हल्द्वानीः उत्तराखंड की युवा पीढ़ी अपनी परंपरागत चीजों को अब धीरे-धीरे भूलती जा रही है. कभी उत्तराखंड की लोक कला और लोक संस्कृति की पहचान पूरे देश-दुनिया में थी. पहाड़ के झोड़ा, छपेली, न्योली जैसे परंपरागत लोकगीत हों या हुड़का, बिणाई, तुरही जैसे वाद्य यंत्र अब धीरे-धीरे विलुप्त हो चुके हैं. वहीं, हल्द्वानी के रहने वाले शिक्षक गौरीशंकर कांडपाल पहाड़ के विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों को संरक्षित करने के साथ-साथ नई पीढ़ी को प्रशिक्षित कर इसका संरक्षण करने का काम कर रहे हैं.
राजकीय इंटर कॉलेज गुनियालेख के प्रधानाचार्य गौरीशंकर कांडपाल उत्तराखंड की परंपरागत लोक कला, लोक संस्कृति और वाद्य यंत्रों को संरक्षित करने के लिए जनपद के बच्चों को प्रशिक्षित करने के काम में जुटे हुए हैं. समग्र शिक्षा अभियान के तहत आर्ट एवं क्राफ्ट योजना के तहत बच्चों को जागरूक करने के लिए वो कई तरह के कार्यक्रम कर चुके हैं. ऐसे में उत्तराखंड के प्रमुख परंपरागत लोक वाद्य यंत्र बिणाई और हुड़का, तुरही को संरक्षित करने के साथ-साथ उत्तराखंड के युवाओं को बजाने का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं. इससे युवा पीढ़ी इन विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों का संरक्षण कर सकें.
वहीं, गौरीशंकर कांडपाल ने बताया कि मुंह से बजाया जाने वाला उत्तराखंड का प्रमुख वाद्य यंत्र बिणाई यहां की महिलाओं के मनोरंजन का मुख्य साधन था. महिलाएं जब काम कर थक जाती थीं, तो इस छोटे से वाद्य यंत्र बिणाई को मुंह से बजाकर गीत गुनगुना कर अपना मनोरंजन करती थीं. लेकिन अब यह धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है. अब पहाड़ों में बिणाई वाद्य यंत्र इक्का-दुक्का ही देखने को मिलता है. उनका कहना है कि अपनी इन परंपरागत चीजों को संरक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि नई पीढ़ी अब धीरे-धीरे अपनी परंपरागत चीजों को भूल रही है. ऐसे में नई पीढ़ी को अपनी परंपरागत चीजों से जोड़ने की जरूरत है, जिससे उत्तराखंड की अपनी संस्कृति बची रहे.
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गौरीशंकर कांडपाल बच्चे को भी अपने परंपरागत वाद्य यंत्र सिखाने का काम कर रहे हैं. यहां तक कि उनके मार्गदर्शन में हुड़का, लोक संस्कृति सहित कई कलाओं का प्रशिक्षण ले चुके युवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड का नाम रोशन भी कर रहे हैं.