नैनीताल: सरोवर नगरी में स्थित बीडी पांडे अस्पताल के 125वें स्थापना दिवस को स्थानीय लोगों और डॉक्टरों ने बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया. इस अस्पताल की नींव 1894 में ब्रिटिश शासक और गवर्नर चार्ल्स फास्फेट ने रखी थी. उस दौर में दूर-दूर से लोग इस अस्पताल में अपना इलाज कराने आया करते थे.
इतिहासकार अजय रावत बताते हैं कि नैनीताल में सबसे पहला अस्पताल 1892 में रैम जे बनाया गया था. यह अस्पताल ब्रिटिश शासक के नाम पर ही था. हिंदुस्तानी आबादी वाले इलाके से काफी दूर होने के कारण अधिकांश लोग इस अस्पताल तक नहीं जा पाते थे. जिसको देखते हुए दूसरे ब्रिटिश शासक एंटिनी मैकडॉवेल के विशेष योगदान से 1896 में एक दूसरा अस्पताल का बनवाया गया. जिसे बनाने में उस समय करीब 3,3,770 रुपये खर्च आया था.
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वे बताते हैं कि अस्पताल के निर्माण के लिए नैनीताल की जनता ने भी बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया. जब इस अस्पताल का निर्माण किया जा रहा था तब रैम जे अस्पताल के द्वारा बड़ी मात्रा में चंदा दिया गया, जिससे अस्पताल का निर्माण संभव हो सका और अस्पताल में आवश्यक चीजें भी लाई गयी.
बता दें कि नैनीताल का ये अस्पताल उस दौर में सबसे ज्यादा प्रचलित अस्पतालों में से एक था. इस अस्पताल में कुमाऊं के सबसे दूरस्थ क्षेत्र पिथौरागढ़ और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगते हुए उधम सिंह नगर, अल्मोड़ा, हल्द्वानी से भी लोग अपना इलाज कराने नैनीताल के बीडी पांडे अस्पताल में आया करते थे.
वहीं 1957 में जब उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत को जब भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया, उसके बाद नैनीताल के रैम जे अस्पताल का नाम बदलकर पंडित गोविंद बल्लभ पंत रख दिया गया. जिसके बाद यहां के लोगों ने 1960 में नैनीताल के चार्ल्स फास्फेट अस्पताल का नाम बदलकर कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे के नाम पर रख दिया. जिसे आज लोग बीडी पांडे अस्पताल के नाम से जानते हैं.