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विश्व पर्यावरण दिवस: कंक्रीट में तब्दील होता शहर, खत्म होती हरियाली ने बढ़ाई चिंता

हल्द्वानी शहर आज महानगर का रूप ले चुका है. लगातार वनों का दोहन और खेत खलिहानों को खत्म कर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाने से यहां तापमान में जो परिवर्तन आया है वो काफी चिंताजनक है.

विश्व पर्यावरण दिवस
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Published : Jun 5, 2019, 5:31 AM IST

Updated : Jun 5, 2019, 8:42 AM IST

हल्द्वानीः कंक्रीट में खो रहे इंसानों को जगाने की कोशिश है विश्व पर्यावरण दिवस. विकास की इस अंधी दौड़ के नाम पर धरती को खत्म होने से रोका नहीं गया तो जल-जंगल-जमीन से इंसान पूरी तरह महरूम हो जाएगा.लगातार कंक्रीट के बढ़ते जंगलों के कारण मानव जीवन तो प्रभावित हुआ ही है, मौसम चक्र भी असंतुलित हो रहा है. उत्तराखंड में करीब 70 फीसद भू-भाग जंगल हैं. कुमाऊं मंडल के सबसे बड़े महानगर हल्द्वानी में जहां लोगों का दबाव बढ़ता जा रहा है, तो वहीं कंक्रीट के जंगल दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं.

वनों की कटाई और कंक्रीट के जंगल बढ़ने से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है.

हल्द्वानी शहर आज महानगर का रूप ले चुका है. लगातार वनों का दोहन और खेत खलिहानों को खत्म कर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाने से यहां तापमान में जो परिवर्तन आया है वो काफी चिंताजनक है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन सब के पीछे इंसानी जीवन और स्वार्थ है, क्योंकि प्रदूषण फैलाने और पेड़ों के दोहन में भारत विश्व का नंबर एक देश है. विश्व के 15 गर्म शहरों में 11 से लेकर 14 शहर भारत के हैं. इससे साफ है कि किस तरह कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं और पेड़-पौधों की आबादी कम हो रही है.

इस प्रक्रिया से न सिर्फ छोटे-छोटे शहरों के पर्यावरण पर फर्क पड़ रहा है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे बढ़ने लगे हैं. ऐसी अवस्था में सबसे पहला उत्तरदायित्व देश की जनता का है जो अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक नहीं हैं.

यह भी पढ़ेंः पौड़ी में भारतेंदु नाट्य अकादमी की कार्यशाला, छात्र-छात्राओं का तराश रहे हुनर

आज दिन-प्रतिदिन वाटर लेवल कम हो रहा है. खाद्य सामग्रियों में पेस्टीसाइड की मिलावट होने से भोजन पौष्टिक होने के बजाय जहरीला होता जा रहा है और लगातार जंगलों के दोहन और पेड़ों के कटने की वजह से पर्यावरण गर्म होता जा रहा है. इस संबंध में उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि हमारे देश में पिछले कुछ वर्षो से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है. पर्यावरण के बिगड़ने से सभी वर्ग प्रभावित हो रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः धोखाधड़ी में दो डॉक्टरों पर गिरी गाज, सीएमओ ने किया बर्खास्त

पर्यावरण को बचाने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को आगे आना होगा. उन्होंने कहा कि लोगों में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी होनी चाहिए.उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी से पर्यावरण का बचाव हो संभव है और पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है आम नागरिक की भी है.

हल्द्वानीः कंक्रीट में खो रहे इंसानों को जगाने की कोशिश है विश्व पर्यावरण दिवस. विकास की इस अंधी दौड़ के नाम पर धरती को खत्म होने से रोका नहीं गया तो जल-जंगल-जमीन से इंसान पूरी तरह महरूम हो जाएगा.लगातार कंक्रीट के बढ़ते जंगलों के कारण मानव जीवन तो प्रभावित हुआ ही है, मौसम चक्र भी असंतुलित हो रहा है. उत्तराखंड में करीब 70 फीसद भू-भाग जंगल हैं. कुमाऊं मंडल के सबसे बड़े महानगर हल्द्वानी में जहां लोगों का दबाव बढ़ता जा रहा है, तो वहीं कंक्रीट के जंगल दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं.

वनों की कटाई और कंक्रीट के जंगल बढ़ने से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है.

हल्द्वानी शहर आज महानगर का रूप ले चुका है. लगातार वनों का दोहन और खेत खलिहानों को खत्म कर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाने से यहां तापमान में जो परिवर्तन आया है वो काफी चिंताजनक है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन सब के पीछे इंसानी जीवन और स्वार्थ है, क्योंकि प्रदूषण फैलाने और पेड़ों के दोहन में भारत विश्व का नंबर एक देश है. विश्व के 15 गर्म शहरों में 11 से लेकर 14 शहर भारत के हैं. इससे साफ है कि किस तरह कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं और पेड़-पौधों की आबादी कम हो रही है.

इस प्रक्रिया से न सिर्फ छोटे-छोटे शहरों के पर्यावरण पर फर्क पड़ रहा है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे बढ़ने लगे हैं. ऐसी अवस्था में सबसे पहला उत्तरदायित्व देश की जनता का है जो अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक नहीं हैं.

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आज दिन-प्रतिदिन वाटर लेवल कम हो रहा है. खाद्य सामग्रियों में पेस्टीसाइड की मिलावट होने से भोजन पौष्टिक होने के बजाय जहरीला होता जा रहा है और लगातार जंगलों के दोहन और पेड़ों के कटने की वजह से पर्यावरण गर्म होता जा रहा है. इस संबंध में उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि हमारे देश में पिछले कुछ वर्षो से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है. पर्यावरण के बिगड़ने से सभी वर्ग प्रभावित हो रहे हैं.

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पर्यावरण को बचाने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को आगे आना होगा. उन्होंने कहा कि लोगों में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी होनी चाहिए.उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी से पर्यावरण का बचाव हो संभव है और पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है आम नागरिक की भी है.

Intro:स्लग- विश्व पर्यावरण दिवस स्पेशल।( महानगरों के नाम पर उग रहे है कंक्रीट के जंगल ,पर्यावरण के लिए खतरा)
इस खबर का बाइट mojo से उठाएं जबकि विजुअल मेल से उठाएं।
रिपोर्टर- भावनाथ पंडित ।हल्द्वानी

एंकर-एक और पूरा देश विश्व पर्यावरण दिवस मना रहा है तो दूसरी ओर इसी देश में लगातार कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। जिससे मानवी जीवन तो प्रभावित हुआ ही है मौसम चक्र भी असंतुलित हो रहा है। बात उत्तराखंड की करें जहां 70 फ़ीसदी जंगल हैं बावजूद उसके कुमाऊं मंडल के सबसे बड़े महानगर हल्द्वानी में दिन-प्रतिदिन मौसम का अनुकूल प्रभाव होने के बजाय प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि लाखों की आबादी वाले शहर में जहां लोगों का दबाव बढ़ता जा रहा है तो वही कंक्रीट के जंगल भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।


Body:कभी एक तिहाई क्षेत्र में बसने वाला हल्द्वानी शहर आज विक्राल महानगर का रूप ले चुका है। लगातार वनों का दोहन और खेत खलिहान ओं को खत्म कर कंक्रीट के जंगल उगा कर यहां तापमान में जो परिवर्तन आया है वह अत्यंत चिंताजनक है विकास कार्यों के नाम पर आवासीय जरूरतों के नाम पर उद्योग और खनिज के दोहन के लिए भी पेड़ों वनों की कटाई लगातार वर्षों से होती रही है कई नियम कानून के बावजूद भी जंगलों का दोहन बदस्तूर जारी है ।यही वजह है कि पेड़ कटने की संख्या के 10 में भाग के बराबर भी पेड़ नहीं लगाए जा रहे ।यही वजह है कि बे मौसम बरसात गर्मी का मौसम प्रतिकूल और बरसात में कम होती बरसात यह सब इसके कारण हैं।


Conclusion:विशेषज्ञ मानते हैं कि इन सब के पीछे इंसानी जीवन और स्वार्थ सिद्धि का योग है क्योंकि प्रदूषण फैलाने और पेड़ों के दोहन में भारत विश्व का नंबर एक देश है विश्व के 15 धर्म शहरों में 11 से लेकर 14 शहर भारत के हैं तो इससे साफ पता चलता है कि जिस तरह कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं और पेड़-पौधों की आबादी कम हो रही है तो उससे न सिर्फ छोटे-छोटे शहरों के पर्यावरण पर फर्क पड़ रहा है बल्कि विश्व के पर्यावरण में मैं भी ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे बढ़ने लगे हैं ऐसी अवस्था में सबसे पहला उत्तरदायित्व देश की जनता का है जो अपने स्वास्थ्य अपने क्षेत्र और अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक नहीं हैं आज दिन प्रतिदिन वाटर लेवल कम हो रहा है भोजन की खाद्य सामग्रियों में पेस्टीसाइड की मिलावट होने से भोजन पौष्टिक होने के बजाय जहरीला होता जा रहा है और लगातार जंगलों के दोहन और पेड़ों के कटने की वजह से पर्यावरण के गर्म होते जा रहा है अगर इंसानी गलतियों को जल्द न सुधारा गया तो हालात और बद से बदतर हो जाएंगे और लगातार बढ़ रहे कंक्रीट के जंगल न सिर्फ वातावरण को गर्म रखेंगे बल्कि कई बीमारियों को भी जन्म देंगे।

बाइट- संजीव चतुर्वेदी निदेशक उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र
Last Updated : Jun 5, 2019, 8:42 AM IST
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