हल्द्वानी: कुमाऊं की सबसे बड़ी गौला नदी हर साल बरसात में कई ग्रामीण इलाकों के लिए तबाही लेकर आती है. गौला नदी खनन के रूप में सरकार को हर साल करोड़ों का राजस्व भी देती है, लेकिन सैकड़ों ग्रामीणों की फसलों के साथ-साथ उनकी भूमि को भी चौपट कर देती है. जिसको देखते हुए 2012-13 में गौला नदी के बाढ़ से निपटने के लिए सिंचाई विभाग ने योजना तैयार कर 2489 लाख रुपए का प्रस्ताव शासन को भेजा था, लेकिन 8 साल बाद भी उस योजना की फाइल शासन में धूल फांक रही है.
सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र खनवाल द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सिंचाई विभाग से सूचना मांगी. आरटीआई अनुसार गौला नदी के बाढ़ से निपटने के लिए 2012-13 में बनाई गई महायोजना के नाम पर अभी तक एक रुपए भी बजट जारी नहीं हुआ है. सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता द्वारा आरटीआई में दी गई जानकारी में कहा गया है कि योजना का प्रस्ताव शासन में लंबित पड़ा हुआ है.
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वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र खनवाल का कहना है कि बरसात के दौरान गौला नदी हर साल सैकड़ों किसानों की भूमि को लगातार निगल रही है. ग्रामीण बाढ़ सुरक्षा को लेकर सरकार और जनप्रतिनिधियों को कई बार अवगत करा चुके हैं, उसके बावजूद भी सरकार गौला नदी के बाढ़ से निजात दिलाने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं कर रही है. यही नहीं योजना के नाम पर समय-समय पर कुछ बजट जारी कर कुछ तटबंध तो बनाए तो जाते हैं, लेकिन वह भी एक बरसात में ही बह जाती है. ऐसे में गौला नदी किनारे रहने वाले ग्रामीणों की सैकड़ों एकड़ फसल और जमीन बर्बाद हो रही है.
राजेंद्र खनवाल का कहना है कि प्रस्तावित योजना पिछले 8 सालों से लंबित पड़ी है, लेकिन सरकार द्वारा इस योजना के नाम पर एक रुपए भी बजट जारी नहीं करना बड़े दुर्भाग्य की बात है, जबकि सरकार को गौला नदी से हर साल खनन से करोड़ों का राजस्व मिलता है. उसके बावजूद भी सरकार यहां के स्थानीय लोगों और किसानों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है.
गौरतलब है कि गौला नदी से लगे अधिकतर गांव वन भूमि में बसे हुए हैं. वन भूमि होने के चलते ऐसे में जिला प्रशासन द्वारा उनको कोई मुआवजा अब तक भी नहीं दिया जाता है. जिला प्रशासन हर साल गौला नदी से हुए नुकसान का जायजा तो लेता है, लेकिन उनको मुआवजा नहीं दे पाती है.