हल्द्वानी: हर साल जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है. इस दिन गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था. गंगा दशहरा के दिन ही गायत्री जयंती मनाई जाती है. समस्त वेदों की उत्पत्ति मां गायत्री से हुई इसलिए मां गायत्री को वेदों की जननी अर्थात वेद माता कहा जाता है.
गंगा दशहरा के दिन स्नान, जप-तप और दान आदि करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. इसमें किसी भी प्रकार का संशय नहीं होता.
त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश इनकी आराध्या को गायत्री कहा जाता है. इसलिए गायत्री का एक नाम देवमाता भी है.कहा जाता है कि मां गायत्री का आंचल पकड़ने वाला कभी निराश नहीं होता. गायत्री मंत्र को महामंत्र कहा जाता है. गायत्री महामंत्र को मंत्र शिरोमणि कहा जाता है. मां गायत्री की साधना बेहद सरल और कभी भी कहीं भी की जा सकती है.
प्रातकाल मां गायत्री की साधना पूर्व दिशा की ओर मुंह करके और शाम को पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके करना उत्तम माना जाता है. मां गायत्री को पृथ्वी लोक की कामधेनु कहा जाता है. क्योंकि यह समस्त प्रकार के रोग, शोक, विकार और बाधाओं को दूर कर व्यक्ति को आरोग्य सौभाग्य ज्ञान विवेक प्रदान करती हैं.
मां गायत्री को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है, क्योंकि मां गायत्री की उपासना करने वाले को वह सब कुछ प्राप्त हो जाता है जो उसके कल्याण के लिए जरूरी होता है. जिस प्रकार से पुष्प में शहद, दूध में घी, चंद्रमा में आह्लाद, सूर्य में तपन, अग्नि में तेज और जल में शीतलता का सार होता है उसी प्रकार समस्त देव शक्तियों का सार मां गायत्री हैं.
गायत्री महामंत्र के 24 अक्षर परम शक्तिशाली और परम सौभाग्य को प्रदान करने वाले होते हैं. ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्