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RFC के पास गेहूं का संकट, राशन की दुकानों को FCI से लेकर कर रहा आपूर्ति, जानें इस संकट का कारण - आरएफसी के पास गेहूं

Wheat crisis in Uttarakhand इस बार किसानों ने गेहूं बेचने के लिए सरकारी क्रय केंद्रों का रुख नहीं किया. किसानों ने खुले बाजार में अपना गेहूं बेचा है. स्थिति ये हो गई है कि आरएफसी को एफसीआई से गेहूं लेकर राशन की दुकानों को देना पड़ रहा है.

Wheat crisis in Uttarakhand
गेहूं खरीद समाचार
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Published : Jul 29, 2023, 12:47 PM IST

Updated : Jul 29, 2023, 2:12 PM IST

RFC के पास गेहूं का संकट

हल्द्वानी: प्रदेश सरकार फसली सीजन में किसानों से गेहूं और धान की खरीद आरएफसी के माध्यम से करवाती है. लेकिन इन सरकारी गेहूं खरीद केंद्रों पर किसानों को वाजिब दाम नहीं मिलने के चलते किसानों ने अपने गेहूं को खुले बाजार में बेचा है. ऐसे में उत्तराखंड सरकार की अपनी एजेंसी RFC के पास गेहूं नहीं है.

गेहूं किसानों ने सरकारी केंद्रों से मुंह मोड़ा: क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक बीएल फिरमाल की मानें तो इस बार खुले बाजार में गेहूं के दाम अच्छे मिलने के चलते किसान सरकारी क्रय केंद्रों पर अपना गेहूं बेचने नहीं आये. जिसके चलते इस बार आरएफसी के पास गेहूं नहीं है. आरएफसी अब एफसीआई (Food Corporation of India) के माध्यम से गेहूं लेकर सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों पर राशन कार्ड धारकों को उपलब्ध करा रहा है. प्रदेश सरकार द्वारा कुमाऊं मंडल क्षेत्र से गेहूं खरीद का 150,000 (एक लाख पचास हजार) मीट्रिक टन लक्ष्य रखा गया था. इसके सापेक्ष में इस वर्ष मात्र 112.5 मीट्रिक टन ही गेहूं की खरीद हो पाई है. जिसके चलते आरएफसी के गोदाम गेहूं से खाली हो चुके हैं. ऐसे में सरकार अब एफसीआई से गेहूं का उठान कर रही है.

किसानों ने खुले बाजार में बेचा गेहूं: सवाल खड़े हो रहे हैं कि सरकार द्वारा गेहूं और धान खरीद के लिए अलग से आरएफसी (Regional Food Corporation) को तैनात किया गया है, जिससे कि किसानों से फसल की खरीद हो सके. लेकिन किसान अपनी फसल को सरकारी क्रय केंद्रों पर बेचने के बजाय, खुले बाजार में बेच रहे हैं. ये सरकार और उसके मशीनरी पर सवाल खड़े कर रहा है. 1 अप्रैल से लेकर 30 जून तक गेहूं की पूरे प्रदेश में खरीद की गई. गेहूं खरीदने के लिए सरकारी मशीनरी तो लगाई गई, मगर गेहूं की खरीद केवल 0.5% ही हो पाई.
ये भी पढ़ें: गेहूं की ब्लैक मार्केटिंग रोकने के लिए FCI का बड़ा फैसला, तय की अपर लिमिट

बोनस के लालच में भी नहीं आए किसान: क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक (आरएफसी) बीएल फिरमाल का कहना है कि आरएफसी ने गेहूं खरीद के लिए आपने सभी कांटे लगाए थे. लेकिन किसानों द्वारा गेहूं आरएफसी को देने के बजाय ओपन मार्केट में बेचा गया. जिसके चलते आरएफसी गेहूं खरीद नहीं पाया है. उन्होंने कहा कि गेहूं खरीदने के लिए किसानों को बोनस भी दिया गया था. उसके बावजूद भी किसानों ने अपने गेहूं को सरकारी केंद्रों पर ना बेच कर प्राइवेट में बेचा है. इसके चलते सरकार गेहूं की खरीद नहीं कर पायी है. इस बार सरकार द्वारा गेहूं का समर्थन मूल्य 2,125 रुपए जारी किया गया था. फिर भी किसानों ने सरकारी क्रय केंद्रों पर गेहूं बेचने के बजाय खुले बाजारों में गेहूं को बेचा है.

खुले बाजार में क्यों गए किसान? दरअसल पिछले साल गेहूं का सरकारी समर्थन मूल्य ₹2015 प्रति कुंतल था. इसे इस साल बढ़ाकर 2125 रुपए प्रति कुंतल किया गया था. लेकिन खुले बाजार में गेहूं की कीमत ₹2200 से लेकर ₹2600 प्रति कुंतल रही. इस कारण ज्यादा लाभ मिलने के कारण उत्तराखंड के किसान ने सरकारी विक्रय केंद्रों का रुख नहीं किया.

RFC के पास गेहूं का संकट

हल्द्वानी: प्रदेश सरकार फसली सीजन में किसानों से गेहूं और धान की खरीद आरएफसी के माध्यम से करवाती है. लेकिन इन सरकारी गेहूं खरीद केंद्रों पर किसानों को वाजिब दाम नहीं मिलने के चलते किसानों ने अपने गेहूं को खुले बाजार में बेचा है. ऐसे में उत्तराखंड सरकार की अपनी एजेंसी RFC के पास गेहूं नहीं है.

गेहूं किसानों ने सरकारी केंद्रों से मुंह मोड़ा: क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक बीएल फिरमाल की मानें तो इस बार खुले बाजार में गेहूं के दाम अच्छे मिलने के चलते किसान सरकारी क्रय केंद्रों पर अपना गेहूं बेचने नहीं आये. जिसके चलते इस बार आरएफसी के पास गेहूं नहीं है. आरएफसी अब एफसीआई (Food Corporation of India) के माध्यम से गेहूं लेकर सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों पर राशन कार्ड धारकों को उपलब्ध करा रहा है. प्रदेश सरकार द्वारा कुमाऊं मंडल क्षेत्र से गेहूं खरीद का 150,000 (एक लाख पचास हजार) मीट्रिक टन लक्ष्य रखा गया था. इसके सापेक्ष में इस वर्ष मात्र 112.5 मीट्रिक टन ही गेहूं की खरीद हो पाई है. जिसके चलते आरएफसी के गोदाम गेहूं से खाली हो चुके हैं. ऐसे में सरकार अब एफसीआई से गेहूं का उठान कर रही है.

किसानों ने खुले बाजार में बेचा गेहूं: सवाल खड़े हो रहे हैं कि सरकार द्वारा गेहूं और धान खरीद के लिए अलग से आरएफसी (Regional Food Corporation) को तैनात किया गया है, जिससे कि किसानों से फसल की खरीद हो सके. लेकिन किसान अपनी फसल को सरकारी क्रय केंद्रों पर बेचने के बजाय, खुले बाजार में बेच रहे हैं. ये सरकार और उसके मशीनरी पर सवाल खड़े कर रहा है. 1 अप्रैल से लेकर 30 जून तक गेहूं की पूरे प्रदेश में खरीद की गई. गेहूं खरीदने के लिए सरकारी मशीनरी तो लगाई गई, मगर गेहूं की खरीद केवल 0.5% ही हो पाई.
ये भी पढ़ें: गेहूं की ब्लैक मार्केटिंग रोकने के लिए FCI का बड़ा फैसला, तय की अपर लिमिट

बोनस के लालच में भी नहीं आए किसान: क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक (आरएफसी) बीएल फिरमाल का कहना है कि आरएफसी ने गेहूं खरीद के लिए आपने सभी कांटे लगाए थे. लेकिन किसानों द्वारा गेहूं आरएफसी को देने के बजाय ओपन मार्केट में बेचा गया. जिसके चलते आरएफसी गेहूं खरीद नहीं पाया है. उन्होंने कहा कि गेहूं खरीदने के लिए किसानों को बोनस भी दिया गया था. उसके बावजूद भी किसानों ने अपने गेहूं को सरकारी केंद्रों पर ना बेच कर प्राइवेट में बेचा है. इसके चलते सरकार गेहूं की खरीद नहीं कर पायी है. इस बार सरकार द्वारा गेहूं का समर्थन मूल्य 2,125 रुपए जारी किया गया था. फिर भी किसानों ने सरकारी क्रय केंद्रों पर गेहूं बेचने के बजाय खुले बाजारों में गेहूं को बेचा है.

खुले बाजार में क्यों गए किसान? दरअसल पिछले साल गेहूं का सरकारी समर्थन मूल्य ₹2015 प्रति कुंतल था. इसे इस साल बढ़ाकर 2125 रुपए प्रति कुंतल किया गया था. लेकिन खुले बाजार में गेहूं की कीमत ₹2200 से लेकर ₹2600 प्रति कुंतल रही. इस कारण ज्यादा लाभ मिलने के कारण उत्तराखंड के किसान ने सरकारी विक्रय केंद्रों का रुख नहीं किया.

Last Updated : Jul 29, 2023, 2:12 PM IST
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