हल्द्वानी: पहाड़ों की रानी मसूरी में हिमालयन राज्यों का कॉन्क्लेव खत्म हो गया है. जिसके बाद अब विपक्ष इस कॉन्क्लेव को लेकर सवाल उठाने लगा है. नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने कहा कि इस कॉन्क्लेव में सरकार सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाने में असफल रही. अगर सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसमें शामिल होते तो इसके सकारात्मक परिणाम निकलते.
इंदिरा हृदयेश ने कहा कि अधिकतर हिमालयन राज्यों ने अपने प्रतिनिधि भेजकर इस बैठक में गंभीरता नहीं दिखाई. अगर सभी राज्यों के मुख्यमंत्री आते तो इसकी गंभीरता बढ़ जाती. उन्होंने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और नीति आयोग के सदस्य इस बैठक में आए थे. ऐसे में सभी का इसमें गंभीरता ना दिखाना निराशाजनक है.
साथ ही उन्होंने कहा कि यह एक अच्छी शुरुआत है. लेकिन इस कॉन्क्लेव को देखते हुए लगता है कि इससे कोई गंभीर परिणाम नहीं निकलेंगे. उन्होंने कहा कि नीति आयोग के सदस्यों ने इस कॉन्क्लेव में प्रभावी बात कही है. लेकिन जबतक इनके परिणाम नहीं निकलेंगे तबतक इसे बहुत उम्मीद के साथ नहीं देखा जा सकता.
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बता दें कि मसूरी में बीते रविवार हिमालयन कॉन्क्लेव का समापन हो गया है. कॉन्क्लेव में 11 हिमालयी राज्यों में से 10 राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए. जिनमें चार हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्री कार्यक्रम में शामिल हुए. वहीं जिन राज्यों के मुख्यमंत्री नहीं आए, वहां के कैबिनेट मिनिस्टर या उच्च अधिकारी कार्यक्रम में मौजूद रहे. वहीं केंद्र से इस बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और नीति आयोग के सदस्य मौजूद रहे.
वहीं कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता डॉ. आर.पी. रतूड़ी ने कहा कि उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार उस समय भी उत्साहित थी, जब इन्वेस्टर्स समिट करवाया गया था. उस दौरान उत्तराखंड के सीएम ने पूरे प्रदेश की जनता से कहा था कि प्रदेश में अब एक भी युवा बेरोजगार नहीं रहेगा. लेकिन हालात सबके सामने हैं.
उन्होंने कहा कि उसी तरह सरकार ने सभी हिमालयन राज्यों को आमंत्रित करके हिमालयन कॉन्क्लेव आयोजित किया. पहले तो तमाम मुख्यमंत्री यहां नहीं आ पाए. हालांकि वित्त मंत्री और नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कॉन्क्लेव में शिरकत की. लेकिन हिमालयन राज्यों को कुछ हासिल नहीं हो पाया.
आर पी रतूड़ी ने कहा कि इस प्रदेश के जनपद सीमांत क्षेत्रों से लगे हुए हैं. यहां के निवासी मुफ्त की चौकीदारी कर रहे हैं. वहां रहने वाले लोग चीन की गतिविधियों से समय-समय पर आगाह करवाते रहते हैं. लेकिन उनके पलायन और सुरक्षा को लेकर कॉन्क्लेव में कोई योजना नहीं बनी. हिमालयन कॉन्क्लेव केवल रस्म अदायगी बनकर रह गया है.