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स्थापना दिवस: 19 साल बाद भी सिसकते राज्य आंदोलनकारी, सपना आज भी अधूरा - migration from mountain

9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन राज्य आदोलनकारियों का सपने आज भी अधूरे हैं. पलायन रोकने की बात करने वाले नेता पहाड़ से पलायन कर शहरों में आकर बस रहे हैं, जिससे पहाड़ का विकास नहीं हो पा रहा है.

हल्द्वानी
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Published : Nov 5, 2019, 1:56 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड राज्य बने 19 साल पूरे होने जा रहे हैं. 9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन जिस आधारणा के साथ उत्तराखंड राज्य की स्थापना की गई थी, वह कहीं न कहीं अधूरा दिखाई पड़ता जा रहा है. उत्तराखंड राज्य के लिए लड़ाई लड़ने वाले राज्य आंदोलनकारी भी मान रहे हैं कि जिस सपनों को लेकर वह उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो सपना आज भी अधूरा है. ऐसे में राज्य एक अलग दिशा में जा रहा है.

राज्य आंदोनकारियों का सपना आज भी अधूरा

राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी का कहना है कि पहाड़ के जल, जंगल और जमीन सरकार द्वारा बर्बाद किए जा रहे हैं. पहाड़ में पलायन नहीं रुक रहा है, पहाड़ के हजारों गांव आज खाली होते जा रहे हैं. पलायन रोकने की बात करने वाले नेता पहाड़ से पलायन कर देहरादून और हरिद्वार में आकर बस रहे हैं. पहाड़ की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल हो चुकी है. राज्य बनने के बाद केवल विकास हुआ है तो राजनेताओं का.

जोशी का कहना है कि 19 सालों में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की बजाय 9 मुख्यमंत्री इस राज्य ने देखे. राज्य की अवधारणा के अनुसार स्थाई राजधानी अब तक नहीं बन पाई. युवा पीढ़ी पहाड़ से लगातार पलायन कर रहा है. पहाड़ का युवा रोजगार के लिए हल्द्वानी और देहरादून आता है, लेकिन अब प्रदेश में इतनी बेरोजगारी बढ़ गई है कि युवाओं को हल्द्वानी और देहरादून में भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में अब युवा दिल्ली मुंबई का रुख करने पर मजबूर है, जो उत्तराखंड राज्य के लिए बड़ी विडंबना है. पहाड़ की सड़कों पर लगातार हादसे हो रहे हैं लेकिन सरकार सड़कों का चौड़ीकरण नहीं कर रही है, जो चिंता के विषय है. जिस अवधारणा से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाया गया था वह सपना आज भी अधूरा है.

सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली तनुजा जोशी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य बनने पर लोगों में काफी हर्ष का माहौल था, लेकिन अब वो खुशियां धीरे-धीरे मायूसी में बदल रही है. प्रदेश के नेता अपने स्वार्थ के लिए उत्तराखंड को बदहाली की ओर ले जा रहे हैं. एक घर में दो विधायक बन रहे हैं और पहाड़ की बात करने वाले राजनेता देहरादून में बैठकर प्रदेश का भविष्य तय कर रहे हैं, लेकिन पहाड़ की जमीनी हकीकत देखने के लिए नेता पहाड़ का रुख नहीं करते हैं.

पढ़ें- 19 साल बाद भी नहीं बन पाया सपनों का उत्तराखंड!, लगातार खाली हो रही तिबारी डंडियाली

वहीं, व्यापारी विजय श्रीवास्वतव भी मान रहे हैं कि जिस अवधारणा के लिए उत्तराखंड बनाया गया था. वह अवधारणा आज भी अधूरी है. दोनों सरकारों ने बारी-बारी से सत्ता का सुख भोगा ओर अपना विकास किया.

उत्तराखंड राज्य स्थापना का 20वां सालगिरह मनाने जा रहा है, लेकिन जिस अवधारणा से उत्तराखंड को बनाया गया, उस पर अब आम जनता और राज्य आंदोलनकारियों ने सवाल खड़े किये हैं. इन 20 सालों में उत्तराखंड की दशा और दिशा के लिए लोग यहां के राजनेताओं को जिम्मेदार मान रहे हैं.

देहरादून: उत्तराखंड राज्य बने 19 साल पूरे होने जा रहे हैं. 9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन जिस आधारणा के साथ उत्तराखंड राज्य की स्थापना की गई थी, वह कहीं न कहीं अधूरा दिखाई पड़ता जा रहा है. उत्तराखंड राज्य के लिए लड़ाई लड़ने वाले राज्य आंदोलनकारी भी मान रहे हैं कि जिस सपनों को लेकर वह उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो सपना आज भी अधूरा है. ऐसे में राज्य एक अलग दिशा में जा रहा है.

राज्य आंदोनकारियों का सपना आज भी अधूरा

राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी का कहना है कि पहाड़ के जल, जंगल और जमीन सरकार द्वारा बर्बाद किए जा रहे हैं. पहाड़ में पलायन नहीं रुक रहा है, पहाड़ के हजारों गांव आज खाली होते जा रहे हैं. पलायन रोकने की बात करने वाले नेता पहाड़ से पलायन कर देहरादून और हरिद्वार में आकर बस रहे हैं. पहाड़ की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल हो चुकी है. राज्य बनने के बाद केवल विकास हुआ है तो राजनेताओं का.

जोशी का कहना है कि 19 सालों में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की बजाय 9 मुख्यमंत्री इस राज्य ने देखे. राज्य की अवधारणा के अनुसार स्थाई राजधानी अब तक नहीं बन पाई. युवा पीढ़ी पहाड़ से लगातार पलायन कर रहा है. पहाड़ का युवा रोजगार के लिए हल्द्वानी और देहरादून आता है, लेकिन अब प्रदेश में इतनी बेरोजगारी बढ़ गई है कि युवाओं को हल्द्वानी और देहरादून में भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में अब युवा दिल्ली मुंबई का रुख करने पर मजबूर है, जो उत्तराखंड राज्य के लिए बड़ी विडंबना है. पहाड़ की सड़कों पर लगातार हादसे हो रहे हैं लेकिन सरकार सड़कों का चौड़ीकरण नहीं कर रही है, जो चिंता के विषय है. जिस अवधारणा से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाया गया था वह सपना आज भी अधूरा है.

सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली तनुजा जोशी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य बनने पर लोगों में काफी हर्ष का माहौल था, लेकिन अब वो खुशियां धीरे-धीरे मायूसी में बदल रही है. प्रदेश के नेता अपने स्वार्थ के लिए उत्तराखंड को बदहाली की ओर ले जा रहे हैं. एक घर में दो विधायक बन रहे हैं और पहाड़ की बात करने वाले राजनेता देहरादून में बैठकर प्रदेश का भविष्य तय कर रहे हैं, लेकिन पहाड़ की जमीनी हकीकत देखने के लिए नेता पहाड़ का रुख नहीं करते हैं.

पढ़ें- 19 साल बाद भी नहीं बन पाया सपनों का उत्तराखंड!, लगातार खाली हो रही तिबारी डंडियाली

वहीं, व्यापारी विजय श्रीवास्वतव भी मान रहे हैं कि जिस अवधारणा के लिए उत्तराखंड बनाया गया था. वह अवधारणा आज भी अधूरी है. दोनों सरकारों ने बारी-बारी से सत्ता का सुख भोगा ओर अपना विकास किया.

उत्तराखंड राज्य स्थापना का 20वां सालगिरह मनाने जा रहा है, लेकिन जिस अवधारणा से उत्तराखंड को बनाया गया, उस पर अब आम जनता और राज्य आंदोलनकारियों ने सवाल खड़े किये हैं. इन 20 सालों में उत्तराखंड की दशा और दिशा के लिए लोग यहां के राजनेताओं को जिम्मेदार मान रहे हैं.

Intro:sammry-( राज्य स्थापना दिवस पर स्पेशल) 19 साल बाद भी लोगों का सपना अधूरा प्रदेश के नेताओं ने राज्य का किया बंटाधार 19 साल 9 मुख्यमंत्री। एंकर- उत्तराखंड राज्य बने 19 साल पूरे होने जा रहे हैं 9 नवंबर को उत्तराखंड अपना 20 वा स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन जिस आधारणा के साथ उत्तराखंड राज्य की स्थापना की गई थी वह कहीं न कहीं अधूरा दिखाई पड़ता जा रहा है ।उत्तराखंड राज्य के लिए लड़ाई लड़ने वाले राज्य आंदोलनकारी भी मान रहे हैं कि जिस सपनों को लेकर वह उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ी गई वो सपना आज भी अधूरा है ऐसे में राज्य एक अलग दिशा में जा रहा है ।


Body:उत्तराखंड राज्य स्थापना का 20 वा सालगिरह मनाने जा रहा है। लेकिन जिस अवधारणा से उत्तराखंड को बनाया गया उस पर अब आम जनता और राज्य आंदोलनकारीयो ने सवाल खड़े किये हैं ।इन 20 सालों में उत्तराखंड की दशा और दिशा के लिए लोग यहां के राजनेताओं को जिम्मेदार मान रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी का कहना है कि पहाड़ के जल जंगल जमीन सरकार द्वारा बर्बाद किए जा रहे हैं पहाड़ में पलायन नहीं रुक रहा है पहाड़ के हजारों गांव आज खाली होते जा रहे हैं पलायन रोकने की बात करने वाले नेता पहाड़ से पलायन कर देहरादून और हरिद्वार में आकर बस रहे हैं । पहाड़ की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल हो चुकी है। राज्य बनने के बाद केवल विकास हुआ है तो राजनेताओं का। 19 सालों में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के बजाय 9 मुख्यमंत्री इस राज्य ने देखें राज्य की अवधारणा के अनुसार गैस स्थाई राजधानी अब तक नहीं बन पाई। युवा पीढ़ी पहाड़ से लगातार पलायन कर रहा है पहाड़ का युवा रोजगार के लिए हल्द्वानी और देहरादून आता है लेकिन अब प्रदेश में इतनी बेरोजगारी हो चुकी है कि युवाओं को हल्द्वानी और देहरादून में भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है ऐसे में अब युवा पीढ़ी दिल्ली मुंबई की ओर रुख कर रहा हैं जो उत्तराखंड राज्य के लिए बड़ा विडंबना है। पहाड़ के सड़कों पर लगातार सड़क हादसे हो रहे हैं लेकिन सरकार द्वारा सड़कों का चौड़ीकरण भी नहीं किया जा रहा है जो चिंता के विषय हैं और जिस अवधारणा से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाया गया था वह सपना आज भी अधूरा है। बाइट- ललित जोशी राज्य आंदोलनकारी सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली तनुजा जोशी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य बनने पर लोगों मैं काफी हर्ष का माहौल था लेकिन अब यह खुशियां धीरे धीरे मायूसी में बदल रही है। प्रदेश के नेता अपने स्वार्थ के लिए उत्तराखंड को बदहाली की ओर ले जा रहे हैं एक एक घर में दो दो विधायक बन रहे हैं और पहाड़ की बात करने वाले राजनेता हल्द्वानी और देहरादून में बैठकर प्रदेश पहाड़ की भविष्य को तय कर रहे हैं लेकिन पहाड़ की जमीनी हकीकत देखने के लिए नेता पहाड़ की ओर रुख भी नहीं करते हैं। बाइट- तनुजा जोशी सामाजिक कार्यकर्ता


Conclusion:वही व्यापारी वर्ग भी मान रहा है कि जिस अवधारणा के लिए उत्तराखंड बनाया गया था वह अवधारणा आज भी अधूरा है दोनों सरकारों ने बारी-बारी से सत्ता का सुख भोगा ओर अपना विकास किया । बाइट- व्यापारी
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