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उत्तराखंड HC ने की 1939 बदरीनाथ मंदिर एक्ट मामले पर सुनवाई, केंद्र-राज्य सरकार से जवाब तलब

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को 1939 में बने उत्तर प्रदेश श्री बदरीनाथ मंदिर एक्ट संसोधन मामले पर सुनवाई की. याचिकाकर्ता का कहना है कि हिन्दू धर्म की मान्यताओं को नष्ट करने के लिए ये एक्ट जोड़ा गया है. कोर्ट ने मामले पर केंद्र व राज्य सरकार ने जवाब मांगा है.

Uttarakhand High Court
उत्तराखंड हाईकोर्ट
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Published : Mar 9, 2022, 9:37 PM IST

नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को ब्रिटिश काल 1939 में बने यूपी श्री बदरीनाथ मंदिर एक्ट मामले पर सुनवाई की. याचिकाकर्ता ने एक्ट को हिन्दू विरोधी करार देते हुए संशोधन की मांग की है. वहीं, इस मामले पर बुधवार को सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार व अन्य पक्षों से 8 हफ्ते के भीतर जबाव देने के निर्देश दिए हैं.

रामनगर निवासी अरविंद कुमार ने दायर इस जनहित याचिका में कहा है कि 1939 में ब्रिटिश सरकार ने हिन्दू धर्म की मान्यताओं को नष्ट करने के लिए श्री बदरीनाथ मंदिर एक्ट बनाकर उसमें कई हिन्दू विरोधी प्रावधान जोड़े. लेकिन देश की आजादी के बाद नया संविधान बन गया. संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई. लेकिन 1939 के इस एक्ट में संविधान के मुताबिक संशोधन नहीं किया गया. सरकार ने अपने हित के लिए पिछले सालों में चारधाम देवस्थानम बोर्ड नाम से नया कानून बनाया. लेकिन इस एक्ट के प्रावधानों में संशोधन नहीं किया. हालांकि, यह देवस्थानम बोर्ड नाम से बना कानून निरस्त करना पड़ा था.

ये भी पढ़ेंः अनुबंध खत्म होने पर कोरोनेशन अस्पताल बंद, HC ने लगाई सरकार को फटकार

ऐसे मामलों में अन्य राज्यों ने हस्तक्षेप करके वहां ट्रस्ट घोषित कर दिए. लेकिन उत्तराखंड सरकार ने इसे अपने आय का साधन मान लिया है. सरकार द्वारा चार धाम को एक टूरिस्ट प्लेस बनाया जा रहा है. जबकि सरकार का कार्य वहां सुख, सुविधाएं उपलब्ध कराना है. वर्तमान में भी सरकार 1939 के एक्ट को बरकरार रखना चाह रही है. सरकार ने चार धाम देवस्थानम बोर्ड एक्ट को तो वापस लिया, परंतु 1939 एक्ट में संसोधन नहीं कर रही है.

नैनीतालः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को ब्रिटिश काल 1939 में बने यूपी श्री बदरीनाथ मंदिर एक्ट मामले पर सुनवाई की. याचिकाकर्ता ने एक्ट को हिन्दू विरोधी करार देते हुए संशोधन की मांग की है. वहीं, इस मामले पर बुधवार को सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार व अन्य पक्षों से 8 हफ्ते के भीतर जबाव देने के निर्देश दिए हैं.

रामनगर निवासी अरविंद कुमार ने दायर इस जनहित याचिका में कहा है कि 1939 में ब्रिटिश सरकार ने हिन्दू धर्म की मान्यताओं को नष्ट करने के लिए श्री बदरीनाथ मंदिर एक्ट बनाकर उसमें कई हिन्दू विरोधी प्रावधान जोड़े. लेकिन देश की आजादी के बाद नया संविधान बन गया. संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई. लेकिन 1939 के इस एक्ट में संविधान के मुताबिक संशोधन नहीं किया गया. सरकार ने अपने हित के लिए पिछले सालों में चारधाम देवस्थानम बोर्ड नाम से नया कानून बनाया. लेकिन इस एक्ट के प्रावधानों में संशोधन नहीं किया. हालांकि, यह देवस्थानम बोर्ड नाम से बना कानून निरस्त करना पड़ा था.

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ऐसे मामलों में अन्य राज्यों ने हस्तक्षेप करके वहां ट्रस्ट घोषित कर दिए. लेकिन उत्तराखंड सरकार ने इसे अपने आय का साधन मान लिया है. सरकार द्वारा चार धाम को एक टूरिस्ट प्लेस बनाया जा रहा है. जबकि सरकार का कार्य वहां सुख, सुविधाएं उपलब्ध कराना है. वर्तमान में भी सरकार 1939 के एक्ट को बरकरार रखना चाह रही है. सरकार ने चार धाम देवस्थानम बोर्ड एक्ट को तो वापस लिया, परंतु 1939 एक्ट में संसोधन नहीं कर रही है.

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