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Women’s Day: गरीबी को हराकर टीचर बनीं गीता निर्धन बच्चों को दे रहीं सहारा, राज्यपाल कर चुके हैं पुरस्कृत

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Published : Mar 8, 2023, 10:55 AM IST

Updated : Mar 8, 2023, 1:22 PM IST

अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाह हो तो फिर जिंदगी कितनी ही बाधाएं सामने लाकर खड़ी कर दे, इंसान के दृढ़ निश्चय और संघर्ष के आगे सब छोटी लगने लगती हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है उत्तराखंड की गीता रानी की जिन्होंने बाधाओं को अपनी ताकत बनाया. अपने टीचर बनने के सपने को पूरा किया और अन्य महिलाओं के लिये आदर्श बनीं.

international women's day
गरीबी से जूझकर बनी शिक्षक, राज्यपाल और सीएम भी कर चुके हैं पुरस्कृत
गरीबी को हराकर टीचर बनीं गीता रानी

हल्द्वानी: महिलाओं के सम्मान के लिए हर साल 8 मार्च को विश्व महिला दिवस मनाया जाता है. वक्त के साथ महिलाएं समाज और राष्ट्र के निर्माण का एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं. शिक्षा और खेल जगत से निकलकर महिलाएं राजनीति से लेकर सैन्य क्षेत्र में भी अपनी बड़ी भूमिका निभा रही हैं. आज इस खास दिन पर हम एक ऐसी ही महिला के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने संघर्षमय जीवन जी कर भी अपने सपनों को पूरा किया.

गरीबी में बीता बचपन :हल्द्वानी निवासी शिक्षिका गीता रानी का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में बड़े संघर्ष देखे हैं. जब उनकी उम्र 5 साल की थी, तब उनके पिता का देहांत हो गया था. उनकी मां ने छोटी-मोटी नौकरी करके परिवार की आजीविका चलाई. गरीबी से जूझते हुए गीता रानी ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की. उन्होंने खुद ट्यूशन के माध्यम से अपने आगे की शिक्षा को जारी रखा. वहीं दूसरी ओर दोनों छोटे भाइयों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी ली. वर्ष 1999 में उनकी पहली नियुक्ति एलटी शिक्षक के पद पर जीजीआईसी मासी में हुई.

शिक्षक बनने का सपना किया पूरा: 2001 से लेकर 2005 तक जीजीआईसी भिकियासैंण में कार्यरत रहीं. उसके बाद लोक सेवा आयोग से चयनित होकर प्रवक्ता हिंदी के पद पर राजकीय बालिका इंटर कॉलेज स्याल्दे जनपद अल्मोड़ा में पदभार ग्रहण किया. गीता रानी पिछले दो दशक से पहाड़ों के दुर्गम स्थानों पर अपनी सेवा देते हुए स्कूल में पढ़ने वाली निर्धन बालिकाओं को शिक्षा के क्षेत्र में आगे ले जाने का काम कर रही हैं.

निर्धन बालिकाओं की सहायता की: 17 सालों तक स्याल्दे बालिका इंटर कॉलेज में बालिकाओं को शिक्षा देने का काम करते हुए बालिकाओं के घर जाकर उनको शिक्षा के लिए प्रेरित करना और परिवारों को बालिकाओं की पढ़ाई के लिए जागरूक करने का काम करते हुए निर्धन बालिकाओं को ड्रेस, किताबें, कॉपी, जूते देने के अलावा उनकी फीस अपने खर्चे से वहन करते हुए करते हुए उनको शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने का काम किया है. उनके द्वारा पढ़ाई गई बालिकाएं आज ऊंचे पदों पर नौकरियां और सामाजिक क्षेत्र में काम कर रही हैं.
ये भी पढ़ें: महिला दिवस पर सेना के अधिकारियों ने लैंगिक समानता पर साझा किए विचार

राज्यपाल कर चुके हैं सम्मानित: स्कूल दुर्गम क्षेत्र में होने के चलते बजट का अभाव था. बच्चों को स्कूल में अच्छा वातावरण देने के लिए गीता रानी ने अपने खुद के खर्चे से विद्यालय में सुंदरीकरण के साथ-साथ विद्यालय प्रांगण के फर्श का भी निर्माण कराया. यहां तक कि सरकार द्वारा उनको राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. उस पैसे से उन्होंने स्कूल के गेट को बनवाने का काम किया. गीता रानी की इस उपलब्धि को देखते हुए सरकार ने वर्ष 2018 में राज्यपाल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जबकि 2022 में उत्कृष्ट कार्य के लिए शैलेश मटियानी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

गरीबी को हराकर टीचर बनीं गीता रानी

हल्द्वानी: महिलाओं के सम्मान के लिए हर साल 8 मार्च को विश्व महिला दिवस मनाया जाता है. वक्त के साथ महिलाएं समाज और राष्ट्र के निर्माण का एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं. शिक्षा और खेल जगत से निकलकर महिलाएं राजनीति से लेकर सैन्य क्षेत्र में भी अपनी बड़ी भूमिका निभा रही हैं. आज इस खास दिन पर हम एक ऐसी ही महिला के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने संघर्षमय जीवन जी कर भी अपने सपनों को पूरा किया.

गरीबी में बीता बचपन :हल्द्वानी निवासी शिक्षिका गीता रानी का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में बड़े संघर्ष देखे हैं. जब उनकी उम्र 5 साल की थी, तब उनके पिता का देहांत हो गया था. उनकी मां ने छोटी-मोटी नौकरी करके परिवार की आजीविका चलाई. गरीबी से जूझते हुए गीता रानी ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की. उन्होंने खुद ट्यूशन के माध्यम से अपने आगे की शिक्षा को जारी रखा. वहीं दूसरी ओर दोनों छोटे भाइयों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी ली. वर्ष 1999 में उनकी पहली नियुक्ति एलटी शिक्षक के पद पर जीजीआईसी मासी में हुई.

शिक्षक बनने का सपना किया पूरा: 2001 से लेकर 2005 तक जीजीआईसी भिकियासैंण में कार्यरत रहीं. उसके बाद लोक सेवा आयोग से चयनित होकर प्रवक्ता हिंदी के पद पर राजकीय बालिका इंटर कॉलेज स्याल्दे जनपद अल्मोड़ा में पदभार ग्रहण किया. गीता रानी पिछले दो दशक से पहाड़ों के दुर्गम स्थानों पर अपनी सेवा देते हुए स्कूल में पढ़ने वाली निर्धन बालिकाओं को शिक्षा के क्षेत्र में आगे ले जाने का काम कर रही हैं.

निर्धन बालिकाओं की सहायता की: 17 सालों तक स्याल्दे बालिका इंटर कॉलेज में बालिकाओं को शिक्षा देने का काम करते हुए बालिकाओं के घर जाकर उनको शिक्षा के लिए प्रेरित करना और परिवारों को बालिकाओं की पढ़ाई के लिए जागरूक करने का काम करते हुए निर्धन बालिकाओं को ड्रेस, किताबें, कॉपी, जूते देने के अलावा उनकी फीस अपने खर्चे से वहन करते हुए करते हुए उनको शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने का काम किया है. उनके द्वारा पढ़ाई गई बालिकाएं आज ऊंचे पदों पर नौकरियां और सामाजिक क्षेत्र में काम कर रही हैं.
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राज्यपाल कर चुके हैं सम्मानित: स्कूल दुर्गम क्षेत्र में होने के चलते बजट का अभाव था. बच्चों को स्कूल में अच्छा वातावरण देने के लिए गीता रानी ने अपने खुद के खर्चे से विद्यालय में सुंदरीकरण के साथ-साथ विद्यालय प्रांगण के फर्श का भी निर्माण कराया. यहां तक कि सरकार द्वारा उनको राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. उस पैसे से उन्होंने स्कूल के गेट को बनवाने का काम किया. गीता रानी की इस उपलब्धि को देखते हुए सरकार ने वर्ष 2018 में राज्यपाल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जबकि 2022 में उत्कृष्ट कार्य के लिए शैलेश मटियानी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

Last Updated : Mar 8, 2023, 1:22 PM IST
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