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6 कुमाऊं रेजीमेंट के स्थापना दिवस पर वलोंग वॉरियर्स को किया सम्मानित

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Published : Feb 1, 2021, 7:20 PM IST

हल्द्वानी में 6 कुमाऊं रेजीमेंट के स्थापना दिवस पर गौरव सेनानी कल्याण समिति द्वारा भारत-चीन युद्ध 1962 के वॉरियर्स को सम्मानित करने का कार्यक्रम किया गया. कार्यक्रम में 4 वॉरियर्स को सम्मानित किया गया.

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6 कुमाऊं रेजीमेंट

हल्द्वानी: 6 कुमाऊं रेजीमेंट के स्थापना दिवस पर गौरव सेनानी कल्याण समिति द्वारा भारत-चीन युद्ध 1962 के वॉरियर्स को सम्मानित करने का कार्यक्रम किया गया. इस मौके पर पूर्व सैनिक संगठन द्वारा एक निजी कार्यक्रम किया गया. कार्यक्रम में 4 वॉरियर्स को सम्मानित किया गया.

इस मौके पर पूर्व सैनिकों ने 1962 के योद्धाओं ने भारत-चीन युद्ध के अनुभवों को साझा किया. पूर्व सैनिकों ने कहा कि 6 कुमाऊं रेजिमेंट भारतीय सेना की पहली यूनिट थी, जिसने 1962 में वलोंग में आजादी के बाद सबसे पहले चाइना पर हमला किया था. यूनिट ने हिंदुस्तान के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम दर्ज कराया था.

6 कुमाऊं रेजीमेंट के स्थापना दिवस पर वलोंग वॉरियर्स को किया सम्मानित.

पढ़ें: देहरादून: नये विजन को लेकर दो दिवसीय पुलिस कॉन्फ्रेंस शुरू

6 कुमाऊं गौरव सेनानी कल्याण समिति के संरक्षण पुष्कर सिंह डसीला बताया कि 80वां स्थापना दिवस के मौके चाइना से लोहा लेने वाले 1962, 1965, 1971 की लड़ाई लड़ने वाले कुमाऊं रेजिमेंट के योद्धाओं को सम्मानित किया गया. 1962 भारत-चाइना युद्ध के योद्धा रहे कैप्टन कुंवर सिंह टाकुली ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि 1962 के युद्ध के दौरान भारत-चाइना युद्ध की परिस्थितियां अलग थी.

उस समय सेना के पास कोई संसाधन नहीं थे, छोटे हथियारों से लड़ाई लड़ी जा रही थी, जबकि वहां पर नहीं कोई सड़क व्यवस्था थी और न ही सैनिकों के आने जाने की कोई व्यवस्था थी. लेकिन आज वहां की परिस्थितियां बदल चुकी है और आज वहां पर सैनिकों के लिए सभी सुविधा उपलब्ध है. अगर कभी भी भारत-चाइना युद्ध होता है तो हमारे सैनिक चाइना से निपटने के लिए सक्षम है.

उन्होंने कहा कि भारत-चाइना युद्ध में उत्तराखंड के कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज भी कुमाऊं रेजीमेंट के सैनिक चाइना बॉर्डर लोहा लेने के लिए तत्पर है.

हल्द्वानी: 6 कुमाऊं रेजीमेंट के स्थापना दिवस पर गौरव सेनानी कल्याण समिति द्वारा भारत-चीन युद्ध 1962 के वॉरियर्स को सम्मानित करने का कार्यक्रम किया गया. इस मौके पर पूर्व सैनिक संगठन द्वारा एक निजी कार्यक्रम किया गया. कार्यक्रम में 4 वॉरियर्स को सम्मानित किया गया.

इस मौके पर पूर्व सैनिकों ने 1962 के योद्धाओं ने भारत-चीन युद्ध के अनुभवों को साझा किया. पूर्व सैनिकों ने कहा कि 6 कुमाऊं रेजिमेंट भारतीय सेना की पहली यूनिट थी, जिसने 1962 में वलोंग में आजादी के बाद सबसे पहले चाइना पर हमला किया था. यूनिट ने हिंदुस्तान के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम दर्ज कराया था.

6 कुमाऊं रेजीमेंट के स्थापना दिवस पर वलोंग वॉरियर्स को किया सम्मानित.

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6 कुमाऊं गौरव सेनानी कल्याण समिति के संरक्षण पुष्कर सिंह डसीला बताया कि 80वां स्थापना दिवस के मौके चाइना से लोहा लेने वाले 1962, 1965, 1971 की लड़ाई लड़ने वाले कुमाऊं रेजिमेंट के योद्धाओं को सम्मानित किया गया. 1962 भारत-चाइना युद्ध के योद्धा रहे कैप्टन कुंवर सिंह टाकुली ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि 1962 के युद्ध के दौरान भारत-चाइना युद्ध की परिस्थितियां अलग थी.

उस समय सेना के पास कोई संसाधन नहीं थे, छोटे हथियारों से लड़ाई लड़ी जा रही थी, जबकि वहां पर नहीं कोई सड़क व्यवस्था थी और न ही सैनिकों के आने जाने की कोई व्यवस्था थी. लेकिन आज वहां की परिस्थितियां बदल चुकी है और आज वहां पर सैनिकों के लिए सभी सुविधा उपलब्ध है. अगर कभी भी भारत-चाइना युद्ध होता है तो हमारे सैनिक चाइना से निपटने के लिए सक्षम है.

उन्होंने कहा कि भारत-चाइना युद्ध में उत्तराखंड के कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज भी कुमाऊं रेजीमेंट के सैनिक चाइना बॉर्डर लोहा लेने के लिए तत्पर है.

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