हल्द्वानी: नैनीताल के हल्द्वानी में आज हरेला पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. देवभूमि का ये सांस्कृतिक पर्व प्राकृतिक सौंदर्य और हरियाली का प्रतीक माना जाता है. हरेला के पर्व को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है. ये पर्व हरियाली से जोड़ कर भी देखा जाता है और हरियाली, लोगों के जीवन में बड़ा ही विशेष महत्व रखती है.
दरअसल हरियाली का लोगों की जिंदगी में काफी महत्वपूर्ण स्थान है. हरेला पर्व के अवसर पर घरों में हरेला बो कर घर में सुख-समृद्धि और शांति के लिए हरेला काटा जाता है. ये पर्व अच्छी फसल का भी प्रतीक भी माना जाता है. कहा जाता है कि घर में बोया गया हरेला जितना बड़ा होगा, उतना ही परिवार सुख, शांति और समृद्धि से भरा होगा. इस त्यौहार को कर्क संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है. इसलिए इसे कर्क संक्रांति और श्रवण संक्रांति भी कहा जाता है. वहीं, प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में सावन की शुरुआत ही हरेला पर्व से होती है. ऐसे में हरेला पर्व की शुरुआत आज से हो चुकी है.
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इस पर्व के शुरुआत के साथ ही जगह-जगह वृक्षारोपण अभियान भी शुरू हो गया है. त्योहार से 9 दिन पहले लोग अपने घरों में टोकरी में मिट्टी डालकर सात प्रकार के अनाज जैसे गेहूं ,जौ, मक्का, चना, भुट्टा सहित अन्य फसलों की बुआई करते हैं. 9 दिनों तक हरेले की पूजा-पाठ के साथ गुड़ाई की जाती है और 10वें दिन हरेले को काटकर मंदिर में चढ़ा दिया जाता है और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. मान्यता है, कि हरेला जितना बड़ा होगा परिवार उतना ही संपन्न होगा. वहीं, घर के बुजुर्ग छोटे बच्चों को लोक गीत "जी रिया, जागी रया, यो दिन मास भेटनै रया' यानी आप जीते जागते रहे हर दिन महीने भेंट करते रहें गा कर सुनाते हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है.
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पहाड़ी लोगों की मान्यता के मुताबिक घर में बोया हुआ हरेला, जितना बड़ा और हराभरा होगा उस साल की फसल उतनी ही अच्छी होगी. साथ ही परिवार को सुख-समृद्धि और शांति की भी प्राप्ति होगी. यहां तक कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग हरेला पर्व को मंदिरों में भी मनाते हैं. साथ ही अपनी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए नई पीढ़ी से आह्वान करते हैं, कि वो अपने प्रदेश की इस लोक संस्कृति को हमेशा आगे बढ़ाते रहें.