हल्द्वानी: सौभाग्यवती स्त्रियों के पवित्र व्रत करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ता है. करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं.जहां पूरे दिन निर्जला व्रत के साथ रात के समय चंद्रमा के दर्शन कर व्रत का परायण किया जाता है. इस दिन महिलाएं संपूर्ण श्रृंगार करती हैं और नए कपड़े पहनती हैं. इस दिन महिलाएं सुबह सूरज उगने से पहले से व्रत रखती हैं और रात में चांद के दर्शन करने के बाद ही अपना व्रत तोड़ती हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक अनुसार इस साल करवा चौथ पर्व 1 नवंबर बुधवार को पड़ रहा है और पर्व पर अमृत योग पड़ रहा है. करवा चौथ की तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार के दिन रात्रि 9.30 से शुरु हो जाएगी, जो 1 नवंबर को चंद्र दर्शन के बाद रात 9.10 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. करवा चौथ की पूजा का शुभ समय 1 नवंबर शाम 5.55 मिनट से लेकर 7.03 मिनट तक रहेगा. ज्योतिष के अनुसार अलग-अलग जगह पर चंद्रोदय का समय अलग-अलग है. उत्तराखंड में चंद्रोदय का समय 1 नवंबर रात 8.5 मिनट से लेकर 8:16 तक पर रहेगा. जहां चंद्रोदय कल के बाद भगवान चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत को खोला जाएगा.
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करवा चौथ के दिन माता कारक की आराधना की जाती है, जो अखंड सौभाग्य देने वाली होती हैं. करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास दिन होता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं. सुहागिन महिलाएं इस दिन सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पूरी निष्ठा के साथ दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं. सबसे पहले करवा चौथ की पूजा सामग्री में करवा माता की पूजा के लिए उनकी तस्वीर होनी चाहिए. बिना करवा के करवा चौथ की पूजा का कोई अर्थ नहीं होता. जिसे करवा नदी का प्रतीक माना जाता है. करवा चौथ पूजा में छलनी का होना भी जरूरी होता है, जहां व्रत में महिलाएं अपने पति के चेहरे को छलनी से देखती हैं.
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पूजा के थाली में दीपक की रोशनी का विशेष महत्व होता है.पूजा सामग्री में तांबे का लोटा होना जरूरी है. सुहागिन महिलाएं इस दिन सोलह सिंगार कर पूजा के थाली में रखें लोटे से सबसे पहले महिलाएं चंद्रमा को अर्घ देती हैं, उसके बाद ही व्रत पूरा माना जाता है. पूजा की थाली में फल- फूल, सुहाग का सामान, जल, दीपक और मिठाई होनी जरूरी है, जिसके बाद महिलाएं चंद्रमा और पति के चेहरे को देखकर इस व्रत परायण करेंगी.