हल्द्वानी: मकर संक्रांति को कई राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. उत्तराखंड में मकर संक्रांति को कुमाऊं में घुघुतिया त्यार नाम से जाना जाता है. इस दिन कुमाऊं में लोगों के घरों में मीठे पानी में से गूंथे आटे से विशेष पकवान बनाने का भी चलन है. 15 जनवरी को कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार मनाया जाना है.
घुघुतिया त्यार का महत्व: लोग भले ही पहाड़ों के गांवों से निकलकर शहरों में बस गए और अपनी माटी से भले दूर हो गए हों. लेकिन घुघुतिया त्यार मनाने की परंपरा आज भी वही है. घुघुतिया के दूसरे दिन बच्चे काले कौआ, घुघुती माला खाले की आवाज लगाकर कौए को बुलाते हैं. घुघुतिया त्योहार के मद्देनजर मकर संक्रांति यानी पूस माह की अंतिम रात में आटे में गुड़ या चीनी मिलाकर 'घुघुति' व्यंजन बनाते हैं. यह अपनी तरह की एक अनोखी परंपरा है जो केवल इसी अवसर पर बनाये जाते हैं.
सबसे पहले पानी गरम कर उसमें गुड़ या चीनी मिलाकर चाशनी बना ली जाती है. फिर आटे में मिलाकर कर गूंथ लिया जाता है. उसके बाद इस आटे से कई तरह की आकृति के रूप में पकवान बनाए जाते हैं, जिसे घुघुती' कहा जाता है. फिर इसे तेल या घी में पूरियों की तरह तला जाता है. माघ माह के पहले दिन घुघुतिया को सुबह माला में पिरो कर सभी बच्चों के गले में डाल दिया जाता है. फिर कौओं को बुला-बुला कर बच्चे उन्हें 'घुघुति' खिलाते हैं. कौओं को खिलाने के बाद 'घुघुतियों को सभी मित्रगणों व रिश्तेदारों को बांटा जाता है.
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घुघुतिया त्योहार के पीछे मार्मिक कथा: घुघुतिया त्योहार के पीछे कई पौराणिक कहावते भी हैं. कहा जाता है कि कुमाऊं में चंद वंश का राज था. उस समय के राजा द्वारा कुमाऊं के बागेश्वर स्थित बागनाथ मंदिर में पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया गया था. जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा की पत्नी प्यार से बेटे को 'घुघुती' नाम से पुकारती थी. रानी ने 'घुघुती' को मोतियों की माला पहना रखी थी जो 'घुघुती' को काफी प्रिय थी. जब कभी वह रोता था तो मां उसे चुप कराने के लिए उक्त माला कौवों को देने की बात कह डराती थी, जिससे 'घुघुती' चुप हो जाया करता था. ऐसा करने पर कौए भी आ जाया करते थे. धीरे-धीरे घुघुती और कौओं की दोस्ती हो गई. उधर दूसरी ओर राजा का एक मंत्री घुघुती को मारकर राजगद्दी हासिल करना चाहता था. एक बार षडयंत्र के तहत मंत्री घुघुती को उठाकर जंगल ले गया. तभी एक कौए ने मंत्री को घुघुती को ले जाते हुए देख लिया.
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जिसके बाद कौआ जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा. कौए की आवाज सुनकर बाकी कौए भी जमा हो गए. कौओं ने घुघुती को बचाया. सभी कौओं ने मंत्री पर अपनी नुकीली चोचों से हमला कर घायल कर दिया. घुघुती की मां समेत राजमहल के लोग उसके लापता होने से परेशान हो गए थे. बाद में कौओं की मदद से घुघुती मिल गया. तब इस खुशी में घुघुती की मां ने बहुत सारे पकवान बनाए. कौओं को बुलाकर घुघुती के हाथों से पकवान खिलाए. उसके बाद से ही इस त्योहार को कुमाऊं में मनाए जाने की परंपरा शुरू हो गई. कुमाऊं के लोग कबूतर की तरह दिखने वाले पक्षी को घुघुती नाम से भी बोला करते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक कुमाऊं मंडल में घुघुतिया त्योहार का अपना बड़ा ही महत्व है. इस दिन स्नान दान का विशेष महत्व होता है. साथ ही त्योहार प्रकृति से जुड़ा हुआ त्योहार है, जिससे इसका महत्व कई गुना हो जाता है.