नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) में THDC द्वारा चमोली में विष्णुगाड पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना (Vishnugad Pipalkoti Hydroelectric Project) का मलबा अलकनंदा के किनारे बसे चमोली के हाट गांव और आदि-शंकराचार्य द्वारा स्थापित स्थापित लक्ष्मीनारायण मंदिर एवं उसके परिसर में डाले जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने मंदिर परिसर के 100 मीटर परिक्षेत्र में मलबा डालने पर रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार, केंद्र सरकार और टीएचडीसी को जवाब पेश करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 6 दिसंबर की तिथि नियत की है.
सुनवाई के दौरान अदालत ने मलबे की तस्वीरों पर आश्चर्य व्यक्त किया. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को अवगत कराया कि किसी विशेष परियोजना के लिए भूमि के अधिग्रहण का मतलब यह नहीं था कि वे कहीं भी मलबा फेंक दें और किसी क्षेत्र की विरासत और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाएं. यह भी बताया कि टीएचडीसी द्वारा एएसआई की सिफारिशों की पूर्ण अवहेलना करते हुए 1000 वर्ष से अधिक पुराने एक विरासत मंदिर को कूड़े के ढेर में परिवर्तित किया जा रहा है.
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मामले के अनुसार हाट गांव के ग्राम प्रधान राजेन्द्र प्रसाद हटवाल ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 2008-2009 में अलकनंदा नदी पर विष्णुगाड पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना बनाने की स्वीकृति हुई. जल विद्युत परियोजना के लिए टीएचडीसी द्वारा भूमि का अधिग्रहण किया गया. टीएचडीसी ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि उनको विस्थापित, रोजगार व उनका विकास किया जाएगा, जबकि उनके गांव अलकनंदा नदी के किनारे सदियों से बसा हुआ है. बदरीनाथ जाने का पैदल पड़ाव है.
9वीं एवं 10वीं शताब्दी में आदि-शंकराचार्य ने यहां पर लक्ष्मीनारायण और अन्य मंदिर समूहों की स्थापना की थी, जिसका गर्भ गृह आज भी यहां मौजूद है, जिसमे ग्रामीण व अन्य पूजा अर्चना करते आ रहे है. जल विद्युत परियोजना का निर्माण होने से टीएचडीसी द्वारा उसका मलबा लक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में डाला जा रहा है, जिससे मंदिर के अस्तित्व को खतरा उतपन्न हो गया है. जनहित याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि उन्हें विस्थापित नहीं किया जाए.