रामनगर: फूलदेई का पर्व प्रदेशभर में दो बार मनाया जाता है. पं. मोहन पांडे बताते हैं कि कुमाऊं के ज्यादातर लोग भावर में बस गए हैं. यही लोग इस त्योहार के मनाते हैं. उन्होंने बताया कि ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों के लोग इस चैत के इस पहले त्योहार को मनाते हैं.
प्रदेश में आज बैसाखी और मेष संक्रांति का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. भाबर में बसे कुमाऊं के लोग आज भी पहाड़ की संस्कृति के इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. बच्चों को फूलदेई के पर्व का इंतजार बेसब्री से रहता है. इस पर्व के अवसर पर लोग खीर सहित कई तरह के पकवान बनाते हैं.
बच्चों की टोली घर-घर जाकर लोगों को फूल और चावल देते हैं और घर के बड़े-बुजुर्ग बच्चों को गुड़, पैसे और उपहार देते हैं. लोगों का कहना है कि देहरी पर आए बच्चों को प्रसाद या उपहार देने से भगवान प्रसन्न होते हैं.
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जानकारी के मुताबिक बैसाख में भावर में फूलदेई का पर्व इसलिए भी बनाया जाता है, क्योंकि इस समय गेहूं की फसल की कटाई का समय होता है. वहीं, आम और लीची की फसल आने का भी समय होता है. इसी को लेकर ये त्योहार मनाया जाता है.
इस त्योहार पर बच्चे रंग-बिरंगे फूल लाकर हर घर की देहरी पर चढ़ाते हैं और इसके बदले उन्हें उपहार मिलते हैं. बच्चे इस पर्व पर एक गीत भी गाते हैं. फूलदेई छम्मा देई देणी द्वार भर भकार ये देली स बारंबार नमस्कार. यानी भगवान देहरी के फूलों से सबकी रक्षा करें और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली ना होने दें.