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वन गुर्जरों पर दिए आदेश का पालन नहीं होने से हाईकोर्ट नाराज, 2 मार्च को अगली सुनवाई

नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश के वन गुर्जरों के संरक्षण व विस्थापन करने के मामले में दायर अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. साथ ही मामले में पूर्व के आदेशों का पालन नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की.

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Published : Feb 23, 2022, 11:49 AM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के वन गुर्जरों के संरक्षण व विस्थापन करने के मामले में दायर अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद अगली सुनवाई हेतु 2 मार्च की तिथि नियत की है. पूर्व के आदेशों का पालन नहीं करने पर हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की.

हाईकोर्ट ने दिया था ये आदेश: राजाजी नेशनल पार्क के वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु सरकार से एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा था. लेकिन आज तक सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया. कोर्ट ने आदेश का पालन नहीं होने पर नाराजगी व्यक्त की. मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में हुई. आज हाईकोर्ट में एनजीओ थिंक एक्ट राइजिंग फाउंडेशन व हिमालयन युवा ग्रामीण व अन्य की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई.

पढ़ें- फांसी की सजा पर हाईकोर्ट में आज सुनवाई, नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या से जुड़ा है मामला

पूर्व में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिये थे कि वन गुर्जरों के मामले में दोबारा से कमेटी का पुनर्गठन कर अन्य सक्षम अधिकारियों को भी इस कमेटी में शामिल करें, जिनको वन गुर्जरों के रहन-सहन आदि का पता हो, ताकि उनकी समस्याओं का कोर्ट को पता चल सके. पूर्व में सरकार की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया गया था कि कोर्ट के आदेश पर नई कमेटी गठित कर दी है. याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट को बताया गया कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो कमेटी गठित की है, उसकी रिपोर्ट पर सरकार अमल नहीं कर रही है.

मुआवजा भी ठीक से नहीं दिया: पूर्व में सरकार ने वन गुर्जरों को 10 लाख का मुआवजा देने को कहा था, जिसमें सरकार ने आधे परिवारों को मुआवजा दिया आधे को नहीं. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो नियमावली बनाई है. वह भ्रमित करने वाली है. न ही उनके मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था की गई है. पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने अधिकतर परिवारों को मुआवजा दे दिया है और उनके विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है. शीघ्र ही इन लोगों को मालिकाना हक और संबंधित प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है.

पढ़ें-नैनीताल HC में हरिद्वार धर्म संसद मामले में सुनवाई, 23 फरवरी तक सरकार से स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश

पूर्व में हाईकोर्ट का आदेश

  • मामले के अनुसार याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओें में कहा गया है कि सरकार वन गुर्जरों को उनके परंपरागत हक-हुकूकों से वंचित कर रही है. वन गुर्जर पिछले 150 सालों से वनों में रह रहे हैं और उन्हें हटाया जा रहा है. उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं. लिहाजा उनको सभी अधिकार देकर विस्थापित किया जाए.
  • पूर्व में कोर्ट ने कॉर्बेट पार्क के सोना नदी में क्षेत्र में छूटे हुए 24 वन गुर्जरों के परिवारों को 10 लाख रुपये तीन माह के भीतर देने को कहा था.
  • सोना नदी क्षेत्र के 24 छूटे हुए वन गुर्जरों के परिवारों को छह माह के भीतर भूमि देने के निर्देश दिए थे.
  • वन गुर्जरों के सभी परिवारों को जमीन के मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण पत्र छह माह के भीतर देने को कहा था.
  • राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जरों के उजड़े हुए परिवारों को जीवन यापन के लिए सभी जरूरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा था. जैसे खाना, आवास, मेडिकल सुविधा, स्कूल, रोड व उनके पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था तथा उनके इलाज हेतु वेटनरी डॉक्टर उपलब्ध कराने को कहा है.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के वन गुर्जरों के संरक्षण व विस्थापन करने के मामले में दायर अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद अगली सुनवाई हेतु 2 मार्च की तिथि नियत की है. पूर्व के आदेशों का पालन नहीं करने पर हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की.

हाईकोर्ट ने दिया था ये आदेश: राजाजी नेशनल पार्क के वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु सरकार से एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा था. लेकिन आज तक सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया. कोर्ट ने आदेश का पालन नहीं होने पर नाराजगी व्यक्त की. मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में हुई. आज हाईकोर्ट में एनजीओ थिंक एक्ट राइजिंग फाउंडेशन व हिमालयन युवा ग्रामीण व अन्य की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई.

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पूर्व में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिये थे कि वन गुर्जरों के मामले में दोबारा से कमेटी का पुनर्गठन कर अन्य सक्षम अधिकारियों को भी इस कमेटी में शामिल करें, जिनको वन गुर्जरों के रहन-सहन आदि का पता हो, ताकि उनकी समस्याओं का कोर्ट को पता चल सके. पूर्व में सरकार की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया गया था कि कोर्ट के आदेश पर नई कमेटी गठित कर दी है. याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट को बताया गया कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो कमेटी गठित की है, उसकी रिपोर्ट पर सरकार अमल नहीं कर रही है.

मुआवजा भी ठीक से नहीं दिया: पूर्व में सरकार ने वन गुर्जरों को 10 लाख का मुआवजा देने को कहा था, जिसमें सरकार ने आधे परिवारों को मुआवजा दिया आधे को नहीं. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो नियमावली बनाई है. वह भ्रमित करने वाली है. न ही उनके मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था की गई है. पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने अधिकतर परिवारों को मुआवजा दे दिया है और उनके विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है. शीघ्र ही इन लोगों को मालिकाना हक और संबंधित प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है.

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पूर्व में हाईकोर्ट का आदेश

  • मामले के अनुसार याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओें में कहा गया है कि सरकार वन गुर्जरों को उनके परंपरागत हक-हुकूकों से वंचित कर रही है. वन गुर्जर पिछले 150 सालों से वनों में रह रहे हैं और उन्हें हटाया जा रहा है. उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं. लिहाजा उनको सभी अधिकार देकर विस्थापित किया जाए.
  • पूर्व में कोर्ट ने कॉर्बेट पार्क के सोना नदी में क्षेत्र में छूटे हुए 24 वन गुर्जरों के परिवारों को 10 लाख रुपये तीन माह के भीतर देने को कहा था.
  • सोना नदी क्षेत्र के 24 छूटे हुए वन गुर्जरों के परिवारों को छह माह के भीतर भूमि देने के निर्देश दिए थे.
  • वन गुर्जरों के सभी परिवारों को जमीन के मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण पत्र छह माह के भीतर देने को कहा था.
  • राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जरों के उजड़े हुए परिवारों को जीवन यापन के लिए सभी जरूरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा था. जैसे खाना, आवास, मेडिकल सुविधा, स्कूल, रोड व उनके पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था तथा उनके इलाज हेतु वेटनरी डॉक्टर उपलब्ध कराने को कहा है.
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