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वनों की परिभाषा बदलने पर नैनीताल हाईकोर्ट सख्त, सरकार से फिर मांगा जवाब - नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

जंगल की परिभाषा बदलने को लेकर हाईकोर्ट ने एक बार फिर से उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार दोनों से जवाब मांग है साथ ही सरकार द्वारा जारी किए आदेश पर रोक को बरकरार रखा है.

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नैनीताल हाईकोर्ट
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Published : Jan 2, 2020, 7:46 PM IST

Updated : Jan 4, 2020, 12:08 PM IST

नैनीताल: नैनीताल हाईकोर्ट ने वन की परिभाषा बदलने को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब मांगा है. राज्य सरकार द्वारा 10 हेक्टेयर से कम क्षेत्र को जंगल ना मानने को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है, साथ ही इस आदेश पर रोक को बरकरार रखा है.

हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक बार फिर से राज्य और केंद्र सरकार को अपना जवाब पेश करने के आदेश दिए है. पूर्व में हाईकोर्ट द्वारा जवाब पेश करने के आदेश की अनदेखी करने के मामले पर मुख्य न्यायाधीश से खंडपीठ ने नाराजगी व्यक्त की है और राज्य सरकार समेत केंद्र सरकार को फिर से जवाब पेश करने को कहा है. जबकि, पूर्व में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा चुकी है.

नैनीताल हाईकोर्ट

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बता दें कि देहरादून निवासी रेनू पॉल ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर 2019 उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अनुभाग ने अधिकार वनों की परिभाषा बदल दी है. सरकार ने आदेश में कहीं भी वन्य जीव जंतुओं का उल्लेख नहीं किया है. जिससे वन्य जीव जंतुओं के जीवन पर खतरा उत्पन्न होगा. सरकार के आदेश को पूर्व में नैनीताल निवासी विनोद कुमार पांडे और अजय रावत ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी थी.

याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार के इस आदेश के बाद जंगलों में अवैध तस्करों की संख्या बढ़ेगी और लोग बेतहाशा जंगलों का कटान करेंगे. वहीं, जंगलों में अवैध रूप से निर्माण कार्य भी शुरू हो जाएंगे. जिससे आने वाले समय में पर्यावरण को बड़ा खतरा होगा.

नैनीताल: नैनीताल हाईकोर्ट ने वन की परिभाषा बदलने को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब मांगा है. राज्य सरकार द्वारा 10 हेक्टेयर से कम क्षेत्र को जंगल ना मानने को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है, साथ ही इस आदेश पर रोक को बरकरार रखा है.

हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक बार फिर से राज्य और केंद्र सरकार को अपना जवाब पेश करने के आदेश दिए है. पूर्व में हाईकोर्ट द्वारा जवाब पेश करने के आदेश की अनदेखी करने के मामले पर मुख्य न्यायाधीश से खंडपीठ ने नाराजगी व्यक्त की है और राज्य सरकार समेत केंद्र सरकार को फिर से जवाब पेश करने को कहा है. जबकि, पूर्व में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा चुकी है.

नैनीताल हाईकोर्ट

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बता दें कि देहरादून निवासी रेनू पॉल ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर 2019 उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अनुभाग ने अधिकार वनों की परिभाषा बदल दी है. सरकार ने आदेश में कहीं भी वन्य जीव जंतुओं का उल्लेख नहीं किया है. जिससे वन्य जीव जंतुओं के जीवन पर खतरा उत्पन्न होगा. सरकार के आदेश को पूर्व में नैनीताल निवासी विनोद कुमार पांडे और अजय रावत ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी थी.

याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार के इस आदेश के बाद जंगलों में अवैध तस्करों की संख्या बढ़ेगी और लोग बेतहाशा जंगलों का कटान करेंगे. वहीं, जंगलों में अवैध रूप से निर्माण कार्य भी शुरू हो जाएंगे. जिससे आने वाले समय में पर्यावरण को बड़ा खतरा होगा.

Intro:Summry राज्य सरकार द्वारा 10 हेक्टेयर से कम के क्षेत्र को जंगल ना मानने के मामले में नैनीताल हाई कोर्ट ने एक बार फिर केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब, सरकार के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक बरकरार। Intro राज्य सरकार द्वारा 10 हेक्टेयर से कम वाले जंगलों को जंगल ना मानने के मामले में हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक बार फिर से राज्य और केंद्र सरकार को अपना जवाब पेश करने के आदेश दिए है, पूर्व में हाईकोर्ट द्वारा जवाब पेश करने के आदेश की अनदेखी करने के मामले पर मुख्य न्यायाधीश से खंडपीठ ने नाराजगी व्यक्त की और राज्य सरकार समेत केंद्र सरकार को या फिर अपना जवाब पेश करने को कहा है, जबकि पूर्व में ही हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ राज्य सरकार के कार्यलय आदेश पर रोक लगा चुकी है।


Body:आपको बता दें कि देहरादून निवासी रेनू पॉल ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर 2019 उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अनुभाग ने अधिकार वनों की परिभाषा बदल दी है, और सरकार ने अपने इस आदेश में कहीं भी वन्य जीव जंतुओं का उल्लेख नहीं किया गया है जिससे वन्य जीव जंतुओं के जीवन पर खतरा उत्पन्न होगा। जबकि सरकार के आदेश को पूर्व में नैनीताल निवासी विनोद कुमार पांडे,अजय रावत ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुनोती दी हैं और कहा है कि राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर 2019 को कार्यालय आदेश जारी कर अवर्गीकृत जंगल को जंगल नही मानने का आदेश दिया है साथ ही 10 हेक्टेयर से कम के जंगलों को जंगल की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, याचिका में कहा गया है कि सरकार द्वारा उन जंगलों को भी जंगल मानने से इनकार किया गया है जहां पर 60% से कम पेड़ो की संख्या है और उन स्थानों में स्थानीय पेड़ों की संख्या 75% से कम है। याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार के इस आदेश के बाद जंगलों में अवैध तस्करों की संख्या बढ़ेगी और लोग बेतहाशा जंगलों का कटान करेंगे और जंगलों में अवैध रूप से निर्माण करेंगे जिससे आने वाले समय में पर्यावरण को बड़ा खतरा होगा।


Conclusion:याचिकाकर्ताओ द्वारा सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1995 में जारी टी एन गोंडा वर्मन वर्सेस केंद्र सरकार के उस आदेश का भी जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट कहां गया था कि कोई भी वन क्षेत्र चाहे वह किसी व्यक्ति विशेष का हो या राज्य सरकार द्वारा घोषित हो या ना हो वह वन क्षेत्र माना जाएगा, साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रत्येक राज्यों की सरकार को आदेश दिए थे कि सभी राज्य अपने इस तरह के क्षेत्रों का चयनित कर उनको वन की श्रेणी में लाएं। आज मामले सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को जवाब पेश करने के आदेश है। बाईट- अभिजय नेगी, याचिकाकर्ता।
Last Updated : Jan 4, 2020, 12:08 PM IST
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