नैनीताल: नौ नवंबर को उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के मौके पर राजधानी देहरादून समेत प्रदेश के सभी जिलों में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. लेकिन एक सवाल जो अक्सर राज्य स्थापना दिवस के दिन उठता है वो ये है कि क्या यूपी से अलग होकर जिस पहाड़ी राज्य का गठन किया गया था, वैसा सपनों का उत्तराखंड बन पाया है.
कहते हैं ना कि सपने आखिर सपने ही रहते हैं यह कहावत उत्तराखंड राज्य के लिए एकदम सटीक साबित हो रही है. क्योंकि 19 साल बाद भी आज तक राज्य आंदोलनकारियों और ग्रामीणों के वे सपने पूरे नहीं हो पाए, जो उन्होंने राज्य गठन से पहले देखे थे.
उत्तराखंड राज्य की स्थापना इसलिए की गई थी कि राज्य बनने के बाद यहां के ग्रामीण इलाकों का समूचा विकास हो सके और गांवों से हो रहे पलायन पर रोक लगे. लेकिन आज तक उत्तराखंड के आंदोलनकारियों का कोई भी सपना पूरा नहीं हो सका. शायद इसीलिए कहा जा रहा है कि राज्य गठन के 19 साल भी सपनों का उत्तराखंड नहीं बन पाया. आज भी पहाड़ी जिलों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.
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उत्तराखंड बनते समय राज्य आंदोलनकारियों की अवधारणा थी कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड को एक पहाड़ी राज्य बनाया जाएगा. जिससे उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों का विकास होगा और ग्रामीणों को अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए दर-दर नहीं भटकना पडे़गा, लेकिन ऐेसा कुछ नहीं हुआ.
राज्य आंदोलनकारी रमेश पांडे और रईस अंसारी का कहना है कि प्रदेश में बारी-बारी से कांग्रेस और बीजेपी की सरकार आई है. लेकिन कोई सी भी सरकार प्रदेशवासियों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी. 19 सालों में उत्तराखंड में जितना विकास होना चाहिए था उतना नहीं हुआ. यहीं कारण है कि 19 साल बाद भी गांव से पलायन नहीं रुका. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गांव खाली हो रहे है.
हालांकि, सत्ताधारी दल बीजेपी के नेता आंदोलनकारी की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते है. नैनीतास से बीजेपी विधायक संजीव आर्य का कहना है कि इन 19 सालों में उत्तराखंड का विकास हुआ है. आज गांव में स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क जैसी सभी मूलभूत सुविधाओं पहुंची है. जिसका ग्रामीणों को लाभ मिल रहा है. अभी कुछ स्थानों पर स्थिति अच्छी नहीं है. वहां भी काम किया जा रहा है. आंदोलनकारी और प्रदेशवासियों के जो सपना देखा वो जरूर पूरा होगा.