हल्द्वानी: चीड़ के पेड़ की बकेट (छाल) भले ही लोगों के लिए बेकार हो, लेकिन हल्द्वानी के रहने वाले दिव्यांग जीवन चंद जोशी के लिए बेशकीमती है. जीवन चंद जोशी चीड़ के बकेट में सुंदर कलाकृतियां बनाकर उसमें जान डाल रहे हैं. इस कलाकृति के जरिए उत्तराखंड की हस्तशिल्प कला को विश्व में पहचान दिलाने का काम कर रहे हैं. यही नहीं उनके हस्तशिल्प कला को लेकर भारत सरकार के सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र द्वारा फोक ट्रेडिशनल और इंजीनियस आर्ट में सीनियर फेलोशिप भी प्रदान किया है.
जीवन चंद जोशी हल्द्वानी के कठघरिया में रहते हैं. जीवन के हाथों में निर्जीव वस्तु (चीड़ की छाल) में जान डालने का हुनर हैं. उनके हाथों में वो जादू है कि लकड़ी भी बोल उठती है. अपनी इस कला के जरिए जीवन उत्तराखंड की पहचान को विश्व पटल पर लाना चाहते हैं. इसके लिए जीवन पहाड़ के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर शिल्पकारों के अंदर छुपी प्रतिभा को तराशने का काम कर रहे हैं.
दोनों पैरों से दिव्यांग जीवन चंद जोशी ने दिव्यांगता को कभी आड़े नहीं आने दी. उन्हें बचपन से कलाकृतियां बनाने का शौक था. पहाड़ पर रहते हुए उन्होंने चीड़ की बकेत को अपने हाथों से तराशने का काम शुरू किया. बकेत में कलाकृति बनाकर लकड़ी को जीवन दान दिया.
जीवन का कहना है कि देवालय हमारी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर है और कलाकृति में लोगों की अपार आस्था भी है. आने वाली पीढ़ी के लिए उन्हें संरक्षित करना होगा ताकि वह अपनी धरोहर को देखकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर सके. उन्होंने कहा कि सरकार अगर उत्तराखंड में हस्तशिल्प कला को बढ़ावा दे तो राज्य में रोजगार के काफी अवसर पैदा होंगे और पलायन भी रुकेगा.
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जीवन चंद जोशी ने बताया है कि उन्होंने अपनी हस्तकला को कई प्रदर्शनी में लोहा मनवाया है. लखनऊ, कोलकाता में लगी प्रदर्शनी उनकी कलाकृति की खूब सराहना हुई है. उनकी हस्तशिल्प कला को लेकर भारत सरकार के सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र द्वारा फोक ट्रेडिशनल और इंजीनियस आर्ट में सीनियर फेलोशिप भी प्रदान किया है.