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हल्द्वानी: पितृ पक्ष पर लें देहदान का संकल्प, जानिए महत्व - पितृ पक्ष पर लें देहदान का संकल्प

दुनिया से विदाई के बाद यदि मृत शरीर किसी को जिंदगी देने के काम आए तो इससे बड़ा कोई दान नहीं हो सकता है. इसीलिए देहदान को महादान की श्रेणी में रखा गया है. ताकि, मृत शरीर पर प्रैक्टिकल कर छात्र-छात्राएं दूसरों को जीवन देना सीखते हैं.

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पितृ पक्ष पर लें देहदान का संकल्प
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Published : Sep 2, 2020, 9:48 PM IST

हल्द्वानी: पितृपक्ष यानी पितरों की पूजा का पक्ष. हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के समान ही पितरों का भी विशेष महत्व है. पितरों के आदर के लिए एक पक्ष यानी 15 दिन पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक समर्पित किया गया है. वहीं, पितृ पक्ष के दौरान हल्द्वानी में कुछ लोग देहदान का भी संकल्प ले रहे हैं. एक देहदान 10-12 लोगों को नया जीवन देता है. जिंदगी बचाने में देह दान और अंग दान का विशेष महत्व है.

हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में 10 मृत शरीर की जरूरत

हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेज में छात्रों के रिसर्च के लिए हर साल 10 मृत शरीर की आवश्यकता होती है. राजकीय मेडिकल कॉलेज के ऑटोनॉमी विभागाध्यक्ष एके सिंह के मुताबिक चिकित्सा विज्ञान के पढ़ाई के लिए मृत शरीर का बड़ा ही महत्व है. चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के लिए मृत शरीर गुरु और शिक्षक के समान होता है और मेडिकल के छात्र गुरू रूपी मृत शरीर से शिक्षा ग्रहण करता है. उन्होंने बताया कि अभी तक राजकीय मेडिकल कॉलेज को 11 लोग अपना देहदान कर चुके हैं. जबकि, 190 लोगों ने परिवार की सहमति के साथ देहदान करने का शपथ पत्र दिया है.

पितृ पक्ष पर लें देहदान का संकल्प.

हल्द्वानी की सामाजिक कार्यकर्ता सुचित्रा जयसवाल अपने देहदान का संकल्प लेते हुए लोगों को देहदान के लिए प्रेरित करने के लिए जागरूकता अभियान चला रही हैं. उनकी संस्था द्वारा कई लोगों से देहदान के लिए आवेदन भी करवाए गए हैं. सुचित्रा जायसवाल का कहना है कि मेडिकल की पढ़ाई में मृत शरीर का बहुत बड़ा योगदान है. ऐसे में पितृपक्ष में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए कई प्रकार के दान करते हैं. ऐसे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा देहदान कर मेडिकल रिसर्च में भी अपना योगदान देना चाहिए.

ये भी पढ़ें: देहरादून: वकालत पर कोरोना की मार, पेशा छोड़ने की फिराक में युवा

हल्द्वानी के ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक शास्त्रों में कहा गया है कि ऋषि मुनियों ने जीवित रहते हुए अपने धर्म और समाज की रक्षा के लिए अपने जीवित शरीर को दान कर दिया था. महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियों तक दान कर दिया था. ऐसे में अगर मृत शरीर से किसी का उपकार, आविष्कार, जनकल्याण हो सकता है तो उससे बड़ा कोई दान नहीं हो सकता.

अंगदान और देहदान में अंतर

अंगदान और देहदान अलग अलग हैं. शरीर के उपयोगी अंग आंखें, कॉर्निया, लीवर, बोन, स्किन वगैरह लगभग 12 से अधिक हैं. अंगदान में किसी मृत शरीर के उपयोगी अंग को निकालकर शरीर को सही रूप में परिजनों को वापस दे दिया जाता है. ताकि वे अपनी मान्यता के अनुसार उसका अंतिम संस्कार कर सकें. देहदान में मृतक की पूरी देह दान कर दी जाती है, जो मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स की एजुकेशन और ट्रेनिंग में उपयोगी साबित होती है.

क्या है देहदान का महत्व

मेडिकल कॉलेजों में रिसर्च वर्क के लिए जो शरीर लिए जाते हैं. उस प्रक्रिया को देहदान कहा जाता है. इसके तहत संबंधित व्यक्ति की मौत के बाद उसके शव का अंतिम संस्कार नहीं, बल्कि उसे मेडिकल कॉलेज की प्रयोगशाला में रखा जाता है. यहां प्रशिक्षु डॉक्टर उस पर ज्ञान हासिल करते हैं.

2 वर्ष तक संरक्षित रहती है मानव देह

मानव देह पर छात्र दो साल तक अध्ययन कर सकते हैं. डॉक्टर्स के मुताबिक, देह प्राप्त होते ही पहले इसे फॉर्मलिन केमिकल में छोड़ दिया जाता है. 1 माह बाद शव पूरी तरह से संरक्षित हो जाता है, जिसके बाद 2 साल तक छात्र इस पर रिसर्च करते हैं. देह की दोनों ओर की संरचना एक समान होती है. इसलिए आधी देह का प्रयोग प्रथम वर्ष और आधी का दूसरे वर्ष उपयोग किया जाता है. इसके बाद शरीर गलने लगता है, तो सम्मान के साथ शव का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.

हल्द्वानी: पितृपक्ष यानी पितरों की पूजा का पक्ष. हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के समान ही पितरों का भी विशेष महत्व है. पितरों के आदर के लिए एक पक्ष यानी 15 दिन पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक समर्पित किया गया है. वहीं, पितृ पक्ष के दौरान हल्द्वानी में कुछ लोग देहदान का भी संकल्प ले रहे हैं. एक देहदान 10-12 लोगों को नया जीवन देता है. जिंदगी बचाने में देह दान और अंग दान का विशेष महत्व है.

हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में 10 मृत शरीर की जरूरत

हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेज में छात्रों के रिसर्च के लिए हर साल 10 मृत शरीर की आवश्यकता होती है. राजकीय मेडिकल कॉलेज के ऑटोनॉमी विभागाध्यक्ष एके सिंह के मुताबिक चिकित्सा विज्ञान के पढ़ाई के लिए मृत शरीर का बड़ा ही महत्व है. चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के लिए मृत शरीर गुरु और शिक्षक के समान होता है और मेडिकल के छात्र गुरू रूपी मृत शरीर से शिक्षा ग्रहण करता है. उन्होंने बताया कि अभी तक राजकीय मेडिकल कॉलेज को 11 लोग अपना देहदान कर चुके हैं. जबकि, 190 लोगों ने परिवार की सहमति के साथ देहदान करने का शपथ पत्र दिया है.

पितृ पक्ष पर लें देहदान का संकल्प.

हल्द्वानी की सामाजिक कार्यकर्ता सुचित्रा जयसवाल अपने देहदान का संकल्प लेते हुए लोगों को देहदान के लिए प्रेरित करने के लिए जागरूकता अभियान चला रही हैं. उनकी संस्था द्वारा कई लोगों से देहदान के लिए आवेदन भी करवाए गए हैं. सुचित्रा जायसवाल का कहना है कि मेडिकल की पढ़ाई में मृत शरीर का बहुत बड़ा योगदान है. ऐसे में पितृपक्ष में लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए कई प्रकार के दान करते हैं. ऐसे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा देहदान कर मेडिकल रिसर्च में भी अपना योगदान देना चाहिए.

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हल्द्वानी के ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक शास्त्रों में कहा गया है कि ऋषि मुनियों ने जीवित रहते हुए अपने धर्म और समाज की रक्षा के लिए अपने जीवित शरीर को दान कर दिया था. महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियों तक दान कर दिया था. ऐसे में अगर मृत शरीर से किसी का उपकार, आविष्कार, जनकल्याण हो सकता है तो उससे बड़ा कोई दान नहीं हो सकता.

अंगदान और देहदान में अंतर

अंगदान और देहदान अलग अलग हैं. शरीर के उपयोगी अंग आंखें, कॉर्निया, लीवर, बोन, स्किन वगैरह लगभग 12 से अधिक हैं. अंगदान में किसी मृत शरीर के उपयोगी अंग को निकालकर शरीर को सही रूप में परिजनों को वापस दे दिया जाता है. ताकि वे अपनी मान्यता के अनुसार उसका अंतिम संस्कार कर सकें. देहदान में मृतक की पूरी देह दान कर दी जाती है, जो मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स की एजुकेशन और ट्रेनिंग में उपयोगी साबित होती है.

क्या है देहदान का महत्व

मेडिकल कॉलेजों में रिसर्च वर्क के लिए जो शरीर लिए जाते हैं. उस प्रक्रिया को देहदान कहा जाता है. इसके तहत संबंधित व्यक्ति की मौत के बाद उसके शव का अंतिम संस्कार नहीं, बल्कि उसे मेडिकल कॉलेज की प्रयोगशाला में रखा जाता है. यहां प्रशिक्षु डॉक्टर उस पर ज्ञान हासिल करते हैं.

2 वर्ष तक संरक्षित रहती है मानव देह

मानव देह पर छात्र दो साल तक अध्ययन कर सकते हैं. डॉक्टर्स के मुताबिक, देह प्राप्त होते ही पहले इसे फॉर्मलिन केमिकल में छोड़ दिया जाता है. 1 माह बाद शव पूरी तरह से संरक्षित हो जाता है, जिसके बाद 2 साल तक छात्र इस पर रिसर्च करते हैं. देह की दोनों ओर की संरचना एक समान होती है. इसलिए आधी देह का प्रयोग प्रथम वर्ष और आधी का दूसरे वर्ष उपयोग किया जाता है. इसके बाद शरीर गलने लगता है, तो सम्मान के साथ शव का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.

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