नैनीताल: उत्तराखंड में वन गुर्जरों के संरक्षण और विस्थापन को लेकर दायर की गई जनहित याचिकाओं पर बुधवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. पूर्व के आदेश पर सचिव समाज कल्याण, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ के अलावा नैनीताल, देहरादून, टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिले के जिलाधिकारियों वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए.
कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद अगली सुनवाई 12 जनवरी की तय की है. साथ में कोर्ट ने इन सभी जिला अधिकारियों से 12 जनवरी को फिर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने को कहा है. कोर्ट ने सरकार को वन गुर्जरों के विस्थापन और उनके रहन-सहन के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं.
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हाईकोर्ट की तरफ से जारी किए गए दिशा-निर्देश: कॉर्बेट पार्क के सोना नदी में क्षेत्र में छूटे हुए 24 वन गुर्जरों के परिवारों को 10 लाख रुपये तीन माह के भीतर देने को कहा है. सोना नदी क्षेत्र के 24 छूटे हुए वन गुर्जरों के परिवारों को 6 माह के भीतर प्लाट देने के निर्देश दिए हैं. वन गुर्जरों के सभी परिवारों को जमीन के मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण-पत्र छह माह के भीतर देने को कहा है. राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जरों के उजड़े हुए परिवारों को जीवनयापन के लिए सभी जरूरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा है. जैसे खाना, आवास, मेडिकल सुविधा, स्कूल, रोड और उनके पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था और उनके इलाज हेतु वेटनरी डॉक्टर उपलब्ध कराने को कहा है. राजाजी नेशनल पार्क के वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु सरकार से एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा कहा है.
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चैहान और न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में हुई. बुधवार को कोर्ट ने एनजीओ थिंक एक्ट राइजिंग फाउंडेशन और हिमालयन युवा ग्रामीण समेत अन्य की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की.
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पूर्व में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिये थे कि वन गुर्जरों के मामले में दोबारा से कमेटी का पुर्नगठन कर अन्य सक्षम अधिकारियों को भी इस कमेटी में शामिल करें, जिनको वन गुर्जरों के रहन-सहन आदि का पता हो. ताकि उनकी समस्याओं का कोर्ट को पता चल सके.
पूर्व में सरकार की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया गया था कि कोर्ट के आदेश पर नई कमेटी गठित कर दी है. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो कमेटी गठित की है, उसकी रिपोर्ट पर सरकार अमल नहीं कर रही है. पूर्व में सरकार ने वन गुर्जरों को 10 लाख का मुआवजा देने को कहा था, लेकिन सरकार ने कुछ ही परिवारों को पैसा दिया है.
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो नियमावली बनाई है, वह भ्रमित करने वाली है. क्योंकि उसमें मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था नहीं की गई है. पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने अधिकतर परिवारों को मुआवजा दे दिया है और उनके विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है. शीघ्र ही इन लोगों को मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण-पत्र जारी किया जा रहा है.
मामले के अनुसार याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओें में कहा गया है कि सरकार वन गुर्जरों को उनके परंपरागत हक हुकूकों से वंचित कर रही है. वन गुर्जर पिछले 150 सालों से वनों में रह रहे हैं और उन्हें हटाया जा रहा है. उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं. लिहाजा, उनको सभी अधिकार देकर विस्थापित किया जाय.