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आजादी के लिए गजब का था जुनून, छोटी उम्र में खाए थे 19 कोड़े

देश को आजाद हुए आज 74 साल पूरे हो गए हैं. इस मौके पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा है. इस मौके पर हम आपको 96 वर्षीय ऐसे स्वतंत्रता सेनानी से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और महज 16 साल की उम्र में अंग्रेजों को फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया.

freedom fighter shivraj singh
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Published : Aug 15, 2021, 2:50 PM IST

हल्द्वानी: आज हिंदुस्तान अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. आजादी के इन 74 सालों में जहां भारत ने ज्ञान-विज्ञान, समाज, तकनीक, राजनीति, रक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं. वहीं, आज पूरा देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद कर रहा है. इस मौके पर ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसे फ्रीडम फाइटर से रूबरू कराने जा रहा हैं, जिनके हौसले को देखकर अंग्रेजी अधिकारी को अपना फैसला बदलना पड़ा.

देश की आजादी में उत्तराखंड के लोगों का अहम योगदान रहा है, फिर चाहे वह महात्मा गांधी का 1930 का नमक सत्याग्रह हो या फिर 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन. इन आंदोलनो में उत्तराखंड के 21 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए और हजारों को गिरफ्तार किया गया. उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं नैनीताल जनपद के 96 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिवराज सिंह. जिनको अंग्रेजों द्वारा बरसाए गए 19 कोड़े आज भी याद बखूबी हैं.

94 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी शिवराज सिंह की दास्तान.

नैनीताल जनपद में कभी 190 स्वतंत्रता सेनानी रहा करते थे, लेकिन इसमें से 189 स्वतंत्रता सेनानी अब हमारे बीच नहीं हैं. स्वतंत्रता सेनानी शिवराज सिंह का जन्म सितंबर, 1927 को अल्मोड़ा जनपद के लमगड़ा गांव में हुआ. 96 वर्षीय शिवराज सिंह अपने उम्र के अंतिम पड़ाव में है और अब वह अस्वस्थ हैं.

शिवराज सिंह के पुत्र जितेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके पिता शिवराज सिंह की उम्र 16 साल की थी तब वह अल्मोड़ा के जीजीआईसी में हाई स्कूल में पढ़ाई करते थे. जब 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई उनके पिता आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. इस दौरान पुलिस उनको पकड़ कर जेल में बंद करने के लिए ले जाने लगी, लेकिन नाबालिक होने की वजह से अंग्रेजों ने उनको जेल में बंद नहीं किया.

पढ़ें- उत्तराखंड में इस कुएं से चलती थी सुल्ताना डाकू की हुकूमत, आज खो रहा अस्तित्व

अंग्रेज अधिकारी को बदलना पड़ा फरमान: एक अंग्रेज अधिकारी ने शिवराज सिंह को नियमानुसार 10 कोड़े मारने का फरमान सुनाया, लेकिन 10 कोड़े की बजाय उनको 19 कोड़े मारे. ऐसे में शिवराज सिंह चौहान ने नाबालिग होने के बावजूद 19 कोड़ों के मार को सहन किया था.

10वीं में पढ़ाई के दौरान शिवराज सिंह के आंदोलन कूदने के चलते जीजीआईसी अल्मोड़ा स्कूल प्रशासन ने उनको स्कूल से नाम काट कर निकाल दिया, जिससे उनकी पढ़ाई छूट गई. आजादी की लड़ाई के साथ-साथ शिवराज सिंह चौहान ने पढ़ाई नहीं छोड़ी, फिर एक साल बाद उन्होंने दोबारा से हाईस्कूल किया. अब शिवराज सिंह अपने परिवार के साथ हल्द्वानी में रह रहे हैं और उम्र के अंतिम पड़ाव में है. उनकी देखभाल उनके एक पुत्र और बहू कर रहे हैं.

हल्द्वानी: आज हिंदुस्तान अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. आजादी के इन 74 सालों में जहां भारत ने ज्ञान-विज्ञान, समाज, तकनीक, राजनीति, रक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं. वहीं, आज पूरा देश में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद कर रहा है. इस मौके पर ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसे फ्रीडम फाइटर से रूबरू कराने जा रहा हैं, जिनके हौसले को देखकर अंग्रेजी अधिकारी को अपना फैसला बदलना पड़ा.

देश की आजादी में उत्तराखंड के लोगों का अहम योगदान रहा है, फिर चाहे वह महात्मा गांधी का 1930 का नमक सत्याग्रह हो या फिर 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन. इन आंदोलनो में उत्तराखंड के 21 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए और हजारों को गिरफ्तार किया गया. उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं नैनीताल जनपद के 96 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिवराज सिंह. जिनको अंग्रेजों द्वारा बरसाए गए 19 कोड़े आज भी याद बखूबी हैं.

94 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी शिवराज सिंह की दास्तान.

नैनीताल जनपद में कभी 190 स्वतंत्रता सेनानी रहा करते थे, लेकिन इसमें से 189 स्वतंत्रता सेनानी अब हमारे बीच नहीं हैं. स्वतंत्रता सेनानी शिवराज सिंह का जन्म सितंबर, 1927 को अल्मोड़ा जनपद के लमगड़ा गांव में हुआ. 96 वर्षीय शिवराज सिंह अपने उम्र के अंतिम पड़ाव में है और अब वह अस्वस्थ हैं.

शिवराज सिंह के पुत्र जितेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके पिता शिवराज सिंह की उम्र 16 साल की थी तब वह अल्मोड़ा के जीजीआईसी में हाई स्कूल में पढ़ाई करते थे. जब 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई उनके पिता आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. इस दौरान पुलिस उनको पकड़ कर जेल में बंद करने के लिए ले जाने लगी, लेकिन नाबालिक होने की वजह से अंग्रेजों ने उनको जेल में बंद नहीं किया.

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अंग्रेज अधिकारी को बदलना पड़ा फरमान: एक अंग्रेज अधिकारी ने शिवराज सिंह को नियमानुसार 10 कोड़े मारने का फरमान सुनाया, लेकिन 10 कोड़े की बजाय उनको 19 कोड़े मारे. ऐसे में शिवराज सिंह चौहान ने नाबालिग होने के बावजूद 19 कोड़ों के मार को सहन किया था.

10वीं में पढ़ाई के दौरान शिवराज सिंह के आंदोलन कूदने के चलते जीजीआईसी अल्मोड़ा स्कूल प्रशासन ने उनको स्कूल से नाम काट कर निकाल दिया, जिससे उनकी पढ़ाई छूट गई. आजादी की लड़ाई के साथ-साथ शिवराज सिंह चौहान ने पढ़ाई नहीं छोड़ी, फिर एक साल बाद उन्होंने दोबारा से हाईस्कूल किया. अब शिवराज सिंह अपने परिवार के साथ हल्द्वानी में रह रहे हैं और उम्र के अंतिम पड़ाव में है. उनकी देखभाल उनके एक पुत्र और बहू कर रहे हैं.

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