हल्द्वानीः उत्तराखंड में इस समय सबसे बड़ी चुनौती पौराणिक नगर जोशीमठ को बचाना है. यहां मकानों में लगातार दरारें आ रही हैं. ऐसे में लोगों को न चाहते हुए भी मजबूरन अपना आशियाना छोड़ना पड़ रहा है. जिसे लेकर कुमाऊंनी लोक गायक बीके सामंत का भी दर्द छलका है. उन्होंने अपने गीतों के जरिए जोशीमठ और कंक्रीट में तब्दील होते उत्तराखंड के दर्द को बयां किया है.
कुमाऊंनी लोक गायक बीके सामंत ने...तो रेत सीमेंट, सरिया को टेंट हवा में जाला उड़ी, जब आलो भूकंप...गीत के जरिए पहाड़ों में हो रहे अनियोजित विकास को बयां किया है. जिसमें उन्होंने भूकंप, कंक्रीट के जंगल, गायब होते गाड़ गधेरे, नदियों के प्रति आम जनता को जागरूक करने की कोशिश की है. उनका कहना है कि इस तरह से बेतरतीब विकास किया जाएगा तो उसका विपरित परिणाम देखने को मिलेगा.
पहाड़ों में अनियोजित विकास का नतीजाः लोक गायक बीके सामंत का कहना है कि जिस तरह से पहाड़ों में अनियोजित विकास कार्य किया जा रहा है, उसी का नतीजा है कि आज सैकड़ों परिवार बेघर हो गए हैं. इस समय संकट की घड़ी चल रही है. जोशीमठ के लोगों को कहां विस्थापित किया जाएगा और उनका जीवन कैसे चलेगा? यह बड़ी चुनौती है. जोशीमठ में एनटीपीसी टनल बनने से लोगों के घर धराशायी हो गए हैं. कई परिवार तो ऐसे हैं, जिनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है.
अनियोजित विकास ने पूरे पहाड़ को विनाश की तरफ धकेलाः उनका कहना है कि पहाड़ों में विकास विनाश के लिए नहीं चाहिए, बल्कि पहाड़ का विकास पहाड़ के तरीके से होना चाहिए. बीके सामंत ने कहा कि पहाड़ों में हो रहा अनियोजित विकास जोशीमठ की तरह पूरे उत्तराखंड को विनाश की तरफ धकेल रहा है. इसलिए हम सब की जिम्मेदारी है कि आपदा और पलायन के लिहाज से हम सब मिलकर काम करें.
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