नैनीताल: उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश का पालन न करना प्रदेश के आबकारी सचिव को महंगा पड़ सकता है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश शरद कुमार शर्मा की एकल पीठ ने प्रदेश के आबकारी सचिव के जवाब से संतुष्ट ना होकर आबकारी सचिव को पुनः अपना जवाब कोर्ट में पेश करने को कहा है. वहीं, कोर्ट ने आबकारी सचिव को चेतावनी दी है कि अगर उनके द्वारा सही शपथ पत्र पेश नहीं किया गया तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करते हुए चार्ज फ़्रेम किए जाएंगे.
बता दें कि नैनीताल हाईकोर्ट ने पूर्व में उत्तराखंड को शराब मुक्त बनाने के लिए राज्य सरकार को 6 महीने के भीतर शराब नीति बनाने के आदेश दिए थे. साथ ही मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने प्रदेश की सभी शराब की दुकानों और बाजारों में आई पी युक्त सीसीटीवी कैमरे लगाने के आदेश दिए थे.
वहीं, कोर्ट ने 21 साल से कम उम्र के लोगों को शराब ना देने की भी आदेश जारी किए थे. वहीं, कोर्ट ने टिप्पणी में कहा था कि आबकारी नीति के तहत शराब का प्रयोग कम करने का प्रावधान है लेकिन राज्य सरकार उत्तराखंड में नई-नई शराब की दुकानें खोल रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है.
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प्रदेश में शराब की दुकानों को बंद करने के लिए बागेश्वर के गरुड़ निवासी अधिवक्ता डीके जोशी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि प्रदेश में शराब के बड़ रहे प्रचलन और लोगों की मौत समेत शराब से हो रही बीमारी को देखकर जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा था कि प्रदेश में आबकारी अधिनियम 1910 लागू है. जिसका सरकार द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है और जगह-जगह सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों, मंदिरों के आसपास शराब की दुकानें खोली जा रही हैं.
वहीं, शराब की वजह से पहाड़ी क्षेत्र में दुर्घटनाएं बढ़ रही है और कई परिवार बर्बाद हो गए हैं. लिहाजा शराब पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाए. याचिकाकर्ता ने शराब से हुई राजस्व को समाज के कल्याण में लगाने की भी मांग की थी, याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार शराब बिक्री से 2% से लेती है जिससे शराब से हुए नुकसान के मामलों में ही खर्च किया जाना चाहिए लेकिन, राज्य सरकार ऐसा नहीं कर रही. कोर्ट के आदेश का पालन ना होने पर याचिकाकर्ता डीके जोशी के द्वारा अवमानना याचिका दायर की गई जिस पर अब हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है.