हल्द्वानी: उत्तराखंड में प्रदूषण सर्टिफिकेट बनवाने का नाम पर फर्जीवाड़ा (Fraud in name of pollution certificate) सामने आया है. पॉल्यूशन जांच केंद्रों पर वाहनों की जांच कराए बिना ही फर्जीवाड़ा कर सर्टिफिकेट तैयार (fake pollution certificate issue) किया जा रहा है. इसका खुलासा खुद परिवहन विभाग ने किया है.
संभागीय परिवहन अधिकारी हल्द्वानी संदीप कुमार ने बताया कि मुख्यालय स्तर से शिकायत मिल रही थी कि सड़कों पर दौड़ने वाले लाखों ऐसे वाहन हैं, जिनके पास पॉल्यूशन सर्टिफिकेट नहीं है या उत्तराखंड के वाहनों का पॉल्यूशन सर्टिफिकेट उत्तर प्रदेश से जारी किए गए हैं. ऐसे में विभाग द्वारा इसकी जांच पड़ताल की गई तो सच्चाई सामने आई.
परिवहन विभाग ने खुद अपने विभाग में सीज किए गए 9 वाहनों का प्रदूषण जांच कराया, जहां प्रदूषण जांच केंद्र द्वारा सीज वाहनों का केवल नंबर प्लेट के आधार पर पॉल्यूशन सर्टिफिकेट जारी कर दिया, जिसे प्रतीत हुआ कि सर्टिफिकेट जारी करने के मामले में फर्जीवाड़ा किया जा रहा है. यही नहीं, उत्तराखंड में बैठकर कुछ पॉल्यूशन जांच केंद्र द्वारा उत्तर प्रदेश के लॉग इन आईडी से पॉल्यूशन जांच किया जा रहा है. जांच पड़ताल में पता चला कि हल्द्वानी शहर और उसके आसपास के कुछ प्रदूषण जांच केंद्र द्वारा फर्जीवाड़ा कर सर्टिफिकेट जारी किया जा रहा है.
हल्द्वानी परिवहन विभाग के जांच में पाया गया कि उत्तर प्रदेश की आईडी से 6 सीज वाहनों का प्रदूषण सर्टिफिकेट जारी किया गया है, जबकि उत्तराखंड की लॉग इन आईडी से 3 सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं. ऐसे में प्रथम दृष्टया प्रतीत हो रहा है कि प्रदूषण जांच केंद्र द्वारा पॉल्यूशन सर्टिफिकेट के नाम पर बड़ी मात्रा में फर्जीवाड़ा किया जा रहा है. जहां सरकार के राजस्व के साथ-साथ पॉल्यूशन के नियमों के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है.
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जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड में 29 लाख वाहन रजिस्टर्ड हैं, जहां 16 लाख वाहनों के पास प्रदूषण सर्टिफिकेट नहीं है. जबकि 13 लाख वाहन हैं, जिनके पास पॉल्यूशन सर्टिफिकेट है. जिसमें साढ़े सात लाख वाहनों का प्रदूषण सर्टिफिकेट उत्तराखंड के आईडी से जारी किया गया है. जबकि 5.50 लाख से अधिक वाहनों का प्रदूषण सर्टिफिकेट उत्तर प्रदेश की आईडी से जारी किए गए हैं. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि इतने संख्या में वाहन उत्तर प्रदेश जाकर प्रदूषण सर्टिफिकेट कैसे बनवा रहे हैं.
यही नहीं, इस फर्जीवाड़े से सरकार को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड से जारी होने वाले प्रति सर्टिफिकेट से ₹30 सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है, जबकि उत्तर प्रदेश की आईडी से जारी होने वाले सर्टिफिकेट से उत्तराखंड को राजस्व की प्राप्ति नहीं होती है. ऐसे में इतने बड़े फर्जीवाड़े से जहां प्रदूषण को लेकर ठेंगा दिखाया जा रहा है तो वहीं सरकार को भी भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है.
इस पूरे मामले में संभागीय परिवहन अधिकारी संदीप कुमार सैनी का कहना है कि फर्जी तरीके से प्रमाण पत्र बनाने वाले प्रदूषण जांच केंद्रों के लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जा रही है. पूरे मामले की रिपोर्ट मुख्यालय को भेजी गई है. मुख्यालय के निर्देश पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.