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300 आदमखोर बने थे इनकी गोली का शिकार, जानिए क्या है जिम कॉर्बेट की कहानी

जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट को एक ब्रिटिश शिकारी के रूप में जाना जाता है. वो शिकारी के साथ-साथ लेखक और फोटोग्राफर भी थे. कॉर्बेट ने अपने जीवित रहते 50 बाघों और 250 तेंदुओं का शिकार किया था.

Jim Corbett National Park
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Published : Apr 30, 2019, 1:45 PM IST

Updated : Apr 30, 2019, 3:04 PM IST

हल्द्वानी: नैनीताल जिले में स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जो वाइल्ड लाइफ और नेचर लवर्स के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है, लेकिन इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम जिन जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट के नाम पर पड़ा. उनके बारे में शायद कम ही लोगों को पता होगा. ईटीवी भारत आपको जेम्स एडवर्ड से जुड़ी कुछ ऐसी ही जानकारियों से रूबरू करवाने जा रहा है, जिसके बारे में शायद आपको मालूम न हो.

जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल जिले के कालाढूंगी गांव में हुआ था. उन्हें एक ब्रिटिश शिकारी के रूप में जाना जाता है, लेकिन शिकारी के साथ-साथ जिम कॉर्बेट एक अच्छे लेखक और फोटोग्राफर भी थे. कॉर्बेट के याद में कालाढूंगी में उनका संग्रहालय धरोहर के रूप में आज भी स्थापित है, जहां उनके पत्र, फोटोग्राफ सहित कई पुरानी वस्तुएं संजोकर रखी गई हैं. इस म्यूजियम को देखने हर साल देश-विदेश से पर्यटक नैनीताल पहुंचते हैं.

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जो वाइल्ड लाइफ और नेचर लवर्स के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है

जिम कॉर्बेट ने साल 1892 में बंगाल उत्तरी पश्चिमी रेल में ईंधन निरीक्षक के पद पर भी काम किया. इसके अलावा अन्य पदों पर रहते हुए वे कालाढूंगी आते-जाते रहते थे और उन्होंने कई आदमखोर बाघों को भी मार गिराया था. उन्होंने अपने जीवित रहते 50 बाघों और 250 तेंदुओं का शिकार किया था.

प्रथम विश्व युद्ध में कॉर्बेट ने कैप्टन के पद पर सेना में प्रवेश लिया और साल 1917 में 500 कुमाउंनी जवानों को लेकर एक श्रमिक दल का गठन किया, जिसने फ्रांस के लड़ाई में हिस्सा लिया. इस लड़ाई के बाद उन्हें मेजर का पद मिला. इतना ही नहीं, कॉर्बेट एक असाधारण लेखक भी थे. उनकी लिखी गयी कई कहानियां पाठकों के बीच आज भी रोमांच उत्पन्न करती हैं. कॉर्बेट की पहली पुस्तक 'जंगल स्टोरीज' के नाम से 1935 में प्रकाशित हुई, जिसकी केवल 100 प्रतियां ही छापी गई थीं.

यह भी पढ़ें- पर्यावरण संरक्षण की अनोखी पहल, क्या देखी है आपने ऐसी कबाड़ से कलाकारी

बताया जाता है कि कॉर्बेट अपनी कमाई का अधिकांश भाग गरीबों में बांट दिया करते थे. श्रमिकों और कुलियों के बच्चों के लिए उन्होंने कोलकाता के मोकमेह घाट में स्कूल की स्थापना की थी. मजदूरों पर साहूकारों के जुल्म के खिलाफ भी उन्होंने आवाज उठाई थी.

कॉर्बेट को 1942 में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट का पद से सुशोभित किया गया और उसके बाद उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर अवार्ड भी मिला. कॉर्बेट को अंतिम समय में सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार कंपेनियन आपदा इंडियन अंपायर से नवाजा गया, जो उस दौरान अति विशिष्ट व्यक्तियों को ही दिया जाता था. उन्होंने नैनीताल झील से 50 पौंड की महाशीर मछली को पकड़कर भी रिकॉर्ड बनाया था.

यह भी पढ़ें- उत्तराखंड में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को अब मिलेगा 10 फीसदी आरक्षण, शासनादेश जारी

जिम कॉर्बेट आजीवन अविवाहित रहे. उन्हीं की तरह उनकी बहन मैगी ने भी आजीवन विवाह नहीं किया. दोनों भाई-बहन हमेशा साथ रहे. कॉर्बेट के नाम से रामनगर में एक संरक्षित वन पार्क भी है. फिलहाल, नैनीताल जिले के कालाढूंगी गांव में जिम कॉर्बेट संग्रहालय को देखने के लिए दूर-दूर से विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं और कॉर्बेट के जीवनी के बारे में जानकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं.

हल्द्वानी: नैनीताल जिले में स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जो वाइल्ड लाइफ और नेचर लवर्स के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है, लेकिन इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम जिन जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट के नाम पर पड़ा. उनके बारे में शायद कम ही लोगों को पता होगा. ईटीवी भारत आपको जेम्स एडवर्ड से जुड़ी कुछ ऐसी ही जानकारियों से रूबरू करवाने जा रहा है, जिसके बारे में शायद आपको मालूम न हो.

जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल जिले के कालाढूंगी गांव में हुआ था. उन्हें एक ब्रिटिश शिकारी के रूप में जाना जाता है, लेकिन शिकारी के साथ-साथ जिम कॉर्बेट एक अच्छे लेखक और फोटोग्राफर भी थे. कॉर्बेट के याद में कालाढूंगी में उनका संग्रहालय धरोहर के रूप में आज भी स्थापित है, जहां उनके पत्र, फोटोग्राफ सहित कई पुरानी वस्तुएं संजोकर रखी गई हैं. इस म्यूजियम को देखने हर साल देश-विदेश से पर्यटक नैनीताल पहुंचते हैं.

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जो वाइल्ड लाइफ और नेचर लवर्स के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है

जिम कॉर्बेट ने साल 1892 में बंगाल उत्तरी पश्चिमी रेल में ईंधन निरीक्षक के पद पर भी काम किया. इसके अलावा अन्य पदों पर रहते हुए वे कालाढूंगी आते-जाते रहते थे और उन्होंने कई आदमखोर बाघों को भी मार गिराया था. उन्होंने अपने जीवित रहते 50 बाघों और 250 तेंदुओं का शिकार किया था.

प्रथम विश्व युद्ध में कॉर्बेट ने कैप्टन के पद पर सेना में प्रवेश लिया और साल 1917 में 500 कुमाउंनी जवानों को लेकर एक श्रमिक दल का गठन किया, जिसने फ्रांस के लड़ाई में हिस्सा लिया. इस लड़ाई के बाद उन्हें मेजर का पद मिला. इतना ही नहीं, कॉर्बेट एक असाधारण लेखक भी थे. उनकी लिखी गयी कई कहानियां पाठकों के बीच आज भी रोमांच उत्पन्न करती हैं. कॉर्बेट की पहली पुस्तक 'जंगल स्टोरीज' के नाम से 1935 में प्रकाशित हुई, जिसकी केवल 100 प्रतियां ही छापी गई थीं.

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बताया जाता है कि कॉर्बेट अपनी कमाई का अधिकांश भाग गरीबों में बांट दिया करते थे. श्रमिकों और कुलियों के बच्चों के लिए उन्होंने कोलकाता के मोकमेह घाट में स्कूल की स्थापना की थी. मजदूरों पर साहूकारों के जुल्म के खिलाफ भी उन्होंने आवाज उठाई थी.

कॉर्बेट को 1942 में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट का पद से सुशोभित किया गया और उसके बाद उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर अवार्ड भी मिला. कॉर्बेट को अंतिम समय में सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार कंपेनियन आपदा इंडियन अंपायर से नवाजा गया, जो उस दौरान अति विशिष्ट व्यक्तियों को ही दिया जाता था. उन्होंने नैनीताल झील से 50 पौंड की महाशीर मछली को पकड़कर भी रिकॉर्ड बनाया था.

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जिम कॉर्बेट आजीवन अविवाहित रहे. उन्हीं की तरह उनकी बहन मैगी ने भी आजीवन विवाह नहीं किया. दोनों भाई-बहन हमेशा साथ रहे. कॉर्बेट के नाम से रामनगर में एक संरक्षित वन पार्क भी है. फिलहाल, नैनीताल जिले के कालाढूंगी गांव में जिम कॉर्बेट संग्रहालय को देखने के लिए दूर-दूर से विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं और कॉर्बेट के जीवनी के बारे में जानकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं.

Intro:स्लग- जिम कॉर्बेट का इतिहास (स्पेशल )
रिपोर्टर भावनाथ पंडित हल्द्वानी।
एंकर -कहा जाता है इंसान चला जाता है लेकिन उसके कर्म उसको हमेशा जिंदा रखती है और लोगों के दिलों में राज करता है। ऐसे ही एक इंसान में एक इंसान थे ब्रिटिश शासन के जिम कॉर्बेट ऐसे जिम कॉर्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कार्बेट था जिनका जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल जिले के कालाढूंगी गांव में हुआ था। लेकिन जिम कॉर्बेट आज नहीं है लेकिन उनकी यादें नैनीताल जिले के कालाढूंगी गांव में आज भी धरोहर के तौर पर रखा गया है ।
देखिए एक रिपोर्ट


Body:जिम कार्बेट को एक ब्रिटिश शिकारी के रूप में जाना जाता है लेकिन शिकारी के साथ-साथ जिम कॉर्बेट एक अच्छे लेखक फोटोग्राफर और दयालु इंसान भी थे । कॉर्बेट के याद में छोटी हल्द्वानी नाम के कालाढूंगी में उनका संग्रहालय धरोहर के रूप में आज भी स्थापित है इस संग्रहालय में उनके पत्र उनकी प्राचीन वस्तु और प्राचीन फोटोग्राफ सहित कई वस्तुएं आज भी संरक्षित है।
ऐसे जिम कॉर्बेट का जन नैनीताल में हुआ था लेकिन उनका घर कालाढूंगी में था जो आज एक म्यूजियम के तौर पर धरोहर के तौर पर आज ही मौजूद है जहां देसी विदेशी पर्यटक देखने आते हैं। जिम कॉर्बेट को भारतीय लोग बहुत पसंद थे । जिम कॉर्बेट ने 1892 में बंगाल उत्तरी पश्चिमी रेल में ईंधन निरीक्षक के पद पर भी काम किया इसके अलावा अन्य पदों पर रहते हुए 1917 तक रेलवे में भी काम किया और रेलवे में रहते हुए कालाढूंगी नैनीताल आते जाते रहते थे और आदमखोर बाघों का उन्होंने नरसंहार किया। उन्होंने अपने जीवन काल में 50 बाघोऔर 250 तेंदुए का नरसंहार किया ।प्रथम विश्व युद्ध में कार्बेट ने कैप्टन पद पर सेना में प्रवेश लिया सन 1917 में 500 कुमाऊनी जवानों को लेकर एक श्रमिक दल का गठन कर फ्रांस के लड़ाई अभियान में भाग लिया। और सफलतापूर्वक अपने दायित्वों को निभाया और बाद उनको मेजर बनाया गया। कॉर्बेट एक असाधारण लेखक भी थे उनकी लिखी गई कई कहानियां पाठकों के बीच रोमांस उत्पन्न करती है । कॉर्बेट की पहली पुस्तक जंगल स्टोरीज के नाम से 1935 में छपे जिसकी केवल 100 प्रतियां ही छापी गई थी।
जिम कॉर्बेट एक बहुत दयालु व्यक्ति भी माने जाया करते थे कॉर्बेट अत्यंत दयावान प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और सदा लोगों की मदद किया करते थे जब रेलवे में कार्य थे तो वहां के श्रमिक के साथ मिलजुल कर रहा करते थे अपनी कमाई की अधिकांश भाग गरीबों में बांट दिया करते थे श्रमिको और कुलियों के बच्चों के लिए उन्होंने कोलकाता के मोकमेह घाट में स्कूल की स्थापना भी किया था साथी मजदूरों पर साहूकारों द्वारा हो रहे जुल्म के खिलाफ भी उन्होंने आवाज उठाई थी।
कॉन्बैट के मुख्य सहयोगी बहादुर शाह खान, कुंवर सिंह ,राम सिंह मोती और पनुवा हुआ करते थे। बहादुर खां छोटी हल्द्वानी गांव के मुखिया हुआ करते थे और कॉर्बेट का पूरा साथ निभाते थे। 1920 में प्रथम युद्ध में सेना के उल्लेखनीय योगदान के लिए कॉर्बेट को वालंटियर डेकोरेशन सभी सम्मानित किया गया।
कार्बेट को 1942 में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट का दर्जा प्राप्त हुआ और उसके बाद ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर कभी अवार्ड मिला कार्बन का अंतिम समय सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार कंपेनियन आपदा इंडियन अंपायर से पुरस्कृत किए गए जो अति विशिष्ट व्यक्तियों को ही दिया जाता था। उन्होंने नैनीताल झील से 50 पौंड की महाशीर मछली को पकड़कर भी रिकॉर्ड बनाया था।



Conclusion:बाद में कॉर्बेट ने शिकार करना बंद कर दिया उन्हें फोटोग्राफी की बहुत शौक थी जिम कॉर्बेट आजीवन अविवाहित रहे उन्हीं की तरह उनकी बहन मैगी ने भी विवाह नहीं किया दोनों भाई बहन सदैव साथ रहते थे और एक दूसरे का दुख दर्द बांटते थे। कॉर्बेट के नाम से रामनगर में एक संरक्षित वन पार्क भी है जिस पर बैठ के प्रति कुमाऊं गढ़वाल और भरत की सच्ची श्रद्धांजलि है आज विश्व में उनका धाम प्रसिद्ध शिकारी के रूप में आदर से लिया जाता है।
फिलहाल नैनीताल जिले के कालाढूंगी गांव में जिम कॉर्बेट संग्रहालय को देखने के लिए दूर-दूर से देशी विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं और कॉर्बेट के जीवनी को जानकार आश्चर्यचकित होते हैं।
बाइट पर्यटक
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बाइट राजकुमार पांडे स्थानीय जानकारी
Last Updated : Apr 30, 2019, 3:04 PM IST
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