना ही भूल गए. ऐसे में उनकी भी कुर्सी चली गई.

पौड़ी: उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन के बाद प्रदेश की बागडोर पुष्कर सिंह धामी को सौंपी गई है. तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही पौड़ी जनपद के नाम एक रिकॉर्ड भी बन गया. वह रिकॉर्ड ये कि पौड़ी जनपद ने अभी तक प्रदेश को 5 मुख्यमंत्री दिये लेकिन कोई भी सीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

जनपद ने उत्तराखंड को भले ही 5 मुख्यमंत्री क्यों न दिए हो, लेकिन इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पांचों पूर्व मुख्यमंत्रियों में सबसे अधिक समय तक पदभार संभाला. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सबसे कम समय का कार्यकाल संभाला, लेकिन कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया.

बीसी खंडूड़ी दो बार बने सीएम

पौड़ी जनपद ने उत्तराखंड को 5 मुख्यमंत्री दिए हैं लेकिन इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. पौड़ी ब्लॉक के राधा बल्लभपुरम निवासी मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दो बार मुख्यमंत्री का पदभार संभाला. बीसी खंडूड़ी 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009 तक और दूसरी बार 11 सितंबर 2011 से 13 मार्च 2012 तक मुख्यमंत्री रहे.

इसलिए हटाए गए थे खंडूड़ी

खंडूड़ी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनाए गए थे तब वो केंद्र से सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मामलों के स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री के रूप में सफलताओं की पोटली लेकर आए थे. उनके खाते में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना जैसी सफलता की ट्रॉफी थी. लेकिन करीब 28 महीने के कार्यकाल के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था. इसके पीछे जो कारण बताए जाते हैं उनमें एक तो उनका कड़क मिजाज बताया जाता है. उन्होंने भ्रष्टाचार पर जैसे लगाम कस दी थी. इससे उनके मंत्री, विधायक छटपटा रहे थे. कहा जाता है कि एक बड़े मंत्री इस आग को हवा दे रहे थे.

दूसरा बड़ा कारण ये बताया जाता है कि खंडूड़ी के प्रमुख सचिव प्रभात सारंगी की हिटलरशाही. उन दिनों कहा जाता था कि सारंगी किसी मंत्री विधायक को सीएम से मिलने नहीं देते हैं. इससे मंत्रियों, विधायकों में असंतोष बढ़ता गया. ऐसा कहा जाता है कि खंडूड़ी के ज्यादातर निर्णयों में प्रभात सारंगी की छाप थी.

इस सब कारणों और एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री द्वारा असंतुष्ट मंत्रियों, विधायकों की सुलग रही आग को माचिस दिखा दी गई. खंडूड़ी के खिलाफ 17 विधायकों के दिल्ली जाकर इस्तीफा देने की खबरों ने उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया. आखिरकार बीजेपी हाईकमान ने खंडूड़ी को हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बना दिया.

पढ़ें- उत्तराखंड से इन नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में मिल सकती है नई जिम्मेदारी, जानिए गुणा-भाग

करप्शन के आरोपों ने छीनी 'निशंक' की कुर्सी

केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' पाबौ ब्लॉक के पिनानी निवासी हैं. वह 24 जून 2009 से 10 सितंबर 2011 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद पर रहे. निशंक भी करीब 27 महीने मुख्यमंत्री रहे. उनको हटाने के पीछे करप्शन के आरोप थे. निशंक पर कुंभ मेले के दौरान घोटाले के आरोप लगे थे. ऋषिकेश के स्टेडिया जमीन घोटाले ने भी निशंक सरकार की बदनामी करा दी. उधर बीसी खंडूड़ी ने भी निशंक के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था.

उधर भगत सिंह कोश्यारी ने भी निशंक सरकार के खिलाफ बगावती तेवर खोल रखे थे. पार्टी के दो शीर्ष नेताओं खंडूड़ी और कोश्यारी के बगावती तेवरों ने पार्टी हाईकमान को असमंजस में डाल दिया था.

उसी समय एक बड़ी चीज हो गई. बीजेपी के दो आंतरिक सर्वेक्षणों में ये बात सामने आई थी कि निशंक के मुख्यमंत्री रहते बीजेपी 10 सीटें भी नहीं जीत पाएगी. जिसके बाद पार्टी में निशंक के खिलाफ पहले से सक्रिय खंडूड़ी और भगत सिंह कोश्यारी के बगावती तेवर काफी बुलंद हो गए. उन्होंने निशंक को हटाए जाने के लिये दिल्ली में डेरा डाल दिया. आखिरकार निशंक को इस्तीफा देना पड़ा. 'खंडूड़ी है जरूरी' के नारे के साथ रिटायर्ड मेजर जनरल की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी हो गई.

केदारनाथ आपदा बहुगुणा पर पड़ी भारी

खिर्सू ब्लॉक के ग्राम पंचायत देवलगढ़ के बुघाणी गांव के मूल निवासी विजय बहुगुणा 14 मार्च 2012 से 31 जनवरी 2014 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे. बहुगुणा का कार्यकाल दो साल से कम रहा. उनके समय में ही केदारनाथ की भयानक आपदा आई थी. उन पर केदारनाथ आपदा में मृतकों के आंकड़े छिपाने के आरोप लगे. राहत और बचाव कार्यों में उनकी सरकार की असफलता ने बहुत बदनामी कराई थी.

रही-सही कसर उनके विरोधी हरीश रावत ने पूरी कर दी. उन्होंने कोई ऐसा मोर्चा नहीं छोड़ा जिसने विजय बहुगुणा को कमजोर नहीं किया हो. दरअसल जब उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव में हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस जीती थी तो हरदा को उम्मीद थी कि वो ही मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने वेटरन नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया था. इससे हरीश रावत बहुत ज्यादा आहत हुए थे. लेकिन नारायण दत्त तिवारी के कद के सामने हरीश रावत तो क्या कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी भी छोटी थीं. ऐसे में वो पूरे पांच साल अपना कार्यकाल पूरा कर गए थे.

हरीश रावत 2012 के चुनाव की जीत के बाद फिर मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए थे. लेकिन इस बार हाईकमान ने पैराशूट मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को गद्दी पर बिठा दिया था. हरीश रावत इस अपमान को भूल नहीं सके. उन्होंने विजय बहुगुणा की जड़ें खोदने का कोई मौका नहीं छोड़ा. आखिरकार कांग्रेस हाईकमान ने विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया.

पढ़ें- धामी सरकार ने पोर्टफोलियो से पहले कैबिनेट मंत्रियों को सौंपा जिलों का प्रभार

त्रिवेंद्र सिंह रावत को एकला चलो पड़ा भारी

पौड़ी जनपद के खैरासैंण गांव के रहने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत 18 मार्च 2017 से 09 मार्च 2021 तक मुख्यमंत्री रहे. वह जनपद पौड़ी के पांचों मुख्यमंत्री में एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री मंत्री हैं, जिन्होंने सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद संभाला. त्रिवेंद्र अपनी सरकार के चार साल भी पूरे नहीं कर पाए. दरअसल त्रिवेंद्र रिजर्व नेचर के राजनेता रहे. उन्होंने सत्ता के पावर सेंटर का रिमोट अपने हाथों में ही रखा. इससे अनेक मंत्री और विधायक उनसे नाराज थे. कहा तो यहां तक जाता है कि वो संघ के बड़े नेताओं को भी घास नहीं डालते थे.

अपने मंत्रिमंडल को विश्वास में लिए बिना ही वो कई बड़े फैसले ले लेते थे. गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने का फैसला ऐसा ही था जिसने उनकी पार्टी में ही असंतोष फैला दिया. चारधाम देवस्थानम बोर्ड की स्थापना ने भी उनकी छवि बिगाड़ दी. कुंभ में कोरोना की सख्त गाइड लाइन लागू करने से साधु-संत उनसे नाराज थे. कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के खिलाफ बिठाई गई जांच और उनके अधिकार एक-एक कर कम किए जाने से हरक ने उनके खिलाफ बड़ा माहौल बनाया.

उनकी एकला चलो की छवि ने अनेक मंत्रियों और विधायकों को उनका विरोधी बना दिया. उनके कार्यकाल के दौरान कई बार खबरें आई कि असंतुष्ट मंत्री, विधायक दिल्ली दरबार पहुंच गए हैं. गैरसैंण में जब बजट सत्र चल रहा था, तभी हाईकमान ने त्रिवेंद्र को आनन-फानन में दिल्ली बुलाया और इसके बाद उनका इस्तीफा हो गया.

तीरथ को खुद नहीं पता वो क्यों हटाए गए

त्रिवेंद्र रावत को हटाने के बाद बीजेपी हाईकमान ने अप्रत्याशित रूप से कल्जीखाल ब्लॉक के सीरों गांव के रहने वाले तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया. प्रदेश में सबसे कम समय के लिए सीएम पद की जिम्मेदारी संभालने वाले तीरथ 10 मार्च 2021 से 4 जुलाई 2021 तक मुख्यमंत्री रहे.

दरअसल तीरथ ने खुद भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें अचानक मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा. मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके ऐसे-ऐसे बयान आए की जनता के साथ बीजेपी हाईकमान ने भी सिर पीट लिया होगा. सबसे पहले महिलाओं की जींस पर उन्होंने बयान दिया. फिर गंगा और कोरोना पर उनके बयान ने उनकी जग हंसाई की. फिर कोरोना और जनसंख्या को लेकर उनके बयान ने खूब खिल्ली उड़वाई. आखिर में वो उपचुनाव का गणित लगाना ही भूल गए. ऐसे में उनकी भी कुर्सी चली गई.

Last Updated : Jul 6, 2021, 5:18 PM IST
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